भारतीय दवा कंपनियों ने पेटेंट की लड़ाई में विदेशी कंपनियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इस कड़ी में अब मुंबई की सन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड और अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन के बीच पेटेंट को लेकर दूसरी विदेशी कंपनियों की घेरेबंदी किए हुए हैं।
सन फार्मास्युटिकल्स ने मुंबई के पेटेंट कार्यालय में जॉनसन एंड जॉनसन की नामी गिरामी दवा रिेसपेरडाल के पेटेंट को आगे न बढ़ाने संबंधी याचिका सौंपी है।
जॉनसन एंड जॉनसन की सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाओं में रिसपेरडाल दूसरे पायदान पर आती है। रेसिपेरिडान फॉर्मूले वाली दवा रिसपेरडाल मानसिक विकारों और सिजोफ्रेनिया जैसी बीमारियों के उपचार में काम आती है। दुनिया भर में टैबलेट,सीरप और इंजेक्शन के रूप में मिलने वाली इस दवा का कारोबार 180 अरब रुपये से भी अधिक का है।
सन फार्मा पिछले कुछ वर्षों से भारत में इसी तरह की दवा सिजोडॉन के नाम से बेच रही है।
अमेरिका में रिसपेरडाल को फरवरी 1986 में पेटेंट मिला था। वहां पर इसके पेटेंट की अवधि 29 जून 2008 तक ही है।
इसी तरह स्विट्जरलैंड की दवा बनाने वाली कंपनी रॉश की कैंसर के इलाज में काम आने वाली दवा पेगेसिस के पेटेंट को 2006 में चुनौती दी गई थी। इसको लेकर वोकहॉर्ड और मुंबई के एक गैर सरकारी संगठन संकल्प ने प्रश्न उठाए थे। रॉश की ही कैंसर के उपचार में काम आने वाली दवा टर्केवा को फरवरी 2007 में ही पेटेंट मिला है। भारतीय दवा बाजार की बड़ी कंपनी सिप्ला इस मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय में चली गई है। इसी तरह सिप्ला और मुंबई के एक गैर सरकारी संगठन लॉयर्स कलेक्टिव ने रॉश की एंटी एचआईवी दवा वेलगेनसिक्लोविर के पेटेट के खिलाफ झंडा बुलंद कर रखा है। भारत में पेटेंट कानून को 1995 में संशोधित किया गया है। इसके अनुसार जब एक तरह की दवा बनाने का पेटेंट दे दिया जाता है तब दूसरी कंपनियों को उसी तरह की दवा बनाने की इजाजत नहीं होती। इसमें पेटेंट देने के एक साल के दौरान ही उस पेटेट को चुनौती दी जा सकती है।
सुत्रो के अनुसार मुंबई पेटेट कार्यालय ने जॉनसन एंड जॉनसन समूह की कंपनी जॉनसन फार्मास्युटिका एन.वी. को 20 जुलाई 2007 को पेटेंट दिया है। इसकी पेटेंट संख्या 208191 है। कंपनी ने भारत में दवा की बिक्री के आंकड़े नहीं दिए हैं। वहीं दूसरी ओर सन फार्मा के प्रवक्ता का कहना है कि नीतिगत मामलों के तहत अदालती मामलों और पेटेंट से जुड़े मुद्दों पर कंपनी को कोई प्रतिक्रिया नहीं देनी है। सूत्रों का यह भी कहना है कि भारत की डा. रेड्डीज लैबोरेट्रीज और अमेरिका की माइलेन लैबोरेट्रीज उन कंपनियों में से हैं जिन्होंने सबसे पहले अमेरिका में रिसपेरडाल के पेटेट का विरोध किया था। यह बात अलग है कि तब तक इस दवा का कारोबार 80 अरब रुपये को पार कर चुका था। पेटेंट विशेषज्ञ वरुण चौंकर कहते हैं कि 1995 में जबसे पेटेंट का चलन बढ़ा है तब से अब तक 150 उत्पादों के पेटेंट को मंजूरी मिल चुकी है। इसमें भी अधिकतर पेटेंट बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हिस्से में आए हैं। हमारी जानकारी में कम ही मामलों में भारतीय कंपनियों ने पेटेंट को लेकर विदेशी कंपनियों से खींचतान की है।
