वास्तविक दुनिया की समस्याओं को सुलझाने के लिए भारत आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) और किफायती इंजीनियरिंग का उपयोग करने वाला देश होगा। इन्फोसिस के चेयरमैन नंदन नीलेकणि ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि देश में तीन तरह से यह काम आगे बढ़ेगा। पहला, देश में अपने वैश्विक क्षमता केंद्र रखने वाली कंपनियां जो मूल उद्यम के इतर एआई से जुड़े कार्यक्रम बनाएंगी। दूसरे, वे आईटी सेवा प्रदाता कंपनियां, जो एआई परिवर्तन यात्रा में अपने ग्राहकों की मदद करेंगी और तीसरा, डिजिटल बुनियादी ढांचा, जो पूरे एआई तंत्र की नींव हैं।
दुनिया की सबसे बड़ी खुदरा कंपनी वॉलमार्ट की प्रौद्योगिकी इकाई वॉलमार्ट ग्लोबल टेक द्वारा आयोजित कार्यक्रम में नीलेकणि ने कहा, ‘अगर बिहार में बैठा कोई किसान अपने फोन से ही हिंदी में बात करते हुए अपने एजेंट से खेती की बेहतरीन पद्धतियों और बाजार पहुंच के बारे में तत्काल जानकारी हासिल कर लेता है तो समझिए, हमने यह कर दिखाया है।’
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नीलेकणि के मुताबिक, भारत में कंपनियों के पास बड़े पैमाने पर नवाचार करने का मौका है, जो किसी भी प्रौद्योगिकी को व्यापक स्तर पर अपनाने के लिए सबसे जरूरी चीज है। उन्होंने इसके लिए विशिष्ट पहचान कार्यक्रम, आधार और भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) के यूपीआई का उदाहरण भी दिया।
नीलेकणि ने कहा, ‘आधार व्यवस्था शुरू करने के बारे में विचार यही था कि सभी के पास एक डिजिटल आईडी होनी चाहिए, जिसे हर स्तर पर इस्तेमाल किया जा सके। यूपीआई का उद्देश्य भी इसे किफायती इंजीनियरिंग के साथ-साथ बड़ी आबादी के लिहाज से लेनदेन को सुगम बनाना था। ऐसा कि जो समावेशी हो और इसमें हर तबके के लोग शामिल हो सकें।’ उन्होंने कहा कि आधार के मामले में असली नवाचार चार पहचान क्षेत्रों वाले इसके न्यूनतम डिजाइन में निहित था। इससे वह प्रणाली विकसित करने में मदद मिली, जिसे लाखों केंद्रों पर हर रोज लगभग 15 लाख लोगों का नामांकन करने के लिए बनाया गया था।
नीलेकणि ने विस्तार से बताया, ‘यूपीआई और एपीआई दोनों का डिजाइन एक ही पेज का था। सरल डिजाइन से आपकी काम करने की क्षमता बढ़ जाती है।’ उन्होंने यह भी कहा कि लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) आगे चलकर एक वस्तु बन जाएंगे, क्योंकि ओपनएआई, मेटा, गूगल, एंथ्रोपिक, मिस्ट्रल और डीपसीक जैसी कई कंपनियां अमेरिका और चीन में ही इन्हें बना रही हैं।
उन्होंने कहा, ‘वे तेज होंगे, बेहतर काम करेंगे और काफी सस्ते भी मिलेंगे। मगर भारत के लिए ऐसे स्मॉल लैंग्वेज मॉडल (एसएलएम) बनाना उचित होगा, जो सस्ते और किफायती हों। हमें उन्हें एआई जैसा अनुभव प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए।’
वॉलमार्ट के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी सुरेश कुमार ने कहा कि उनकी कंपनी भारत में व्यापक स्तर पर काम कर रही है और इसे प्रतिभा और नवाचार के एक बेहतरीन केंद्र के रूप में देखती है। उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब कंपनी ने इस साल की शुरुआत में अपनी प्रौद्योगिकी इकाई, ई-कॉमर्स फुलफिलमेंट सेंटर (पूर्ति केंद्र) और विज्ञापन क्षेत्र में करीब 1,500 नौकरियों में छंटनी की है। इसका असर कंपनी के भारतीय केंद्र पर भी पड़ा था।