ई मेल, फोन और कूरियर के इस तेज रफ्तार जमाने में भी गली-मोहल्लों में नुक्कड़ों या सड़कों पर लाल मुंह और टोपी वाली डाकपेटी यानी पोस्ट बॉक्स दिख जाना आम बात है।
बड़ी तादाद में आम जनता अब भी संदेश पहुंचाने के लिए इनका इस्तेमाल करती है और इसीलिए वह इन्हें बखूबी पहचानती है। लेकिन अहमदाबाद की एक कंपनी अगर अपनी योजना को अमली जामा पहना देती है, तो पोस्ट बॉक्स को पहचानना कुछ मुश्किल होगा। दरअसल यह कंपनी इन पेटियों की शक्लें बदलने जा रही है।
जंग से बचाएगी टोपी
पोलीकार्बोनेट प्लास्टिक की चादरें बनाने वाली कंपनी मैलिबू प्लास्टिका डाक पेटियों को टोपी पहनाने का काम कर रही है। इस तरह का काम पहली बार हाथ में लिया गया है। इससे पोस्ट बॉक्सों में जंग लगने का खतरा नहीं रहेगा।
डाक विभाग लंबे अरसे से पोस्ट बॉक्स पर पड़ने वाली मौसमी मार से परेशान है। पोस्ट बॉक्स में मौसमी बदलाव के साथ ही छेद होने शुरू हो जाते हैं। दरअसल गर्मियों और बरसात का घालमेल पोस्ट बॉक्स के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होता है। इसी मौसम में आम तौर पर इनमें जंग लगनी शुरू हो जाती है। उसके बाद आई बारिश इन पेटियों का हाल ही बेहाल कर देती है।
बारिश की वजह से अक्सर जंग लगे पोस्ट बॉक्स के अंदर पानी पहुंच जाता है और चिट्ठियां खराब हो जाती हैं। लेकिन विभाग ने धातु की टोपियों के बजाय अब पोस्ट बॉक्स पर पोलीकॉर्बोनेट शीट लगवाने के बारे में सोचा है। ये शीट पारदर्र्शी तो होती हैं, लेकिन इनसे पानी किसी भी कीमत पर बॉक्स के अंदर नहीं पहुंच सकता।इन पारदर्शी शीट की वजह से बॉक्स के अंदर तक रोशनी पहुंच जाएगी।
देश भर में बदलाव
मैलिबू प्लास्टिका के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक जनक पारिख ने बताया, ‘यह परियोजना अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन हमें उम्मीद है कि मेट्रो शहरों में तकरीबन 5,000 पोस्ट बॉक्स की टोपी बदल दी जाएंगी। बाद में पूरे देश में यह काम चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा।’
गुजरात का बोलबाला
पोलीकॉर्बोनेट शीट्स की आपूर्ति मैलिबू रेल विभाग को भी करती है। देश में अभी कुछ कंपनियां ही इन शीट्स का निर्माण कर रही हैं। इनके बाजार के तकरीबन 70 प्रतिशत हिस्से पर अहमदाबाद की कंपनियों का ही कब्जा है।
मैलिबू इसमें काफी बड़ा नाम है।कंपनी अपने कादी संयंत्र से हर साल लगभग 600 टन पोलीकॉर्बोनेट शीट्स का उत्पादन करती है। जल्द ही वह विस्तार की योजना भी बना रही है। अगले एक या दो साल में कंपनी अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 1,500 टन सालाना तक कर लेगी।