टाटा संस 18 साल में पहली बार शुद्ध आधार पर कर्ज मुक्त कंपनी बनी है। टाटा समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी टाटा संस पर वित्त वर्ष 2023 के अंत में 22,176 करोड़ रुपये का कर्ज था जो इस साल मार्च में घटकर 363.2 करोड़ रुपये रह गया था। वित्त वर्ष 2024 के अंत में टाटा संस के पास 3,042 करोड़ रुपये की नकदी और समतुल्य राशि थी, जो इससे एक साल पहले 1,534 करोड़ रुपये थी। इसका मतलब हुआ कि कंपनी पर कर्ज खत्म करने के बाद भी 2,679.2 करोड़ रुपये की नकदी बचेगी। मार्च 2020 के अंत में टाटा संस पर सबसे ज्यादा कुल 31,603 करोड़ रुपये का कर्ज था और उसका शुद्ध कर्ज एवं इक्विटी का अनुपात 0.56 गुना था।
कर्ज-मुक्त बैलेंस शीट और समूह की सूचीबद्ध कंपनियों जैसे टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा मोटर्स, टाइटन और टाटा कंज्यूमर से ज्यादा लाभांश मिलने से टाटा संस को नए उद्यमों में निवेश बढ़ाने में मदद मिलेगी। इससे पहले वित्त वर्ष 2006 में टाटा संस शुद्ध आधार पर कर्ज मुक्त हुई थी। उसके बाद विदेशी में कई बड़े अधिग्रहण किए गए थे, जिसने समूह को पूरी तरह से बदल दिया। टाटा संस की बैलेंस शीट और विभिन्न उद्यमों में इसके पूंजी निवेश की रफ्तार में संबंध दिखता है।
वित्त वर्ष 2005-06 से 2014-15 के दौरान जब टाटा संस की बैलेंस शीट मजबूत थी तब उसने कई सूचीबद्ध और गैर-सूचीबद्ध उद्यमों में निवेश किया था।
उदाहरण के लिए मार्च 2006 के अंत में टाटा संस पर 2,316 करोड़ रुपये का सकल कर्ज था और 2,471 करोड़ रुपये की नकदी थी। दिलचस्प है कि टाटा स्टील ने अक्टूबर 2006 में कोरस समूह के लिए 8.1 अरब डॉलर की बोली लगाई थी और अंतत: 12.1 अरब डॉलर की प्रतिस्पर्धी बोली लगाकर ब्रिटेन की इस कंपनी का अधिग्रहण किया था।
टाटा मोटर्स ने जनवरी 2008 में ब्रिटेन की लक्जरी कार विनिर्माता जगुवार लैंड रोवर (जेएलआर) को 2.3 अरब डॉलर में अधिग्रहण किया था। 2006 के बाद की अवधि में टाटा केमिकल्स, इंडियन होटल्स और टाटा ग्लोबल बेवरिजेज (अब टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स) ने भी विदेश में कई बड़े सौदे किए थे।
टाटा समूह की कंपनियों ने अपने संसाधनों और कर्ज के जरिये इन अधिग्रहण सौदों को पूरा किया था। टाटा संस इन सौदों में परोक्ष रूप से शामिल थी और संबंधित कंपनियों को अतिरिक्त इक्विटी पूंजी मुहैया कराई थी जिससे वे बड़ा कर्ज जुटा सके।
उदाहरण के लिए 2006 से 2011 के बीच टाटा स्टील में तरजीही शेयर, राइट निर्गम और वारंट के जरिये 17,500 करोड़ रुपये का निवेश किया गया था। इससे कंपनी को 2008 में लीमन ब्रदर्स के धराशायी होने के बावजूद कोरस समूह के अधिग्रहण के लिए कर्ज जुटाने में मदद मिली।
इसी तरह टाटा मोटर्स ने 2008 में जेएलआर के अधिग्रहण के लिए राइट निर्गम के जरिये करीब 4,200 करोड़ रुपये की पूंजी जुटाई थी। इस निर्गम को गैर-प्रवर्तक शेयरधारकों से ठंडी प्रतिक्रिया मिलने के बाद टाटा संस ने ज्यादा निर्गम लिए थे। इसी तरह टाटा संस ने टाटा केमिकल्स और इंडियन होटल्स को भी पूंजी मुहैया कराई थी।
2006 की बाद की अवधि में टाटा संस ने रिटेल, प्रसारण, दूरसंचार और विमानन क्षेत्र की अपनी गैर-सूचीबद्ध फर्मों में भी अंतिरिक्त पूंजी निवेश किया था।
कुल मिलाकर टाटा समूह की सूचीबद्ध कंपनियों में टाटा संस का इक्विटी निवेश वित्त वर्ष 2006 से वित्त वर्ष 2013 के बीच करीब 6 गुना बढ़कर 22,799 करोड़ रुपये हो गया, जो वित्त वर्ष 2006 में 3,881 करोड़ रुपये था। इसी अवधि में गैर-सूचीबद्ध फर्मों में टाटा संस का निवेश मार्च 2006 के 5,218 करोड़ रुपये से बढ़कर मार्च 2013 में 18,914 करोड़ रुपये हो गया।
हाल के वर्षों में टाटा संस ने रिटेल, ईकॉमर्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर विनिर्माण, रक्षा तथा विमानन क्षेत्र की गैर-सूचीबद्ध फर्मों में निवेश बढ़ाया है। पिछले तीन साल में टाटा संस ने समूह की विभिन्न गैर-सूचीबद्ध कंपनियों में 38,300 करोड़ रुपये का इक्विटी निवेश किया है।
इस साल मार्च अंत तक समूह की गैर-सूचीबद्ध फर्मों में टाटा संस का कुल निवेश 71,300 करोड़ रुपये था। इस दौरान कंपनी ने 30,000 करोड़ रुपये के कर्ज का भी भुगतान किया है। इस बीच वित्त वर्ष 2024 में टाटा संस की लाभांश और शेयर पुनर्खरीद से आय बढ़कर 43,800 करोड़ रुपये रही, जो वित्त वर्ष 2021 में 19,500 करोड़ रुपये थी।