दैनिक उपभोक्ता वस्तु (एफएमसीजी) बनाने वाली कंपनियों को कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण कुछ असर पड़ने के आसार नजर आ रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि इसका मांग पर पूरा असर पड़ सकता है।
हालांकि पैकेजिंग और माल ढुलाई की लागत बढ़ सकती है, लेकिन कंपनियां बिस्कुट से लेकर साबुन तक की कीमतें बढ़ाने से पहले अब भी भी प्रतीक्षा और समीक्षा वाले अंदाज में हैं, जहां कच्चे तेल के उत्पादों का इस्तेमाल किया जाता है।
एफएमसीजी कंपनियों की लागत में आम तौर पर माल ढुलाई और पैकेजिंग की लागत की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत तक होती है। उपभोक्ता वस्तु बनाने वाली कंपनियां कमोडिटी के आधार पर तीन से छह महीने की अवधि के लिए कच्चे माल के लिए अपनी स्थिति की हेजिंग भी करती हैं।
जून में ब्रेंट कच्चे तेल की कीमत 19.5 प्रतिशत तक बढ़कर प्रति बैरल 74.63 डॉलर हो चुकी है।
दैनिक उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र की एक कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के असर का इंतजाम करना और रणनीति बनाए रखना तथा यह सुनिश्चित करना कि उत्पाद अब भी उपभोक्ता के लिए प्रासंगिक हैं, उनकी टीम के लिए चुनौती है।
उन्होंने बताया, ‘हमें स्थिति का सामना करना होगा और समस्या का समाधान खोजना होगा। ये ऐसी चुनौतियां हैं, जिनका हम सामना करते रहेंगे, लेकिन हम इन चुनौतियों का सामना करेंगे और आगे बढ़ेंगे।’
अपने पारले जी बिस्कुट के लिए प्रसिद्ध पारले प्रोडक्ट्स का कहना है कि कीमतों में वृद्धि के बारे में फैसला करना अभी जल्दबाजी होगी। पारले प्रोडक्ट्स के उपाध्यक्ष मयंक शाह ने कहा, ‘हमें देखना होगा कि स्थिति कैसी रहती है। अगर हम यह देखते हैं कि कच्चे तेल की कीमतों में खासा इजाफा हो रहा है, तो हम कीमतें बढ़ा सकते हैं। कच्चे तेल की
अधिक कीमतों के असर का बड़ा भाग माल ढुलाई और पैकेजिंग की लागत में देखा जाता है।’
कच्चे तेल की कीमतों में यह वृद्धि ऐसे समय में हुई है, जब कंपनियों को उम्मीद है कि आने वाले महीनों में मांग बढ़ेगी, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक साल 2025 की शुरुआत से ब्याज दरों में कटौती कर रहा है, साथ ही सरकार ने आयकर में राहत की घोषणा की है और अच्छे मॉननसून की भी उम्मीद है।