दुर्लभ मैग्नेट ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र नहीं है जिस पर चीन का दुनिया भर में दबदबा है। उसका इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) बैटरी सेल के दो अन्य महत्वपूर्ण घटकों पर भी नियंत्रण है। ये घटक हैं- लीथियम-आयन बैटरी के लिए जरूरी ग्रेफाइट एनोड का निर्माण, साथ ही लीथियम आयरन फॉस्फेट (एलएफपी) बैटरी बनाने के लिए कैथोड पाउडर। एलएफपी बैटरी बसों और वाणिज्यिक वाहनों (सीवी) में लगाई जाती हैं और इन्हें अधिक सुरक्षित माना जाता है।
लेकिन एक भारतीय कंपनी एप्सिलॉन एडवांस्ड मैटेरियल्स के इस बाजार में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। उसने कर्नाटक में इनका निर्माण करने के लिए एक संयंत्र लगाने की योजना को अंतिम रूप दिया है। शुरुआत में वह 9,000 करोड़ रुपये के कुल निवेश के साथ 100,000 टन प्रति वर्ष (टीपीए) सिंथेटिक ग्रेफाइट एनोड बनाने का संयंत्र (जिसकी शुरुआती क्षमता 30,000 टीपीए है) लगा रही है, जिससे वह दुनिया में सबसे बड़ी गैर-चीनी परिचालक बन जाएगी।
एप्सिलॉन के प्रबंध निदेशक विक्रम हांडा ने कहा, ‘30,000 टन सालाना क्षमता का यह संयंत्र 30 गीगावॉट की बैटरी सेल को पावर देने में सक्षम होगा। हमें उम्मीद है कि 2027 तक यह वाणिज्यिक तौर पर शुरू हो जाएगा और यह दुनिया का सबसे बड़ा गैर-चीनी संयंत्र होगा।’
हांडा का कहना है कि देश में मौजूदा मांग सीमित है क्योंकि बैटरी सेल सीधे आयात किए जाते हैं। लेकिन एप्सिलॉन के उत्पादों को जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका में वैश्विक सेल निर्माताओं ने क्वालिफाई और क्लियर कर दिया है। इसमें चार से पांच साल लगे। 2021 में उसने ग्राहकों के साथ क्वालिफाई करने की प्रक्रिया शुरू की। लेकिन वे चाहते थे कि उत्पाद वाणिज्यिक मात्रा में बनाया जाए। इसलिए, एप्सिलॉन ने भारत में 2,000 टीपीए की क्षमता वाला एक संयंत्र स्थापित किया जिसने 2024 के शुरू में उत्पादन शुरू किया। इससे कंपनियों को अपनी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के हिस्से के रूप में परीक्षण करने और फिर उन्हें क्वालिफाई करने तथा बड़े ऑर्डर देने में मदद मिली है।