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आर्थिक समीक्षा

Last Updated- December 05, 2022 | 4:23 PM IST

आर्थिक समीक्षा 2007- 2008 ने हमें मौका दिया है कि हम अभी तक हुए आर्थिक विकास और उसके प्रभावों की समीक्षा कर सके। इसके साथ ही विकास गति को बनाए रखने के लिए अपनी आगे की रणनीति तैयार करें। समीक्षा की शुरूआत में ही ये बात तो बिल्कुल साफ थी कि हमारे आर्थिक विकास की दर अब एक अलग युग में प्रवेश कर चुकी हैं जोकि ढांचागत कारकों पर निर्भर है। इस बजट की सबसे उल्लेखनीय बात निवेश के माहौल में आए बदलाव पर दिया गया जोर है। निवेश ने ही तो हमारे वर्तमान विकास संघटन को तेजी से बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।  हालांकि प्रति व्यक्ति उपभोग विकास दसवीं पंचवर्षीय योजना के मुकाबले दोगुना हुआ है और सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) में अभी भी उपभोग का हिस्सा निवेश से ज्यादा है। ऐसे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि संपूर्ण जीडीपी विकास में निवेश की हिस्सेदारी 55 फीसदी है और ये उपभोग की दर से कहीं ज्यादा है। इससे साफ जाहिर होता है कि सुधार और उद्यमी आशावाद से प्रेरित निवेश अब उपभोग विकास से काफी आगे निकल चुका है। वो भी ऐसे माहौल में जहां अभी तक घरेलू मांग ही आर्थिक उन्नति को संचालित करती थी।
उदारीकरण के बाद में आए सुधारों की सकारात्मक समीक्षा (खासतौर पर पिछली पंचवर्षीय योजना के दौरान) और विकास की सही भूमिका ने हमारे आगे बढ़ने के लिए एक जमीन तैयार कर दी है। इससे हम आने वाली चुनौतियों का सामना बेहतर ढंग से कर पाएंगे। अंतरराष्ट्रीय इतिहास पर नजर डाले तो जीडीपी में 9 फीसदी विकास दर पूरे विश्व में कुछ देश ही हासिल कर पाएं है।
 अर्थव्यवस्था के व्यापक दायरे की बात करें तो यह समीक्षा मांग प्रबंधन के नजरिए से पूंजी प्रवाह प्रबंधन और महंगाई दर के जोखिमों को हमारे सामने पेश करती है।

First Published - February 28, 2008 | 7:12 PM IST

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