अभूतपूर्व मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उल्लंघन साबित करने के लिए वेबैक मशीन के प्रमाणपत्र को साक्ष्य मानते हुए पेटेंट उल्लंघन के लिए कुछ लोगों को दोषी करार दिया है।
वेबैक मशीन वर्ल्ड वाइड वेब का डिजिटल आर्काइव है। इसकी स्थापना सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया में गैर लाभकारी रूप में इंटरनेट आर्काइव द्वारा की गई है। इसमें उपभोक्ताओं को बीते दिनों में जाने की अनुमति मिलती है और यह देखा जा सकता है कि पहले वेबसाइट कैसी दिखती थी।
दिल्ली उच्च न्यायालय में सुजेन इंक ने एक याचिका दायर की थी, जो परोक्ष रूप से पूरी तरह मालिकाना वाली फाइजर इंक की सहायक इकाई है। यह याचिका के विजय प्रकाश व अन्य के खिलाफ दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि वे उच्च न्यायालय के 2016 के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं।
न्यायालय ने वेबैक मशीन प्रमाणपत्र पर विश्वास किया, जिसमें यह साबित किया गया था कि प्रकाश व अन्य (आरोपी) सुजेन की दवा क्राईजोटिनिब से मिलती जुलती दवा बेच रहे हैं, जो उनकी पुरानी वेबसाइट पर मौजूद थी। न्यायालय ने पाया कि आरोपी सुजेन के पेटेंट के उल्लंघन के दोषी हैं।
न्यायालय ने 1 जनवरी 2016 को आरोपियों से कहा था कि वे अपनी उस दवा को बेचना बंद कर दें, जिसमें सुजेन की दवा के समान कंपोजिशन है। इसमें एक आरोपी बांग्लादेश की इकाई है, जिसने दिल्ली सहित भारत में अपने जेनेरिक उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला स्थापित की है। याची ने कहा कि आरोपियों को दवा न बेचने को कहा था, उसके बाद भी वे दवा बेच रहे हैं और न्यायालय के आदेश का उल्लंघन कर रहे हैं।
याची ने कहा, ‘इस मामले में आदेश होने के बाद भी आरोपी ई-कॉमर्स की वेबसाइट के माध्यम से उत्पाद बेच रहे थे।’ बहस के दौरान याचियों ने इंटरनेट आर्काइव के लिए वेबैक मशीन के प्रमाणपत्र पेश किए, जिसमें यह संकेत था कि बांग्लादेश की इकाई आरोपियों से जुड़ी कंपनी थी।