लागत में काफी ज्यादा कटौती और जिंस व ऊर्जा की कीमतों में कमी से भारतीय कंपनी जगत को सितंबर में समाप्त दूसरी तिमाही में रिकॉर्ड परिचालन मार्जिन हासिल करने में मदद मिली। कोविड-19 महामारी के कारण बिक्री व राजस्व में कमी के बावजूद यह देखने को मिला।
बिजनेस स्टैंडर्ड के नमूने में शामिल 490 सूचीबद्ध कंपनियों का संयुक्त परिचालन खर्च (ब्याज, ह्रास व कर को छोड़कर) सितंबर तिमाही में सालाना आधार पर 12.4 फीसदी घटा जबकि उनकी शुद्ध बिक्री सालाना आधार पर 5.6 फीसदी कम रही और राजस्व में सालाना आधार पर 2.9 फीसदी की गिरावट आई।
इसके परिणामस्वरूप सितंबर तिमाही में इन कंपनियों के एबिटा मार्जिन में 780 आधार अंकों की उछाल दर्ज हुई और यह राजस्व के 28.6 फीसदी पर पहुंच गया, जो पिछले साल की समान अवधि में 20.8 फीसदी रहा था।
वैश्विक स्तर पर जिंस व ऊर्जा की कीमतें धराशायी होने का फायदा इन्हें मिला और विनिर्माण कंपनियों के नतीजों में यह सबसे ज्यादा स्पष्ट नजर आया। नमूने में शामिल कंपनियों का कच्चे माल का संयुक्त खर्च दूसरी तिमाही में सालाना आधार पर 10.8 फीसदी कम रहा। कंपनियों ने विज्ञापन, प्रमोशन और यात्रा पर खर्च में कटौती की। इस तरह से अन्य खर्च सालाना आधार पर दूसरी तिमाही में 12.8 फीसदी घटा। हालांकि फर्र्मों की शुद्ध बिक्री इस अवधि में सालाना आधार पर 8.3 फीसदी कम रही, जो प्रति इकाई विनिर्माण लागत में कमी का संकेत देता है।
प्रसंस्करण उद्योग व गहन ऊर्जा वाले उत्पादों मसलन सीमेंट, केमिकल व टायर बनाने वाली कंपनियां भी फायदे में रहीं और वॉल्यूम में स्थिरता या एक अंक में बढ़ोतरी के बावजूद उनकी आय की रफ्तार दो अंकों में रही।
उदाहरण के लिए अल्ट्राटेक सीमेंट का शुद्ध लाभ तिमाही दर तिमाही आधार पर सितंबर तिमाही में दोगुना हो गया जबकि शुद्ध बिक्री की रफ्तार सालाना आधार पर महज 9 फीसदी रही। इसी तरह टायर बनाने वाली कंपनी सिएट का शुद्ध लाभ दूसरी तिमाही में चार गुना हो गया जबकि शुद्ध बिक्री में सालाना आधार पर महज 16 फीसदी का इजाफा हुआ।
ऑटोमोबाइल व टिकाऊ उपभोक्ता जैसे क्षेत्रों के विनिर्माताओं का फायदा सुस्त रहा क्योंंकि उनका वॉल्यूम घटा। हालांकि विश्लेषकों ने कहा कि इन क्षेत्रों का मार्जिन व लाभ सबसे खराब होता अगर उनकी इनपुट लागत में कमी नहीं होती और ओवरहेड खर्च कम नहीं होता।
इक्विनॉमिक्स रिसर्च ऐंड एडवाइजरी सर्विसेज के संस्थापक व प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम ने कहा, दूसरी तिमाही में कंपनियों को कच्चे माल व अन्य इनपुट कम लागत में मिला, जो उन्होंने अप्रैल व मई में काफी कम कीमत पर खरीदा। मार्जिन अगली दो तिमाहियों में सामान्य होगा क्योंंकि धातु, तेल व गैस समेत ज्यादातर जिंसों की कीमतें पिछले दो महीने में तेजी से बढ़ी है।
नारनोलिया सिक्योरिटीज के मुख्य निवेश अधिकारी शैलेंद्र कुमार ने कहा, लॉकडाउन में कच्चे माल व पाट्र्स की आपूर्ति अवरोधित हुई, ऐसे में कई कंपनियों ने उत्पादन घटाया और उच्च मार्जिन वाले उत्पादों पर ध्यान केंद्रित किया। इससे उनका मार्जिन बढ़ा, खास तौर से उपभोक्ता सामान वाले क्षेत्रों में।
तीसरी तिमाही में मार्जिन सामान्य हो सकता है, लेकिन अभी भी यह कोविड पूर्व के वक्त के मुकाबले ज्यादा रह सकता है। कुमार ने कहा, कॉरपोरेट मार्जिन 200-300 आधार अंक ऊपर चला गया है क्योंकि भारतीय कंपनी जगत ने खर्च में भारी कटौती की।
पूंजी बाजार से जुटाई गई रकम 31 फीसदी कम
कंपनियों ने सितंबर महीने में पूंजी बाजार से 75,000 करोड़ रुपये से अधिक राशि जुटाई। यह इससे पिछले महीने अगस्त में जुटाई गई राशि से 31 फीसदी कम है। कंपनियों के लिए वित्त पोषण को लेकर ऋण प्रतिभूतियों का निजी नियोजन सर्वाधिक तरजीही मार्ग बना हुआ है। मुख्य रूप से व्यापार विस्तार योजनाओं के वित्त पोषण, कर्ज भुगतान और कार्यशील पूंजी जरूरतों को पूरा करने के लिए राशि जुटाई गई। बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास उपलब्ध आंकड़े के अनुसार कंपनियों ने इस साल सितंबर महीने में कुल 75,230 करोड़ रुपये जुटाए। जबकि अगस्त में इक्विटी और ऋण प्रतिभूति जारी कर 1.1 लाख करोड़ रुपये जुटाए गए थे।
कुल 75,230 करोड़ रुपये में से 64,389 करोड़ रुपये ऋण प्रतिभूतियों के निजी नियोजन के जरिए और 9,022 करोड़ रुपये इक्विटी के निजी नियोजन के माध्यम से जुटाए गए। इसमें पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) और तरजीही आबंटन शामिल हैं। व्यक्तिगत तौर पर शेयर के तरजीही आधार पर आबंटन के जरिए 7,684 करोड़ रुपये और 1,338 करोड़ रुपये क्यूआईपी के माध्यम से जुटाए गए। सार्वजनिक निर्गमों से पूंजी जुटाए जाने के मामले में सितंबर महीने में दो आईपीओ के जरिए 1,302 करोड़ रुपये जुटाए गए। भाषा