डॉलर के मुकाबले रुपये में आ रही गिरावट को देखते हुए भारतीय कंपनी जगत कारोबार पर इसके असर को कम करने के लिए कई उपाय कर रहा है। इनमें विदेशी मुद्रा की हेजिंग और क्रॉस-करेंसी कवर तथा उत्पादन लागत कम करने जैसे उपाय शामिल हैं। इसके साथ ही भारतीय कंपनियों ने विदेशी बाजारों से कर्ज लेना भी कम कर दिया है। इस साल जनवरी में कंपनियों ने विदेशी मुद्रा में 12.5 करोड़ डॉलर का कर्ज लिया जो पिछले साल जनवरी के 59.9 करोड़ डॉलर से 79 फीसदी कम है।
शीर्ष कारोबारी समूहों के वित्तीय सलाहकार प्रवाल बनर्जी ने कहा, ‘चालू खाते का घाटा बढ़ने, निर्यात में गिरावट और रुपये में नरमी तेल आयात पर प्रतिकूल असर डाल रहे हैं जिससे मुद्रास्फीति बढ़ने और आगे रुपये के और नरम पड़ने का जोखिम है। इस संकट से निपटने के लिए कंपनियां हेजिंग का सहारा ले रही हैं। कुछ कंपनियां क्रॉस-करेंसी कवर, खर्च घटाने के लिए ब्याज दर स्वैप करने या केवल मूलधन स्वैप की सुविधा के जरिये जोखिम को कम करने में लगी हैं।’
सालाना करीब 20.9 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का आयात करने वाली वाहन कलपुर्जा कंपनियों के मुख्य कार्याधिकारियों का कहना है कि वैश्विक बाजार में उठापटक के कारण रुपये में गिरावट आ रही है। सेटको ऑटो सिस्टम्स के वाइस चेयरमैन उदित सेठ ने कहा, ‘अमेरिका की शुल्क नीतियों से पैदा हुए व्यापार तनाव ने जोखिम उठाने की क्षमता को कम कर दिया है, जिससे डॉलर को ज्यादा सुरक्षित निवेश माना जा रहा है। वैश्विक घटनाक्रम के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था बुनियादी तौर पर मजबूत बनी हुई है।’ उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि वैश्विक उठापटक स्थिर होने के बाद रुपया वापस मजबूत होगा।’
ग्रांट थार्नटन भारत में पार्टनर और ऑटो एवं ईवी उद्योग के लीडर साकेत मेहरा ने भारत के आयात पर संभावित असर को रेखांकित किया है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर, बैटरियों के कलपुर्जे आदि का करीब 60 फीसदी एशिया से, 26 फीसदी यूरोप से और 8 फीसदी उत्तर अमेरिका से आयात करता है। मेहरा ने कहा, ‘रुपये में नरमी आने से विनिर्माताओं, खास तौर पर इलेक्ट्रिक वाहन और लक्जरी कार सेगमेंट की लागत बढ़ गई है।’
इसी तरह फार्मास्युटिकल क्षेत्र 65 से 70 फीसदी सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (एपीआई) और दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाला प्रमुख कच्चा माल चीन से आयात किया जाता है। ये आयात आम तौर पर 90 दिन के अनुबंध के तहत किए जाते हैं और कंपनियां बफर स्टॉक बनाए रखती हैं जिससे मुद्रा में उतार-चढ़ाव का प्रभाव थोड़ा देर से होता है।
मॉरपेन लैब्स के निदेशक कुशल सूरी ने कहा कि एपीआई के दाम पिछले सालनवंबर से ही बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘कुल मिलाकर चौथी तिमाही में लागत में 3 से4 फीसदी बढ़ी है, जिसका मुख्य कारण डॉलर-रुपये में उतार-चढ़ाव है।’रुपये में नरमी का असर विमानन उद्योग पर भी पड़ा है।
इंडिगो के मुख्य वित्त अधिकारी गौरव नेगी ने कहा कि दिसंबर तिमाही में आय उम्मीद से बेहतर रहने के बावजूद डॉलर के मुकाबले रुपये में नरमी से मुनाफे पर असर पड़ा है। विमानन उद्योग को विमान पट्टे की देनदारियों और रखरखाव लागत डॉलर में खर्च करने होते हैं और रुपया के कमजोर होने से कंपनियों की लागत पर असर पड़ता है।
नेगी ने कहा, ‘अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती के कारण तीसरी तिमाही में रुपये में लगातार नरमी का रुख बना रहा और तिमाही के अंत तक रुपया करीब 2 फीसदी नरम हुआ, जिससे कंपनी को करीब 1,400 करोड़ रुपये का विदेशी मुद्रा में मार्क-टु-मार्केट नुकसान उठाना पड़ा।’ उन्होंने बताया कि रुपये के विनिम दर में प्रत्येक 1 रुपये की गिरावट से शुद्ध 790 करोड़ रुपये की मार्क-टु-मार्केट नुकसान होता है। मुद्रा में उठापटक के प्रभाव को कम करने के लिए इंडिगो ने विदेशी मुद्रा की हेजिंग कर रही है और दिसंबर तिमाही में उसे हेजिंग अनुबंध में 59.1 करोड़ रुपये का लाभ हुआ है। उन्होंने कहा, ‘आगने हम हेजिंग को और बढ़ा रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय उड़ान की क्षमता बढ़ाने के साथ स्वाभाविक हेजिंग का
लाभ उठाएंगे।’
रोजमर्रा के सामान बनाने वाली एफएमसीजी कंपनियां पाम तेल के लिए आयात पर निर्भर हैं। हिंदुस्तान यूनिलीवर के मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध निदेशक रोहित जावा ने दिसंबर तिमाही के नतीजों के बाद विश्लेषकों के साथ बातचीत में कहा था, ‘क्रूड पाम तेल और चाय की कीमतों में तेजी देखी जा रही है जबकि सोडा ऐश की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं। हालांकि तीसरी तिमाही में कच्चे तेल के दाम में नरमी आई थी मगर रुपया करीब 1 फीसदी टूट गया। हाल के हफ्तों में कच्चा तेल, पाम तेल और रुपये में भारी उठापटक देखा जा रहा है। हम कीमतों में उतार-चढ़ाव पर नजर रख रहे हैं और जल्द ही जरूरी कदम उठाएंगे।’
लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) के अधिकारियों ने कहा कि रुपये में नरमी से कंपनी को फायदा हो रहा है। एलऐंडटी के मुख्य वित्त अधिकारी आर शंकर रमन ने कहा कि शुद्ध विदेशी मुद्रा प्राप्तकर्ता के रूप में कंपनी को कमजोर रुपये से लाभ होता है। उन्होंने भरोसा जताया कि एलऐंडटी के विदेशी मुद्रा ऋण को पूरी तरह से हेज किया है जो कंपनी को मुद्रा में अस्थिरता से बचाते हैं।
First Published - February 6, 2025 | 9:56 PM IST
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