बिक्री में लगातार हो रही गिरावट के कारण देश के वाणिज्यिक वाहन निर्माताओं को करीब 6,000 करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है। क्रिसिल रेटिंग्स के मुताबिक, बिक्री में 30 फीसदी की गिरावट से इस वित्त वर्ष में वाणिज्यक वाहन निर्माताओं का शुद्ध घाटा करीब छह गुना बढ़कर 6,000 करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा।
रेटिंग एजेंसी ने कहा, डीलरों और आपूर्ति करने वालों को सहारा देने के कारण कार्यशील पूंजी में इजाफे से अच्छा खासा नकदी प्रवाह नकारात्मक हो सकता है और इस वजह से कर्ज में बढ़ोतरी हो सकती है।
वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री को ओवरलोडिंग के नए नियमों और सुस्त होती अर्थव्यवस्था से झटका लगा, जब कोविड-19 महामारी का आगाज हुआ, जिसके कारण वित्त वर्ष 2020 में बिक्री 29 फीसदी तक फिसल गई। महामारी के कारण हुए लॉकडाउन से इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में बिक्री और 85 फीसदी ढह गई।
औद्योगिक गतिविधियों में नरमी से मध्यम व भारी वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री पर काफी असर पड़ा है, जो उद्योग के राजस्व में दो तिहाई का योगदान करता है। हल्के वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री बेहतर रह सकती है क्योंंकि उसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था और निजी उपभोग से
सहारा मिलेगा।
क्रिसिल रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक मनीष गुप्ता ने कहा, लगातार दो वर्षों में बहुत ज्यादा गिरावट के कारण वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री 10 साल के निचले स्तर पर पहुंच सकती है। इस्तेमाल का स्तर एक तिहाई रह जाने, भारी-भरकम फिक्स्ड लागत से वाणिज्यिक वाहन निर्माताओं के लाभ पर चोट पहुंचेगी। इसके अतिरिक्त विनिर्माता बीएस-6 के उन्नयन की लागत के एक हिस्से का भार खुद उठा सकते हैं ताकि मांग में तेजी आए। इससे इस सेगमेंट का परिचालन मार्जिन शून्य के करीब आ जाएगा, जो पहले ही वित्त वर्ष 2020 में 6 फीसदी के निचले स्तर पर है। साथ ही उनका नुकसान बढ़ जाएगा।
उन्होंने कहा, इसके अलावा प्रमुख हितधारकों को सहारा देने को प्रेरित होंगे ताकि वैल्यू चेन में दबाव कम हो। इसके लिए डीलरों को भुगतान की शर्तों में नरमी और वाहन कलपुर्जा आपूर्ति करने वालों को समय पर भुगतान शामिल है। इससे अस्थायी तौर पर कार्यशील पूंजी की दरकार बढ़ जाएगी औरउदद्योग का कर्ज एक तिहाई बढ़कर इस वित्त वर्ष में 40,000 करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा।