वस्त्र विनिर्माताओं ने सरकार से सभी मूल्य वर्गों वाले सभी परिधानों को 5 प्रतिशत जीएसटी स्लैब में लाने की मांग की है। वर्तमान में 1,000 रुपये से कम कीमत वाले परिधान 5 प्रतिशत के जीएसटी स्लैब के तहत आते हैं तथा 1,000 रुपये से अधिक कीमत वाले परिधान 12 प्रतिशत के जीएसटी स्लैब के तहत आते हैं।
क्लोदिंग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएमएआई) ने अपने नोट में कहा कि अगर कुछ हिस्से 18 प्रतिशत वाले जीएसटी स्लैब के अंतर्गत आते हैं, तो यह उद्योग के लिए विनाशकारी होगा। नोट में यह भी कहा गया है कि अगर परिधान उद्योग के लिए जीएसटी स्लैब अधिक रहता है, तो यह बात विनिर्माताओं को अपने उत्पादों की गुणवत्ता और कीमतें कम करने के लिए उकसाएगी जिससे वे कम कर वाले स्लैब में आ सकें।
दोनों स्लैब के बीच का अंतर फिलहाल 5 प्रतिशत और 12 प्रतिशत है। यह अंतर 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत हो जाएगा। इससे बिल कम करके दिखाने, हानिकारक कार्यप्रणाली और ग्रे मार्केट को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि विनिर्माता इतनी अधिक दर पर जीएसटी चुकाने के बजाय वहां का रुख करना पसंद कर सकते हैं।
सीएमएआई के चीफ मेंटर राहुल मेहता ने प्रस्तावित जीएसटी सुधारों के संबंध में कहा, ‘प्रस्तावित जीएसटी सुधार परिधान उद्योग के लिए तभी फायदेमंद होंगे, जब वस्त्र की पूरी मूल्य श्रृंखला को 5 प्रतिशत की स्लैब के अंतर्गत लाया जाए, जिसकी मांग परिधान उद्योग जीएसटी लागू होने के दिन से ही कर रहा है। इससे कपड़े सस्ते होंगे और उल्टे शुल्क ढांचे की समस्या भी खत्म होगी। इसलिए मैं सरकार से वस्त्रों की पूरी मूल्य श्रृंखला को 5 प्रतिशत की स्लैब के अंतर्गत लाने की सिफारिश और आग्रह कर रहा हूं।