सीमेंट कंपनियां भले ही महत्वाकांक्षी विस्तार योजनाओं की घोषणाएं कर रही हों, लेकिन विश्लेषक इस क्षेत्र के संबंध में सतर्क रुख अपना रहे हैं। मांग वृद्धि की कमजोर अवधि तथा ईंधन की अधिक लागत, कमजोर मॉनसून और आम चुनावों की वजह से पैदा होने वाले प्रतिकूल हालात का असर आपूर्ति पर दिखने के आसार हैं।
अगस्त में जेएसडब्ल्यू सीमेंट ने कहा था कि वह अगले पांच साल में 1.9 करोड़ टन की अपनी मौजूदा क्षमता को बढ़ाकर छह टन करेगी। देश की शीर्ष सीमेंट कंपनियों की बड़े स्तर पर विस्तार योजनाएं चल रही हैं। अल्ट्राटेक सीमेंट ने 20 करोड़ टन का लक्ष्य रखा है, अदाणी सीमेंट ने 14 करोड़ टन का लक्ष्य रखा है और डालमिया सीमेंट ने 11 से 13 करोड़ टन की योजना बनाई है। केयर रेटिंग्स की एसोसिएट निदेशक रवलीन सेठी का अनुमान है कि वित्त वर्ष 26 तक 8.5 करोड़ टन की वृद्धिशील क्षमता होगी और उसके लिए लगभग 67 से 69 प्रतिशत क्षमता उपयोग होगा, जो मांग-आपूर्ति अंतर का संकेतक है। यह क्षमता विस्तार चुनाव के बाद मांग में नरमी के अनुरूप रहेगा।
सेठी का कहना है कि चालू वर्ष दमदार वृद्धि का लगातार तीसरा वर्ष होगा और वित्त वर्ष 2025 में मांग वृद्धि में कमी हो सकती है, क्योंकि आम चुनाव के बाद निर्माण गतिविधि आम तौर पर धीमी हो जाती है। उन्होंने कहा कि हालांकि वृद्धि की राह में यह अस्थायी गिरावट होनी चाहिए।
निकट भविष्य में प्रतिकूल परिस्थितियां दिखने वाली हैं। अलबत्ता विश्लेषकों का कहना है कि ऐसा कब होगा, यह अभी देखा जाना है। उन्होंने कहा कि लागत और मांग के जो अनुकूल कारक नजर आ रहे हैं, वे प्रतिकूल परिस्थितियों में तब्दील हो सकते हैं। देखने वाली बात यह है कि ऐसा होने में तीन से चार महीने का समय लगता है या नहीं।
मॉनसून में हालिया कमजोरी ने विश्लेषकों को इस क्षेत्र के संबंध में सतर्क कर दिया है। सेंट्रम के विश्लेषकों ने 13 सितंबर की एक रिपोर्ट में लिखा है कि इस साल कम बारिश की वजह से हम सीमेंट क्षेत्र को लेकर सतर्क हैं और आगामी आम चुनावों के कारण मांग में कमी आने की संभावना है। परिचालन लागत अपने निचले स्तर से बढ़ने लगी है और आपूर्ति की मात्रा रफ्तार पकड़ रही है। व्यक्तिगत रूप से काम करने वाले आवास बिल्डर (आईएचबी), जो अर्ध-शहरी और ग्रामीण बाजारों में अधिक प्रचलित हैं, सीमेंट उत्पादकों का महत्वपूर्ण ग्राहक खंड होते हैं। कृषि आय में किसी भी संभावित गिरावट का इन बाजारों की सीमेंट मांग पर सीधा असर पड़ता है।
विश्लेषकों के अनुसार ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से सीमेंट कंपनियों की लागत भी दबाव में आ सकती है। उनका कहना है कि आयातित कोयले और पेटकोक की कीमतों में पिछले तीन महीने के दौरान वृद्धि दर में दो अंकों का इजाफा देखा गया है।