कई दिवालिया कंपनियों के ऋण समाधान प्रक्रिया की बढ़ती लागत से बैंकरों की चिंता बढऩे लगी है क्योंकि कंपनी की आय का एक उल्लेखनीय हिस्सा समाधान पेशेवरों एवं अन्य सलाहकारों के भुगतान में खर्च हो रहा है। बैंकरों का कहना है कि ऋण समाधान बिल काफी बढ़ रहा है क्योंकि समाधान पेशेवर कंपनी के बाहर से मानव संसाधनों और ऑडिट/कानून सलाहकारों की सेवाएं ले रहे हैं ताकि सभी खामियों को दूर किया जा सके।
दिवालिया कंपनियों को विशेष फोरेंसिक ऑडिट और कानूनी राय लेने के लिए भी भुगतान करना पड़ता है। इस प्रकार की सेवाओं की जरूरत इसलिए पड़ती है ताकि यह देखा जा सके कि पिछले प्रवर्तकों ने कहीं रकम ही हेराफेरी तो नहीं की है। इस प्रकार खर्च बढऩे से अंतत: लेनदारों और पूर्व कर्मचारियों को अपने बकाये के लिए अधिक इंतजार करना पड़ेगा।
आईबीसी 2016 के अनुसार, जब किसी कंपनी को ऋण समाधान के लिए नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में भेजा जाता है तो कंपनी के परिचालन के लिए एक समाधान पेशेवर की नियुक्ति की जाती है। समाधान पेशेवर ही किसी संभावित खरीदार की तलाश करता है जबकि कंपनी के बोर्ड और उसके पूर्व प्रवर्तकों को निलंबित कर दिया जाता है। ऐसे में कंपनी की आय का इस्तेमाल ऋण समाधान की लागत के भुगतान में किया जाता है।
इस मामले के एक करीबी सूत्र ने कहा, ‘यह बड़ी ऑडिट फर्मों के लिए फायदेमंद है क्योंकि उन्हें सभी अनुबंध मिल रहे हैं। पिछले प्रवर्तकों और अन्य परिचालन लेनदारों द्वारा व्यापक मुकदमेबाजी से अंतत: बिल में इजाफा होता है।’ उन्होंने कहा, ‘आमतौर पर मुकदमेबाजी काफी लंबे समय के लिए खिंच जाती है और इस दौरान ऋण समाधान प्रक्रिया से जूझ रही कंपनी को सभी बिलों का भुगतान करना पड़ता जिसमें कानूनी राय लेने की लागत भी शामिल होती है।’
अधिकारी ने कहा, ‘इसका अंतिम नतीजा दिवालिया कंपनियों के लिए भारी घाटे, छंटनी और लेनदारों द्वारा बकाये की मामूली वसूली के रूप में सामने आता है।’ उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एयरसेल के ऋण समाधान प्रक्रिया की लागत में करीब 320 करोड़ रुपये समाधान पेशेवर की प्रक्रिया और वेतन मद में खर्च हुए। इसी प्रकार 2017 से ही ऋण समाधान की प्रक्रिया से गुजर रही कंपनी वीडियोकॉन को केवल समाधान प्रक्रिया के लिए सालाना करीब 10 करोड़ रुपये खर्च करना पड़ रहा है।
अधिकारी ने कहा, ‘ऋण समाधान से जूझ रही अधिकतर कंपनियां मुकदमेबाजी में फंसी हुई हैं और मुकदमेबाजी के खत्म होने की कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं दिख रही है। ऐसे में समाधान पेशेवरों की लागत में इजाफा हो रहा है और उन्हें प्राथमिकता के आधार पर भुगतान किया जाता है।’
इस बीच, बैंकों को अपनी ब्याज आय भी गंवानी पड़ रही है।
आईबीबीआई के अनुसार, 1 दिसंबर 2016 से कॉरपोरेट दिवालिया प्रक्रिया के प्रावधानों के प्रभावी होने के बाद इस साल मार्च के अंत तक करीब 3,774 सीआईआरपी के मामले सामने आए। इनमें से 312 मामलों को अपील पर निपटा लिया गया जबकि 157 मामलों को वापस ले लिया गया। करीब 914 मामले परिसमापन के आदेश के साथ ही खत्म हो गए जबकि 221 मामलों के लिए समाधान योजनाओं को मंजूरी दी गई। दिवालिया कंपनियों से बैंक अपने बकाये का औसतन 45 फीसदी हिस्सा ही वसूल पा रहे हैं।
