देश के टायर विनिर्माताओं को चूंकि लगातार कच्चे माल की बढ़ती लागत की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए अपोलो टायर्स बढ़ती लागत में कमी करने और पर्यावरण संबंधी असर कम करने के लिए प्राकृतिक रबर के विकल्प तलाश रही है।
कंपनी उन नवीन, जैव आधारित सामग्रियों का विकास करने के लिए अनुसंधान संस्थानों के साथ गठजोड़ कर रही है, जिनका इस्तेमाल टायर उत्पादन में किया जा सके। इसके अलावा अपोलो टायर्स ने टायरोमर के साथ साझेदारी की है ताकि अपनी उत्पादन प्रक्रिया में जीवन-काल समाप्त कर चुके टायरों की रिसाइकल्ड रबर शामिल की जा सके। यह रणनीतिक कदम कंपनी के पर्यावरण लक्ष्यों के अनुरूप है।
अपोलो टायर्स के मुख्य वित्तीय अधिकारी गौरव कुमार ने कहा, ‘हम हरित भविष्य के लिए प्रतिबद्ध हैं।’ उन्होंने कहा, ‘हमारा लक्ष्य साल 2030 तक अपनी 40 प्रतिशत सामग्री नवीकरणीय या रिसाकल्ड स्रोतों से हासिल करना है।’
प्राकृतिक रबर के दामों में निरंतर उतार-चढ़ाव के साथ-साथ देश में रबर की कमी से विनिर्माताओं पर दबाव पड़ा है। प्राकृतिक रबर की कीमतों में बड़ा उतार-चढ़ाव हो रहा है और उद्योग घरेलू स्तर पर लगभग 5,50,000 टन की कमी से जूझ रहा है। हालांकि अपोलो और अन्य टायर विनिर्माता बढ़ती लागत को कम करने के लिए कदम उठा रहे हैं, लेकिन कुल मिलाकर उद्योग के सामने खासी चुनौतियां हैं।
ऑल इंडिया रबर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष शशि सिंह ने कहा, ‘प्राकृतिक रबर की कीमतों में काफी उतार-चढ़ाव हुआ है, जिसमें 13 प्रतिशत की कमी के बाद 55 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।’
उन्होंने कहा, ‘इस उतार-चढ़ाव के साथ-साथ भारत की आयातित रबर पर निर्भरता की वजह से लागत का बड़ा दबाव पड़ा और आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान पैदा हुए।’