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दिवाला संहिता में दाखिल होने के पहले निपटे 18,000 मामले

Last Updated- December 12, 2022 | 1:32 AM IST

कंपनी मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 5 लाख करोड़ रुपये के 17,800 से ज्यादा मामले दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) में दाखिल होने के पहले ही निपटा दिए गए। जुलाई, 2021 तक कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के लिए 4,570 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से 10 प्रतिशत से कम निपटाए गए मामलों की वसूली राशि 2.5 लाख करोड़ रुपये है। 
परिसमापन के लिए 1,371 मामले गए और 466 मामले जुलाई तक वापस ले लिए गए थे। संपत्तियों का मूल्य कम होने और कर्जदाताओं की समिति के व्यवहार की वजह से प्रक्रिया में देरी हुई और समाधान के बाद कठिनाइयां आईं। कंपनी मामलों का मंत्रालय दिवाला एवं ऋण शोधन संहिता की चुनौतियों पर चर्चा कर रहा है, जो अब 5 साल पुराना कानून हो गया है। 

आईबीसी के 5 साल पूरे होने के मौके पर भारतीय उद्योग परिसंघ की ओर से आयोजित कार्यक्रम में कंपनी मामलों के सचिव राजेश वर्मा ने कहा, ‘तमाम मसले खत्म किए गए हैं। हम इस अहम वक्त में शेष आईबीसी मसलों के समाधान के लिए उद्योग से चर्चा कर रहे हैं।’ वर्मा ने कहा कि भारतीय दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) इंडियन बैंक एसोसिएशन, भारतीय रिजर्व बैंक और वित्तीय सेवा विभाग कर्जदाताओं की आचार संहिता बनाने के लिए बात कर रहे हैं।
 

उद्योग के विशेषज्ञों की राय है कि कर्जदाताओं की समिति के लिए नियामक रिजर्व बैंक है, आईबीबीआई नहीं। आईबीसी पर सीआईआई सीआईआई कार्यबल के चेयरमैन शार्दूल श्राफ ने कहा, ‘यह कहना कि आईबीसी के माध्यम से आचार संहिता आएगी, असंगत होगा। इन दोनों में तालमेल नहीं हो सकता। सीओसी का कामकाज आईबीसी में संशोधित किया जा सकता है।’ वर्मा ने कहा कि आईबीसी से कर्जदाताओं को परिसमापन मूल्य का 180 प्रतिशत हासिल करने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि 30 प्रतिशत कंपनियों का समाधान चिंता की बात नहीं थी। 
एमसीए सचिव ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण में रिक्तियां भरने में देरी के समाधान के आदेश दे दिए गए हैं और ई-न्यायालयों के साथ बुनियादी ढांचा दुरुस्त किया जा रहा है। सेमीनार में मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यन ने कहा कि आईबीसी ने विभिन्न हिस्सेदारों के हितों में संतुलन स्थापित करने में मदद की है। 

देश में दिवाला मामलों के समाधान के लिए संहिता होने से सभी साझेदारों के बीच संतुलन स्थापित होने के साथ समयबद्ध तरीके से काम पूरा करके आर्थिक मूल्यों को संरक्षित किया जा सकेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस बात की पहचान करने की जरूरत है कि अगर सब कुछ बेहतर होने पर अगर कोई पुरस्कार पाता है तो कॉन्ट्रैक्ट के अन्य हिस्से को भी उसी तरह सम्मान देने की जरूरत है।

First Published - August 27, 2021 | 8:54 PM IST

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