भीषण गर्मी और बिजली की जबरदस्त मांग के सभी रिकॉर्ड 2024 में टूटने के बाद इस साल गर्मी के दौरान दोनों मामलों में और तेजी दिखते के आसार हैं। देश के सभी हिस्से भीषण गर्मी से निपटने के लिए तैयार हैं। ऐसे में बिजली की मांग बढ़कर 270 गीगावॉट की ऐतिहासिक ऊंचाई तक पहुंचने का अनुमान है।
बिजली क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल भी मांग को ताप बिजली के सहारे पूरा किया जाएगा। अक्षय ऊर्जा क्षमता में पर्याप्त वृद्धि होने के बावजूद देश में बिजली की कुल आपूर्ति में ताप बिजली की हिस्सेदारी अभी भी काफी अधिक है।
संभावित मांग को पूरा करने के लिए ताप बिजली संयंत्रों के पास 5 करोड़ टन कोयले का स्टॉक तैयार किया गया है। केंद्रीय कोयला और खान मंत्री जी किशन रेड्डी ने पिछले महीने बताया था कि अगले वित्त वर्ष के लिए कोयले की मांग 90.6 करोड़ टन तक पहुंचने का अनुमान है। कोयला मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘24 जनवरी तक ताप बिजली संयंत्रों में कोयले का स्टॉक 4.7 करोड़ टन से अधिक हो चुका था। अब हमारे ताप बिजली संयंत्रों के पास 5.1 करोड़ टन से ज्यादा कोयला उपलब्ध है। हम आगामी गर्मी के लिए आकस्मिक योजना के साथ पूरी तरह तैयार हैं।’
विशेषज्ञों का कहना है कि आम तौर पर गर्मी के महीनों में उत्तरी क्षेत्र में बिजली की मांग बढ़ जाती है, लेकिन हाल के वर्षों में हर महीने कुछ न कुछ नया देखने को मिल रहा है। अधिकारी ने कहा, ‘बिजली की मांग को मुख्य रूप से उत्तरी राज्यों से रफ्तार मिलती है, लेकिन पूर्वी क्षेत्र में भीषण गर्मी और दक्षिणी क्षेत्र से भारी औद्योगिक मांग के कारण बिजली की समग्र मांग बढ़ जाती है। इसलिए आपूर्ति की योजना तैयार करते समय इन बातों को भी ध्यान में रखा जा रहा है।’
केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने पनबिजली परियोजनाओं को जल संरक्षित करने की सलाह दी है ताकि अत्यधिक मांग वाले महीनों में आपूर्ति बढ़ाई जा सके। साथ ही कोयले से चलने वाली बिजली उत्पादन इकाइयों को उनके इष्टतम स्तर पर परिचालन का निर्देश दिया गया है। गैस से चलने वाली बिजली उत्पादन इकाइयां पहले की ही तरह एक विशेष योजना के तहत परिचालीन करेंगी। एक अधिकारी ने कहा, ‘मांग को पूरा करने में अक्षय ऊर्जा से काफी मदद मिलने की उम्मीद है लेकिन ताप बिजली इकाइयों की हिस्सेदारी अधिक रहेगी।’
देश भर में कोयले की निर्वाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए रेलवे कोशिश कर रहा है कि बिजली की सर्वाधिक मांग वाले सीजन में कोई तात्कालिक देनदारी न बने। रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘कोयले का स्टॉक पहले से ही बढ़ाने के लिए कोयला मंत्रालय और ताप बिजली संयंत्रों के साथ बातचीत चल रही है। ऐसे में पीक सीजन के दौरान भी नियमित आपूर्ति से ही काम चल जाएगा क्योंकि ताप बिजली संयंत्रों के पास पहले से ही पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध होगा।
अधिकारी ने कहा कि रेलवे की सेवाएं लेने वाले 90 फीसदी तक बिजली संयंत्रों ने इस योजना पर सहमति जताई है और वे इस पर काम कर रहे हैं। शेष 10 फीसदी संयंत्रों में अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए रेलवे, बिजली और कोयला मंत्रालयों के बीच बातचीत जारी है।
पंजाब से लेकर बिहार तक 51,000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर ने पिछले साल कोयले के परिवहन में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई थी। इससे यह सुनिश्चित हुआ कि 2022 जैसी स्थिति दोबारा न दिखे। उस दौरान देश भर में कोयले की कमी को दूर करने के लिए रेलवे को 1,100 से अधिक यात्री ट्रेन को रद्द करना पड़ा था।
डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के अधिकारी ने कहा, ‘कुंभ मेले के कारण पिछले कुछ महीनों के दौरान काफी आंतरिक क्षमता का निर्माण हुआ है। इसलिए उस क्षेत्र में अधिकांश माल ढुलाई ईस्टर्न कॉरिडोर के जरिये हुई। हमने प्रक्रियाओं को और अधिक कुशल बनाया है ताकि जरूरत पड़ने पर अधिक से अधिक कोयले की आपूर्ति की जा सके।’
आम तौर पर ईस्टर्न कॉरिडोर के जरिये इन दिनों रोजाना 65 से 70 रेक कोयले की ढुलाई होती है। लंबी दूरी की ट्रेनों के परिचालन के जरिये उसे बढ़ाया भी जा सकता है क्योंकि वे दोगुनी मात्रा में कोयले की ढुलाई कर सकती हैं। एक रेक में 59 डब्बे होते हैं और बिजली संयंत्रों द्वारा 1800 मेगावॉट बिजली पैदा करने में करीब 10 रेक कोयले का उपयोग किया जा सकता है। पिछले साल जून में ईस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर से जुड़े करीब 20 बिजली संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति करने के लिए रोजना 15 से 20 लंबी दूरी के ट्रेनों का संचालन किया जा रहा था। मंत्रालय ने 2025-26 में 65.6 करोड़ टन कोयले की ढुलाई का लक्ष्य रखा है।