मौसमी परिस्थितियों के चलते इस साल चीनी की औसत रिकवरी 0.7 फीसदी घटने का अनुमान है। गन्ने की फसल ठीक से तैयार न हो पाने को इसकी वजह बताई जा रही है।
आकलन है कि इस बार उत्तर प्रदेश में गन्ने की औसत रिकवरी पिछले साल के 9.9-10 फीसदी से घटकर महज 9.2 फीसदी रह जाएगा।
इसी प्रकार, महाराष्ट्र जहां चीनी की रिकवरी देश भर में सबसे ज्यादा रहती है, में रिकवरी दर इस बार 10.8-11 फीसदी के आसपास रहने का अंदाजा है।
मालूम हो कि पिछले साल यहां यह दर 11.5-11.7 फीसदी तक गई थी। गौरतलब है कि चीनी की रिकवरी दर प्रति टन गन्ने की पेराई से मिलने वाली चीनी से मालूम होती है।
उद्योग से जुड़े लोगों के मुताबिक, यदि ट्रासपोर्टरों की हड़ताल लंबे समय तक खिंची तो रिकवरी दर और गिरेगी। ऐसा इसलिए कि कटाई के 3-4 दिनों तक यदि गन्ने की पेराई नहीं होती है, तो सुक्रोस में तेजी से कमी होती है।
लेकिन कोहरे के साथ कुछ घंटों की धूप होने से कटाई के बाद गन्ने में सुक्रोस का स्तर 5-6 दिनों तक बरकरार रहती है। जबरदस्त कोहरे के कारण खेतों में खड़ी गन्ने की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे भी सुक्रोस का स्तर घटता है।
चीनी की रिकवरी दर में संभावित इस कमी के मद्देनजर देश में चीनी के कुल उत्पादन को एक बार फिर संशोधित किया गया है। पहले जहां चीनी का अनुमानित उत्पादन 1.9 से 2 करोड़ टन के बीच रहने का अंदाजा था, वहीं अनुमान है कि अब उत्पादन 1.7 से 1.8 करोड़ टन के बीच रहेगा।
हालांकि देश में चीनी का उत्पादन अब भी 2.25 करोड़ टन के आसपास रहने का अनुमान है। वहीं चीनी का पिछले साल का कैरी ओवर स्टॉक 1.1 करोड़ टन है। शुरुआती संकेत मिल रहे हैं कि कर्नाटक में चीनी की रिकवरी दर इस बार उत्तर प्रदेश से ज्यादा रही है।
उत्तर प्रदेश में रिकवरी दर जहां 9.8 फीसदी रही, वहीं कर्नाटक के बारे में अनुमान है कि यहां यह 10.87 फीसदी के आसपास रही। 11.92 फीसदी के साथ महाराष्ट्र में चीनी रिकवरी सबसे बढ़िया रही है।
सिंभौली शुगर्स मिल्स लिमिटेड के वित्त निदेशक संजय तापड़िया के अनुसार, बारिश में देरी के साथ कम उपज और न्यूनतम सुक्रोस के चलते इस बार चीनी की रिकवरी दर पर काफी बुरा असर पड़ा है।
मानसून के देर होने और खेतों में ज्यादा नमी रहने से रिकवरी प्रभावित हो रही है। उल्लेखनीय है कि फसल कटते वक्त खेतों में ज्यादा नमी होने से गन्ने का वजन बढ़ जाता है। गन्ने में जब पानी की मात्रा अधिक हो जाती है तो सुक्रोस कम हो जाता है। इससे चीनी की रिकवरी कम हो जाती है।
तापड़िया का यह अनुमान भी है कि इस बार उत्तर प्रदेश में चीनी का उत्पादन 30 फीसदी कम होकर 52 से 53 लाख टन हो जाएगा, जो पिछले चीनी वर्ष में 72 लाख टन रहा था।
उधर कम उत्पादन की संभावना और ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल के चलते हाजिर और वायदा बाजार में चीनी की कीमतों में वृद्धि होनी शुरू हो गई है। मिल डिलीवरी चीनी की एस-30 और एम-30 दोनों किस्मों की कीमत में बढ़ोतरी हुई है।
राजेंद्र शाह नामक एक कारोबारी के मुताबिक, ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल बुधवार तीसरे दिन भी जारी रहने से चीनी की आपूर्ति पर असर पड़ा है, जिससे कीमतें चढ़नी शुरू हो गई है।
कारोबारियों की राय है कि यदि ऐसा ट्रेंड आगे भी जारी रहा तो महीने के अंत तक चीनी की कीमत 21 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच जाएगी।