रेलवे और ऑटोमोटिव सेक्टर में मांग बढ़ने की वजह से देश में प्रति व्यक्ति स्टेनलेस स्टील की खपत, दो-तीन सालों के दौरान ही दोगुनी हो जाएगी।
इंडियन स्टेनलेस स्टील डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईएसएसडीए) के अध्यक्ष एन. सी. माथुर का कहना है, ‘रेलवे, बस, मॉल, मल्टीप्लेक्स, ऑटोमोटिव सेक्टर, फर्नीचर, किचेन जैसे क्षेत्र के लिए नए तरह उपकरणों के इस्तेमाल से स्टेनलेस स्टील की मांग में बढ़ोतरी होगी क्योंकि इसमें जंग नहीं लगता है।’
आईआईएसडीए का अनुमान है कि 2-3 सालों में प्रति व्यक्ति खपत में बढ़ोतरी होगी और यह 2 किलोग्राम तक हो सकता है जबकि मौजूदा स्तर 1.2 किलोग्राम का है। माथुर का कहना है कि नए एप्लीकेशन के क्षेत्रों में नए बदलाव का लक्ष्य आसानी से हासिल किया जा सकता है।
माथुर हाल ही में लॉन्च हुए दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनों की मिसाल पेश करते हुए कहते हैं कि छोटी कार में कम से कम 5 किलोग्राम स्टेनलेस स्टील का इस्तेमाल होता है और यह बिल्कुल नया क्षेत्र है। उनका कहना है कि नैनो से स्टेनलेस स्टील की मांग में बढ़ोतरी होगी।
सरकार की मानकीकरण करने वाली एजेंसी, ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) ने हाल ही में एलपीजी सिलेंडर के लिए स्टेनलेस स्टील के इस्तेमाल के लिए स्वीकृति दी है। भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (बीपीसीएल) और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) ने सिलेंडर बनाने के लिए स्टेनलेस स्टील उत्पादकों से निविदाएं मंगाई हैं।
वैसे इंडियन रेलवे दो कोच बनाने वाला है, एक केरल और दूसरा उत्तर प्रदेश में। उम्मीद की जा रही है कि इन जगहों पर स्टेनलेस स्टील से 15,000 नए वैगन बनाए जाएंगे। रेलवे को हर एक वैगन के लिए उनकी क्षमता के मुताबिक 7-8 टन स्टेनलेस स्टील की जरूरत होगी। इसके अतिरिक्त रेलवे मंत्रालय ने मौजूदा सुपरफास्ट ट्रेन में कार्बन स्टील और स्टेनलेस स्टील को अलग करने का प्रस्ताव रखा है।
मेट्रो रेल भी एक ऐसा क्षेत्र है जहां भविष्य में स्टील की मांग में बढ़ोतरी होगी। माथुर का कहना है, ‘इन सभी बातों पर गौर करें तो अगले दो सालों में स्टेनलेस स्टील की खपत में बढ़ोतरी होगी, इसके लिए उद्योग को ज्यादा मेहनत करनी होगी और धातु के इस्तेमाल के लिए नए तरीके खोजने होंगे।’
अनुमान है कि भारत में कुल उत्पादन 17 लाख टन है, उसके मुकाबले खपत 13 लाख टन है। देश में 2-3 लाख टन चपटे और लंबे स्टेनलेस स्टील उत्पादों का आयात किया जाता है जबकि हर साल 4 लाख टन का निर्यात किया जाता है। किचेन से संबंधित उत्पादों में कुल 70 फीसदी स्टेनलेस स्टील का इस्तेमाल किया जाता है जबकि आर्किटेक्चर, मॉल, मल्टीप्लेक्स और एयरपोर्ट में लगभग 2 फीसदी तक की खपत की होती है।
स्टेनलेस स्टील का इस्तेमाल करने वाले सेक्टरों में ऑटोमोटिव सेक्टर और रेलवे का लगभग 2 फीसदी हिस्सा है जबकि बाकी दूसरे सेक्टर हैं, जिनमें फर्नीचर भी शामिल है। निकेल की कम होती कीमतों के मद्देनजर स्टेनलेस के फायदे के बारे में पूछने पर माथुर का कहना है, ‘निश्चित तौर पर निकेल की कीमत 53,000 डॉलर प्रति टन से कम होकर 10,600 डॉलर प्रति टन हो गई हैं। इससे स्टेनलेस स्टील उत्पादकों को बहुत फायदा मिला है।’
लौह धातु के एक विशेषज्ञ का कहना है कि वे उत्पाद के मिश्रण में बदलाव करना चाहते हैं, इसके लिए वे निकेल के मुकाबले भारत में मौजूद क्रोमियम का इस्तेमाल करना चाहते हैं। इससे निकेल के बाजार पर उद्योग की निर्भरता खत्म हो जाएगी क्योंकि इस बाजार में बहुत अस्थिरता है।
माथुर का कहना है, ‘हाल ही में एक नई श्रेणी ‘क्रोम 16′ को बाजार में पेश किया गया जो निकेल फ्री था और जिसमें 16 फीसदी क्रोमियम का इस्तेमाल किया गया था। हालांकि यह थोड़ा चुंबकीय था लेकिन हम इसे भारतीय किचेन के लिए अपना कर खुश हैं।’
एक सामान्य स्टेनलेस स्टील 300 सीरिज में 8 फीसदी निकेल का इस्तेमाल होता है जबकि 200 सीरिज में लगभग 1 फीसदी निकेल का इस्तेमाल होता है, इससे अनिश्चिता से भरे निकेल बाजार पर इंडस्ट्री की निर्भरता कम हो रही है।