इस साल, जहां सोने की रिकॉर्ड ब्रेकिंग तेजी ने सुर्खियां बटोरी हैं। वहीं, चांदी चुपचाप दशकों की सबसे शानदार वापसी में से एक कर रही है। साल की शुरुआत में 28.92 डॉलर प्रति औंस पर रहने वाली चांदी सितंबर के अंत तक 46 डॉलर प्रति औंस के पार पहुंच गई, यानी नौ महीनों में 61% की शानदार बढ़त दर्ज की गई। भारतीय निवेशकों के लिए, रुपये में गिरावट ने इस रिटर्न को और भी बढ़ा दिया, जिससे चांदी इस साल की सबसे हॉट संपत्तियों में से एक बन गई है।
टाटा म्युचुअल फंड की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, चांदी की रैली के पीछे इसका दोहरी भूमिका होना प्रमुख कारण है। सोने के विपरीत, जो मुख्य रूप से सुरक्षित निवेश की मांग से बढ़ता है, चांदी एक कीमती धातु होने के साथ-साथ औद्योगिक धातु भी है। ग्लोबल चांदी की लगभग 60% मांग औद्योगिक इस्तेमाल से आती है, और इस साल कई महत्वपूर्ण कारकों ने इसकी कीमतों को तेजी से बढ़ा दिया है।
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चांदी सोलर पैनल, इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिक वाहनों में महत्वपूर्ण है — ये ऐसे सेक्टर जो ग्लोबल स्तर पर तेजी से बढ़ रहे हैं। जैसे-जैसे चीन की अर्थव्यवस्था सुधार के संकेत दिखा रही है, औद्योगिक चांदी की खपत बढ़ रही है। विश्लेषकों के अनुसार, चांदी की सप्लाई में कमी बढ़ रही है, क्योंकि मांग लगातार नई सप्लाई से आगे निकल रही है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने सितंबर 2025 में 25 बेसिस पॉइंट की दर में कटौती की, जिसने डॉलर को कमजोर कर दिया और कीमती धातुओं की कीमतों को बढ़ावा दिया। अक्टूबर में और कटौती की उम्मीद ने चांदी की तेजी को और तेज कर दिया है। ऐतिहासिक रूप से, ब्याज दरों में गिरावट और कमजोर डॉलर चांदी (और सोने) को निवेश के लिए और आकर्षक बनाते हैं।
भारत अपनी चांदी का 92% से ज्यादा आयात करता है, जिसका मतलब है कि कमजोर रुपये से चांदी की घरेलू कीमत बढ़ जाती है। हालांकि इससे महंगाई का दबाव बढ़ता है, भारतीय निवेशकों के लिए यह रिटर्न को ग्लोबल निवेशकों की तुलना में और भी बढ़ा देता है।
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गोल्ड-चांदी अनुपात — जो सापेक्ष मूल्य का एक प्रमुख संकेतक है — सितंबर की शुरुआत में 85 से घटकर लगभग 81 हो गया है, जो दर्शाता है कि चांदी सोने की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रही है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले महीनों में यह अनुपात 75 के करीब जा सकता है, जो चांदी की सापेक्ष ताकत को दर्शाता है।
टाटा म्युचुअल फंड के विशेषज्ञों का मानना है कि मध्यम अवधि में चांदी सोने से बेहतर प्रदर्शन जारी रख सकती है। वेल्थ मैनेजर्स के हाउस व्यू के अनुसार, चांदी की तेजी को निम्नलिखित कारक गति दे रहे हैं:
हालांकि, चांदी सोने की तुलना में काफी अधिक अस्थिर रहती है। अल्पकालिक उतार-चढ़ाव तेज हो सकते हैं, इसलिए इसे मुख्य निवेश की बजाय डायवर्स पोर्टफोलियो का हिस्सा बनाकर रखना बेहतर माना जाता है।
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रिपोर्ट में कहा गया, “हम मानते हैं कि मजबूत निवेश मांग, चांदी की बड़ी सप्लाई कमी और फेड की दर में कटौती मध्यम से लंबी अवधि (तीन से पांच साल के समय में) तक चांदी की कीमतों का समर्थन कर सकती है। अनुकूल गोल्ड/सिल्वर रेशियो, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में सुधार, खासकर चीन से मजबूत औद्योगिक मांग और ग्लोबल सप्लाई में कमी के अनुमान के चलते, चांदी मध्यम अवधि में सोने से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। चांदी एक उभरती हुई ग्रोथ की कहानी है। इसका रुझान मुख्य रूप से औद्योगिक मांग में व्यापक सुधार पर निर्भर करता है। निवेशकों को अल्पकालिक अस्थिरता और आर्थिक चुनौतियों का ध्यान रखना चाहिए।”
टाटा म्युचुअल फंड के आउटलुक के अनुसार, मध्यम अवधि (3–5 साल) में चांदी सोने से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है, हालांकि निवेशकों को अल्पकालिक उतार-चढ़ाव का ध्यान रखना चाहिए।
फाइनैेशियल प्लानर सुझाव देते हैं कि चांदी को एक रणनीतिक जोड़ के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि केवल सट्टेबाजी के तौर पर। इसे ध्यान में रखते हुए निम्न बातें याद रखनी चाहिए:
एलोकेशन: अपनी कुल पोर्टफोलियो का लगभग 5–10% ही चांदी में रखें, अक्सर इसे सोने के साथ कीमती धातुओं के हिस्से के रूप में शामिल करें।
निवेश के विकल्प: शुद्धता और भंडारण की चुनौतियों के कारण भौतिक चांदी खरीदने की बजाय, निवेशक सिल्वर ईटीएफ, सिल्वर म्युचुअल फंड या डिजिटल सिल्वर प्लेटफॉर्म पर विचार कर सकते हैं।
लॉन्ग टर्म आउटलुक: चांदी की औद्योगिक मांग, खासकर नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों में, इसे लॉन्ग टर्म निवेश के लिए आकर्षक बनाती है। लेकिन अस्थिरता के लिए तैयार रहें और उच्चतम कीमतों का पीछा करने से बचें।
डायवर्सिफिकेशन: चांदी को सोने के साथ जोड़ने से संतुलन बनता है — सोना संकट के समय हेज के रूप में, और चांदी विकास पर आधारित निवेश के रूप में काम करती है।