मध्य प्रदेश के सोयाबीन किसान रोहित काशिव को पिछले महीने की शुरुआत तक अच्छी फसल होने की उम्मीद थी। लेकिन इसके बाद बारिश न होने से फसल सूखने का डर सताने लगा और अच्छी पैदावार की उम्मीद धूमिल पड़ने लगी। हालांकि इस महीने बीते कुछ दिनों से हो रही बारिश ने रोहित के चेहरे पर खुशी ला दी है और इस बारिश ने फसल सूखने का खतरा टाल दिया है। सोयाबीन खरीफ सीजन की तिलहन फसलों में सबसे बड़ी फसल है।
जानकारों के मुताबिक हालिया बारिश से इस फसल को फायदा हुआ है और आगे नुकसान की आशंका फिलहाल टल गई है। खरीफ की दूसरी प्रमुख तिलहन फसल मूंगफली पर अभी भी मॉनसून की बेरुखी मंडरा रही है क्योंकि मुख्य उत्पादक राज्य गुजरात के मूंगफली उत्पादक इलाकों में बारिश उतनी नहीं हुई है कि इसकी फसल को लाभ मिले। अरंडी व तिल की फसल पर भी कमजोर मॉनसून की मार पड़ रही है। इनकी बोआई भी कम हुई है।
काशिव ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि हाल की बारिश के बाद अब इस फसल के दानों की प्रगति अच्छी होगी। अगर इस माह पानी नहीं बरसता तो फसल सूख ही जाती। आगे भी मौसम इस फसल के अनुरूप रहा तो उनके 40 एकड़ खेत में इस साल 200 क्विंटल सोयाबीन पैदा हो सकता है। पिछले साल पैदावार 150 क्विंटल थी। मध्य प्रदेश के ही धार जिले के किसान सुनील पाटीदार कहते हैं कि उनकी सोयाबीन 85 से 88 फीसदी तक पक चुकी है। ऐसे में इस हालिया बारिश से उतना लाभ नहीं हुआ है, जितना पछेती किस्म की सोयाबीन की खेती करने वालों को हुआ है। अगर बारिश 15 दिन पहले हो जाती तो फायदा ज्यादा होता।
सोयाबीन उद्योग के प्रमुख संगठन सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के कार्यकारी निदेशक डी एन पाठक ने बताया कि पिछले महीने बारिश न होने से जितना नुकसान होना था, वह तो हो चुका है। लेकिन हाल की बारिश से अब आगे नुकसान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सोयाबीन के कुल रकबे के करीब 15 फीसदी में नमी की कमी हो गई क्योंकि बीच में सूखे जैसे हालात रहे। हल्की और रेतीली मिट्टी में कुछ फसल को नुकसान संभव है।
दाने का आकार छोटा रहने और खराब फलियां बनने के कारण इस क्षेत्र में सोयाबीन की उत्पादकता प्रभावित हो सकती है। उच्च तापमान के कारण मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में कीड़ों, कीटों और बीमारियों से उपज में कुछ कमी आ सकती है। पाठक कहते हैं कि फसल की स्थिति कुल मिलाकर सामान्य है और फिलहाल फसल को कोई बड़ा नुकसान नहीं दिख रहा है। हालांकि नई फसल आने में 10 से 15 दिन की देरी हो सकती है।
इस साल मूंगफली की बोआई 43.81 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो पिछले साल से 3.39 फीसदी कम है। मूंगफली की सबसे ज्यादा खेती गुजरात में होती है। मॉनसून की बेरुखी के कारण इस साल गुजरात में मूंगफली का रकबा करीब 4 फीसदी घटकर 16.35 लाख हेक्टेयर रह गया है।
गुजरात में मूंगफली उत्पादक इलाकों में अभी भी बारिश की कमी है। गुजरात राज्य खाद्य तेल और खाद्य तेल बीज संघ (जीएसईओईओएसए) के अध्यक्ष समीर शाह कहते हैं कि गुजरात में पिछला डेढ़ महीना सूखे जैसा रहा है जिससे मूंगफली समेत अन्य तिलहन फसलों को नुकसान हुआ है।
अब अगर बारिश हुई तो भी बहुत ज्यादा फायदा नहीं होने वाला क्योंकि नए दाने बनना मुश्किल है। हालांकि अब बारिश से दाने का आकार बढ़ने में मदद मिल सकती है। लेकिन पहले ही फसल को काफी नुकसान हो चुका है। उत्पादन कितना प्रभावित होगा, इसका अनुमान लगाना अभी जल्दबाजी होगा।
कमोडिटी एक्सपर्ट इंद्रजीत पॉल ने कहा कि मॉनसून की बेरुखी की सबसे ज्यादा मार गुजरात में मूंगफली की फसल पर ही पड़ने की संभावना है। यहां बोआई भी कम हुई है और ऊपर से पानी भी नहीं बरसा है। मध्य प्रदेश व राजस्थान में बोआई भी ज्यादा हुई और बारिश से फायदा भी हो रहा है। हालांकि इस बारिश से पहले जो नुकसान हो चुका है, उसकी पूरी भरपाई अब संभव नहीं दिख रही है।
दूसरी तिलहन फसल तिल, अरंडी व सूरजमुखी की बोआई में इस साल काफी कमी आई है। अरंडी का रकबा 8 फीसदी और तिल का रकबा 7 फीसदी से ज्यादा घटा है। अरंडी भी सबसे ज्यादा गुजरात में बोई जाती है और बारिश की कमी से उसको भी नुकसान हुआ है।
सेंट्रल ऑर्गेनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (कूइट) के चेयरमैन सुरेश नागपाल की राय में मूंगफली की उत्पादकता जरूर प्रभावित हो सकती है। लेकिन सोयाबीन के उत्पादन में बड़ी गिरावट की आशंका अब हालिया बारिश से खत्म हो गई है। एसईए के मुताबिक गुजरात में बारिश न होने से मूंगफली की उत्पादकता में कमी आ सकती है, जबकि हालिया बारिश से सोयाबीन को फायदा हुआ है।
भले ही तिलहन फसलों की पैदावार उम्मीद के अनुरूप न बढ़े, लेकिन इसका खाद्य तेलों की कीमतों पर खास फर्क नहीं पड़ने वाला है क्योंकि इनके दाम काफी हद तक अंतरराष्ट्रीय बाजार और आयात पर निर्भर है।
नागपाल कहते हैं कि पिछला महीना तिलहन फसलों के लिए सूखा साबित हुआ। फिर भी खाद्य तेलों के दाम नहीं बढ़े, बल्कि इनकी कीमतों में गिरावट ही दर्ज की गई। अब त्योहारों के कारण आगे खाद्य तेलों की मांग बढ़ सकती है। लेकिन इनकी कीमतों में तेजी की उम्मीद नहीं है क्योंकि देश में खाद्य तेलों का आयात काफी हुआ है। अगस्त में रिकॉर्ड 18 लाख टन से ज्यादा खाद्य तेल आयात हुआ।
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने कहा कि हाल में बारिश से तिलहन फसल को फायदा तो हुआ है। लेकिन बीते महीने सूखे के कारण हुए नुकसान से कुल तिलहन उत्पादन में कमी आ सकती है। इस कमी के बावजूद खाद्य तेलों के दामों में बड़ी तेजी की संभावना नहीं है क्योंकि देश में इनके दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर करते हैं और वहां अभी इनके दाम सुस्त हैं।
पिछले साल की तुलना में सरसों, सोयाबीन व सूरजमुखी तेल के भाव 25 से 40 फीसदी कम हैं। ठक्कर कहते हैं कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में किन्हीं कारणों से खाद्य तेलों के दाम बढ़ते हैं तो फिर देश में भी इनकी कीमतों में तेजी आ सकती है।