महाराष्ट्र सरकार अपने राज्य की प्रमुख फसल कपास (Cotton) की उत्पादकता बढ़ाने की नीति तय करेगी। राज्य में कपास की प्रति एकड़ उत्पादन लागत और आय में अंतर को स्वीकार करते हुए सरकार ऐसी नीति तय करने की योजना तैयार कर रही है जिससे कपास का कुल उत्पादन बढ़े और किसानों की आय में इजाफा हो सके। विदर्भ और मराठवाड़ा में कपास प्रमुख फसल है ।
महाराष्ट्र के वाणिज्य मंत्री अब्दुल सत्तार ने बताया कि कपास उत्पादकों के खर्च और उन्हें प्राप्त होने वाली आय के अंतर को कम कर किसानों के हित की नीति तय की जायेगी।
उन्होने कहा कि पिछले सीजन में मीडियम यार्न कॉटन की कीमत 6,620 रुपये प्रति क्विंटल और लॉन्ग यार्न कॉटन की कीमत 7,200 रुपये प्रति क्विंटल थी। वर्ष 2024-25 में मध्यम सूत का कपास 7,125 एवं लम्बे सूत का कपास 7521 प्रति क्विंटल की दर से खरीदी की जायेगी।
सोयाबीन की कम कीमतों के कारण संकट में फंसे सोयाबीन किसानों को भी मदद मिलेगी। सरकार दो हेक्टेयर की सीमा में कपास की फसल के लिए 5,000 रुपये प्रति हेक्टेयर मुआवजा देगी और इस संबंध में कार्यवाही जल्द ही शुरू की जाएगी।
सत्तार ने कहा कि राज्य में 110 केंद्रों के माध्यम से 12 लाख क्विंटल सीसीआई (भारतीय कपास निगम) और 3 लाख 16 हजार 95 क्विंटल कपास निजी बाजार में खरीदा गया है। केंद्र से स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक कपास के दाम बढ़ाने की मांग की है।
सीसीआई कपास की खरीद के लिए ई-फसल निरीक्षण में कपास की खेती का रिकॉर्ड न होने से परेशानी होती है। इस संबंध में ग्राम स्तर पर कृषि सहायकों, तलाठी एवं ग्राम सेवकों की एक समिति का गठन किया गया है और समिति ई-फसल निरीक्षण में पंजीकृत नहीं होने वाले किसानों का पंजीकरण करेगी। इसलिए सीसीआई की कपास खरीद में कोई समस्या नहीं होगी।
राज्य में बी7, बी8 कपास बीज की उपलब्धता के संबंध में सकारात्मक निर्णय लिया जायेगा। तेलंगाना राज्य में कपास की फसल के लिए दी जाने वाली सब्सिडी योजना के बारे में व्यापक जानकारी ली जाएगी। इस सीजन में कपास खरीदी के लिए सीसीआई का खरीदी केंद्र समय पर खुले इसका ध्यान रखा जाएगा।
बुलढाणा जिले के मलकापुर तालुका में एक निजी व्यापारी ने बिना भुगतान किए कपास खरीदकर किसानों को धोखा दिया है। इस संबंध में मामला दर्ज कर लिया गया है और किसानों का पैसा दिलाने की कार्रवाई की जाएगी। कपास की कीमत में बढ़ोतरी को लेकर केंद्र से लगातार फॉलोअप किया जा रहा है। जिन बाजारों में कपास की आवक अधिक होती है, वहां गारंटीशुदा कीमत पर खरीद के बारे में मोटे अक्षरों में सूचना बोर्ड लगाए जाएंगे।
उत्पादकता में पीछे है महाराष्ट्र
कपास उत्पादन के मामले में महाराष्ट्र देश के अन्य सभी राज्यों में भले ही सबसे आगे है, लेकिन उत्पादकता के मामले में राजस्थान और गुजरात से बहुत पीछे है।
महाराष्ट्र में सोयाबीन का भी उत्पादन कम है। देश के सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक मध्य प्रदेश में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 11 से 11.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। जबकि महाराष्ट्र में यह 14 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसलिए सरकार चाहती है कि किसी भी सूरत में कपास और सोयाबीन की उत्पादकता बढ़े। ऐसा होगा तो किसानों की आय बढ़ेगी।
इस समय देश में कुल उत्पादित होने वाले कपास में महाराष्ट्र अकेले 27.10 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। अगर उत्पादकता बढ़ेगी तो उसकी कुल उत्पादन में भागीदारी और बढ़ जाएगी ।
रकबा कम होने की आशंका
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया का मानना है कि पिछले साल के 124.69 लाख हेक्टेयर रकबे की तुलना में खरीफ 2024 सीजन में रकबे में भारी गिरावट आई है।
एसोसिएशन के मुताबिक राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में चालू खरीफ सीजन में कपास की बुआई 40 से 60 प्रतिशत कम है। सबसे बड़े उत्पादक गुजरात में इस साल कपास के रकबे में 12-15 प्रतिशत की गिरावट आने की उम्मीद है।
आंकड़ों के अनुसार खरीफ 2023-24 सीजन के दौरान देशभर में कपास बुवाई का रकबा 124.69 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया था । इसमें से महाराष्ट्र में 42.34 लाख हेक्टेयर रकबे के साथ सबसे ऊपर है। इसके बाद गुजरात 26.83 लाख हेक्टेयर के साथ दूसरे नंबर पर और तेलंगाना 18.18 लाख हेक्टेयर के साथ चौथे स्थान पर है।