अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1,200 डॉलर प्रति टन से अधिक मूल्य के बासमती चावल का ही निर्यात करने की अनुमति देने से भारत के इस जिंस के सालाना निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। यह कयास इस क्षेत्र के दिग्गज कारोबारियों ने जताया है।
भारत ने वित्त वर्ष 23 में करीब 46 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया था। निर्यातकों के अनुसार बासमती चावल का औसत एफओबी (फ्री ऑन बोर्ड) मूल्य 1050 डॉलर प्रति टन है। आमतौर पर तीन फार्म में बासमती चावल का निर्यात होता है – कच्चा या ब्राउन, स्टीम और परमल। इसमें कंपनियों का 50 फीसदी से अधिक निर्यात परमल का होता है और इसका एफओबी मूल्य सीमा 1200 डॉलर से कम है।
भारत से बासमती चावल के नामचीन निर्यातकों में से एक जीआरएम ओवरसीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अतुल गर्ग के अनुसार, ‘लिहाजा 1200 डॉलर की सीमा लगाने का बासमती चावल के निर्यात पर महत्त्वपूर्ण असर होगा। इसका दीर्घकालिक असर इस पर निर्भर करेगा कि निर्यात नीति में बदलाव के प्रति निर्यातकों, घरेलू किसानों और सरकार की प्रतिक्रिया कैसी रहती है।
सरकार ने अपने हालिया आदेश में प्रीमियम बासमती चावल की आड़ में सफेद गैर-बासमती चावल के संभावित ‘अवैध’ निर्यात को रोकने के लिए 1,200 डॉलर प्रति टन से कम दाम के बासमती चावल के निर्यात की अनुमति नहीं देने का फैसला किया है।
वाणिज्य मंत्रालय के रविवार को जारी बयान के मुताबिक उसने व्यापार संवर्द्धन निकाय एपीडा को 1200 डॉलर प्रति टन से नीचे के अनुबंधों को पंजीकृत नहीं करने का निर्देश दिया है। मौजूदा 1,200 डॉलर प्रति टन से नीचे के अनुबंधों को स्थगित रखा गया है। भविष्य के लिए एपीडा के चेयरमैन की अगुवाई में समिति गठित की जाएगी।