रुपये ने मार्च में छह साल की सबसे ज्यादा मासिक बढ़त हासिल की। डीलरों ने कहा कि इसकी वजह मजबूत विदेशी निवेश और स्थानीय मुद्रा के खिलाफ शॉर्ट पोजीशन की बिकवाली रही। नवंबर 2018 में रुपया 6.3 फीसदी चढ़ा था। शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 85.47 पर टिका जो इस वित्त वर्ष का आखिरी कारोबारी सत्र था। मार्च में कुल मिलाकर इसमें डॉलर के मुकाबले 2.39 फीसदी की उछाल दर्ज हुई।
डीलरों ने कहा कि शुक्रवार को भारतीय मुद्रा में 0.4 फीसदी का इजाफा हुआ और इसकी वजह विदेशी बैंकों और निजी बैंकों की डॉलर बिकवाली रही। गुरुवार को रुपया 85.79 पर रहा था। एक निजी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा, हमने महीने के दौरान इक्विटी और डेट दोनों में निवेश देखा और रुपये के खिलाफ दांव लगाने वालों ने अपनी पोजीशन की बिकवाली की। इस बारे में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से निर्देश की भी खबरें थीं।
चालू वित्त वर्ष में रुपये में 2.12 फीसदी की गिरावट आई जबकि वित्त वर्ष 24 में इसमें 1.47 फीसदी की गिरावट आई थी। आईएफए ग्लोबल के संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) अभिषेक गोयनका ने कहा, रुपये की मजबूती का एक प्रमुख चालक आरबीआई लगता है, जो कथित तौर पर बैंकों को ऑनशोर और ऑफशोर बाजारों के बीच बड़े आर्बिट्रेज दांव से बचने की सलाह दे रहा है।
गोयनका ने कहा, विशेष रूप से रुपये में यह तेजी चीनी युआन में स्थिरता के बावजूद आई है। वास्तव में युआन के मुकाबले रुपया कुछ ही सत्रों में 2 फीसदी से अधिक मजबूत हुआ है, जो 12.05 से बढ़कर 11.81 पर पहुंच गया है। साथ ही यह अन्य एशियाई मुद्राओं के मुकाबले 1.5-2.5 फीसदी तक चढ़ा है।
हालांकि 2025 की शुरुआत में भारतीय मुद्रा पर दबाव था। लेकिन केंद्रीय बैंक के आक्रामक हस्तक्षेप के बाद फरवरी से इसमें सुधार शुरू हो गया और मार्च में उसने 2025 में हुए अपने सारे घाटे की भरपाई कर ली। जनवरी-मार्च तिमाही में स्थानीय मुद्रा में 0.12 फीसदी की वृद्धि हुई जो अप्रैल-जून 2023 के बाद से इसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। तब इसमें 0.17 फीसदी का इजाफा हुआ था। हालांकि, अप्रैल में घरेलू मुद्रा पर फिर से दबाव आ सकता है क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) देसी बाजारों से निकासी शुरू कर सकते हैं जिससे रुपया 86 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर सकता है।
एक सरकारी बैंक के डीलर ने कहा, साल की शुरुआत में रुपया भू-राजनीतिक मुद्दों के कारण दबाव का सामना कर रहा था। आरबीआई ने बाजार के सभी तीनों खंडों में कदम रखा। स्वैप ने मदद की और फिर मार्च में साल और तिमाही खत्म होते हैं जिसमें हमने निवेश देखा। इससे भी रुपये को मदद मिली। डॉलर इंडेक्स भी इस दौरान स्थिर रहा। लेकिन अप्रैल से रुपया दबाव में आ सकता है क्योंकि एफआईआई फिर से निकासी शुरू कर सकते हैं।
अब ट्रेडरों की निगाहें अगले सप्ताह होने वाली अमेरिकी टैरिफ घोषणाओं पर टिकी हैं। उम्मीद है कि अमेरिका 2 अप्रैल को जवाबी टैरिफ लगाएगा। एक निजी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा, एक बार जब अमेरिकी टैरिफ लागू हो जाएंगे तो रुपया फिर से 86.50 प्रति डॉलर की ओर बढ़ेगा और मुझे अभी 88 प्रति डॉलर की उम्मीद नहीं है। मार्च में भारतीय शेयर बाजार में 4,977 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश हुआ जबकि विदेशी निवेशकों ने ऋण खंड में 7,097 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया।