एक सौ सैंतालीस डॉलर की रेकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंचने वाला कच्चा तेल दुनिया भर में महंगाई को भड़का चुका है, लेकिन अब इसके50 से 100 डॉलर के दायरे में आ जाने की उम्मीद जताई जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा है कि ने पिछले कुछ सप्ताह के दौरान कच्चे तेल की कीमतों में हालांकि गिरावट आई है, पर इसके 50 से 100 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहने की उम्मीद है। फिच की रिपोर्ट में कहा गया है कि कच्चे तेल की ऊंची कीमतों की वजह से जिन कंपनियों के मार्जिन का दबाव है, उन्हें कच्चे तेल की कीमत 50 से 100 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में देखने के लिए तैयार रहना चाहिए।
रेटिंग एजेंसी के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में मंदी की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का रुख बना रहेगा। हालांकि फिच को ऐसी उम्मीद नहीं है कि तेल की कीमतें 2004 के दौरान रही कीमतों के स्तर पर आ सकेगी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले डेढ़ से दो सालों के दौरान तेल और गैस की कीमतों को लेकर जो वातावरण बना रहा, उससे तेल और गैस क्षेत्र की कंपनियों को फायदा हुआ क्योंकि इससे नकद प्रवाह और मार्जिन बढ़ा।
हालांकि उल्लेखनीय उत्खनन और उत्पादन के अभाव में कुछ कंपनियों का मार्जिन काफी प्रभावित भी हुआ है। फिच ने कहा कि इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और चीन की सिनोपेक जैसी कंपनियों ने पिछले दो साल में काफी दबाव झेला है, जिसकी वजह बढ़ती महंगाई को देखते हुए सरकारों द्वारा ईंधन की ऊंची लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर डालने की अनुमति कंपनियों को नहीं दिया जाना है।
इसके उलट, गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषक अर्जुन एन. मूर्ति का मानना है कि 20 साल बाद कच्चे तेल की कीमत लुढ़ककर 75 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ सकती है। वास्तव में यह वही मूर्ति हैं जिन्होंने पिछले महीने अनुमान व्यक्त किया था कि कच्चे तेल की कीमतें अगले छह महीने से दो वर्षों में 150 से 200 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच जाएंगी।