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यूरिया में आत्मनिर्भर बनने की राह पर देश

Last Updated- December 11, 2022 | 5:30 PM IST

केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने कुछ समय पहले उम्मीद जताई थी कि भारत वर्ष 2025 तक यूरिया का आयात करना छोड़ देगा। भारत अपना घरेलू उत्पादन बढ़ाकर और नैनो यूरिया के प्रयोग में इजाफा करके आयात पर निर्भरता खत्म कर देगा। नैनो यूरिया का प्रयोग बढ़ाकर पारंपरिक यूरिया की खपत में 30 फीसदी तक की कमी लाई जा सकती है।
लेकिन उद्योग और व्यापार के सूत्रों का कहना है कि भारत आने वाले सालों में यूरिया के मामले में पारंपरिक तरीकों के जरिये आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त करने की राह पर है और इसमें नैनो बड़ी भूमिका निभाएगा।
यह उम्मीद यूरिया के छह नए सामान्य संयंत्रों के चालू होने पर आधारित है, जिसमें से प्रत्येक की वार्षिक उत्पादन क्षमता 13 लाख टन है। इनमें से बरौनी और सिंदरी संयंत्र इस साल सितंबर तक शुरू हो जाएंगे तथा अन्य अगले तीन-चार साल में शुरू होंगे।
सार्वजनिक क्षेत्र के ये यूरिया संयंत्र जब उत्पादन शुरू कर देंगे, तो देश के घरेलू यूरिया उत्पादन में 78 लाख टन से लेकर 80 लाख टन तक का इजाफा होगा। जब मौजूदा 2.5 करोड़ टन के सालाना उत्पादन में इनका उत्पादन भी शामिल हो जाएगा, तो उर्वरकों की सालाना उपलब्धता बढ़कर तकरीबन 3.3 करोड़ टन हो जाएगी।
फिलहाल देश में यूरिया की करीब 3.5 करोड़ टन खपत होती है। इस तरह आयात पर  निर्भरता खुद ही मौजूदा 70 लाख से 90 लाख टन मुकाबले घटकर 10 लाख से 30 टन सालाना रह जाएगी।
उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, ‘इससे हम न केवल यूरिया उत्पादन में लगभग आत्मनिर्भर बना जाएंगे, बल्कि हर साल यूरिया आयात करने के लिए खुली वैश्विक निविदा जारी करने की जरूरत भी कम होगी, जिससे कभी-कभी वैश्विक  प्रतिस्पर्धियों के बीच देश के अहित वाली गुटबंदी होती है।’
उन्होंने कहा कि जब भारत वैश्विक बाजार में यूरिया का मामूली आयातक बन जाएगा, तो बढ़ती अंतरराष्ट्रीय दरों से जुड़ी कई समस्याएं दूर हो जाएंगी।
एक अधिकारी ने कहा कि इन सबसे बड़ी बात यह है कि भारत सरकार प्रति वर्ष तकरीबन 10 लाख टन यूरिया के लिए ओमान जैसे देशों के साथ  दीर्घावधि वाले समझौते कर रही है। इससे आगे चलकर बड़े आयात की जरुरत खत्म हो जानी चाहिए।
नैनो यूरिया का व्यापारिक उत्पादन 1 अगस्त, 2021 को शुरू हुआ था तथा इफको और राष्ट्रीय केमिकल्स ऐंड फर्टिलाइजर्स (आरसीएफ) इसके उत्पादक थे। इसके बाद  इफको और आरसीएफ के आठ संयंत्रों में नैनो यूरिया का उत्पादन बढ़ाने के लिए अगस्त 2021 से विभिन्न चरण वाली एक योजना तैयार की गई । ये सभी संयंत्र मिलकर 500 मिलीलीटर वाली नैनो यूरिया की लगभग 44 करोड़ बोतलों का उत्पादन करेंगे। यह लगभग दो करोड़ टन यूरिया के बराबर होगा।
नैनो यूरिया की शुरुआत के बाद से सरकार इफको और आरसीएफ के बिक्री केंद्रों बेचने के लिए 3.9 करोड़ बोतलें भेज चुकी है। इनमें से लगभग 2.87 करोड़ बोतलें बेची जा चुकी हैं। यह 13 लाख टन पारंपरिक यूरिया के बराबर है।
मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार आयात में कमी से सरकार को प्रति वर्ष करीब 40,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से होने वाले मिट्टी, जल और  वायु प्रदूषण में नैनो यूरिया के इस्तेमाल से कमी आ सकती है।
फिलहाल देश में नैनो यूरिया उत्पादन क्षमता प्रति वर्ष पांच करोड़ बोतल है। प्रमुख सहकारी कंपनी इफको ने बाजार में नवीन नैनो यूरिया पेश की है। गुजरात की इसकी कलोल इकाई में 1 अगस्त, 2021 को वाणिज्यिक उत्पादन शुरू हुआ था।
इफको के साथ-साथ आरसीएफ और राष्ट्रीय उर्वरक द्वारा सात और नैनो यूरिया संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं। इफको ने सार्वजनिक क्षेत्र के इन दो उपक्रमों को नैनो यूरिया प्रौद्योगिकी मुफ्त में हस्तांतरित की है। एक अनुमान के अनुसार नैनो यूरिया के उपयोग से किसानों की आय में औसतन 4,000 रुपये प्रति एकड़ की वृद्धि होगी।
निजी क्षेत्र प्रतीक्षा और परिणाम की स्थिति में है। नैनो यूरियो पेटेंट उत्पाद होने की वजह से निजी कंपनियों को अपनी इकाइयों में इसका उत्पादन करने के लिए लाइसेंस लेना पड़ सकता है। हालांकि उद्योग के कुछ भागीदारों ने कहा कि वे अपने जरिये बड़े पैमाने पर उत्पादन और बिक्री करने से पहले इसकी प्रभावशीलता और लागत का कम से कम एक साल तक आकलन करना चाहते हैं।
सूत्रों ने कहा कि मोटे तौर पर देश में घरेलू स्तर पर उत्पादित 2.5 करोड़ टन यूरिया में से तकरीबन 1.4 से 1.5 करोड़ टन सार्वजनिक और सहकारी क्षेत्रों से आता है, बाकी निजी क्षेत्र और संयुक्त उद्यमों के संयोजन से प्राप्त होता है।
कई निजी भागीदारों ने कहा कि नैनो यूरिया मुख्य रूप से पत्तियों पर छिड़काव के लिए उपयुक्त होता है, जबकि पारंपरिक यूरिया को पौधों की जड़ों में डाला जाता है।

First Published - July 18, 2022 | 1:32 AM IST

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