facebookmetapixel
SEBI Investment Survey: जोखिम लेने से बचते हैं 80% भारतीय परिवार, Gen Z भी पीछे नहींभारत में मरीज चाहते हैं स्वास्थ्य को लेकर भरोसेमंद जानकारी और अच्छी गुणवत्ता वाली सेवाएं, रिपोर्ट में खुलासामारुति और टाटा ने कार बाजार में बढ़ाया दबदबा, ह्युंडई-टोयोटा हुई पीछे; जानें किसका क्या रहा हाल?ऑपरेशन ब्लू स्टार पर पी चिदंबरम का बड़ा बयान, बोले- इंदिरा गांधी को अपनी जान से चुकानी पड़ीETFs या FoFs: सोने-चांदी में निवेश के लिए बेस्ट विकल्प कौन?पाकिस्तान-अफगानिस्तान तनाव: तालिबान का दावा — हमारे हमले में 58 पाकिस्तानी सैनिकों की मौतUpcoming IPOs: इस हफ्ते दलाल स्ट्रीट में बड़े और छोटे IPOs से निवेशकों को मिलेंगे जबरदस्त कमाई के मौकेक्या गाजा ‘शांति शिखर सम्मेलन’ में शामिल होंगे पीएम मोदी? डॉनल्ड ट्रंप ने भेजा न्योताशी जिनपिंग का सख्त रुख: दुर्लभ खनिजों पर नियंत्रण से अमेरिका को झटका, भड़क सकता है व्यापार युद्धBuying Gold on Diwali: 14, 18, 22 और 24 कैरेट गोल्ड में क्या हैं मुख्य अंतर; कौन सा खरीदना रहेगा फायदेमंद

समर्थन मूल्य से भी नीचे उतर आया कपास

Last Updated- December 08, 2022 | 12:45 AM IST

कीमत के मामले में सर्वकालिक रेकॉर्ड बनाने के बाद अब कपास न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी नीचे चला गया है।


वैश्विक आर्थिक संकट के चलते कपास की वैश्विक और घरेलू खपत घटने का ही असर है कि दो हफ्तों में इसकी कीमत में जोरदार कमी दर्ज की गई है। फिलहाल संकर-6 किस्म के कपास का बेंचमार्क भाव 28,000-29,000 रुपये से घटकर 22,000-23,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी=356 किलोग्राम) तक चला गया है।

उल्लेखनीय है कि इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 24,000 रुपये प्रति कैंडी है। फिर भी पिछले साल की तुलना में यह काफी ज्यादा है जब एक कैंडी कपास 18,000-19,000 रुपये में मिल रहा था। भारतीय कपड़ा उद्योग के परिसंघ के अध्यक्ष आर के डालमिया के मुताबिक, वैश्विक आर्थिक संकट के चलते मिलों की ओर से कपास की मांग घटी है जिससे कपास की कीमतें कम हो रही हैं।

कारोबारियों के मुताबिक मौजूदा आर्थिक संकट ने कई मिलों को बंद करने पर मजबूर कर दिया है। उद्योग के मुताबिक, देश में कपास की कताई क्षमता में करीब 20 फीसदी की कमी हो चुकी है। कपास की घरेलू कीमतें कम करने में इसके निर्यात में हुई कमी का बड़ा योगदान माना जा रहा है।

पिछले सीजन (अक्टूबर 2007 से सितंबर 2008) में तो कपास के करीब एक करोड़ गांठों (एक गांठ=170 किलोग्राम) को देश से बाहर भेजा गया था। गौरतलब है कि भारत के लिए चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश कपास के मुख्य निर्यातक हैं। इनमें भी चीन की हिस्सेदारी करीब 70 फीसदी तक है।

हालांकि अधिकारियों ने बताया कि मांग घटने का कपड़ा उद्योग पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। क्योंकि जहां कपास की वैश्विक मांग कम हुई हैं वहीं इसकी उत्पादन लागत बढ़ चुकी है। वहीं वर्द्धमान टेक्सटाइल ग्रुप के कारपोरेट महाप्रबंधक आई जे धुरिया ने बताया कि कीमतों में कमी के बावजूद कपड़ा मिलों के पास इतने ऊंचे दर पर कपास की खरीदारी के लिए पैसा नहीं है।

ऐसी हालत में सरकार एमएसपी पर इसकी खरीदारी करने का मन बना रही है। इसके लिए बकायदा प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है। एक अधिकारी ने बताया कि अब तक बाजार से करीब 3 लाख क्विंटल कपास की खरीदारी हो चुकी है।

पूरी संभावना है कि निकट भविष्य में कपास की कीमतों में उतार-चढ़ाव होता रहेगा। इस अधिकारी ने कहा कि सरकार कपास के एमएसपी से नीचे जाने पर सीधे किसानों से कपास क  किसी भी मात्रा की खरीद कर सकती है।

डालमिया के अनुसार, कपास का बाजार भाव गिरने से रोकने के लिए हो रही सरकारी खरीद से बेहतर होता कि कपड़ा उद्योग को मजबूत करने के लिए जरूरी उपाय किए जाते। उन्होंने सुझाया कि सरकार को चाहिए कि दूसरे कृषि उत्पादों की भांति इस मामले में भी पूंजी पर ब्याज की दर को घटाकर 7 फीसदी तक ला दिया जाए।

First Published - October 20, 2008 | 1:15 AM IST

संबंधित पोस्ट