हाथ के बुने अपने कालीनों के लिए दुनिया भर में मशहूर उत्तर प्रदेश का भदोही लॉकडाउन से हिल गया है। दो महीने बंदी के बाद काम शुरू हुआ मगर रफ्तार एक चौथाई भी नहीं रही। कारखानों में गिनती के बुनकर हैं तो निर्यातकों के शोरूमों पर सन्नाटा पसरा है। तैयार माल का 99 फीसदी विदेश भेजने वाले भदोही के कालीन निर्माता गहरी मायूसी से गुजर रहे हैं और प्रदेश में हर हफ्ते दो दिन के लॉकडाउन ने उनकी रही-सही उम्मीदें भी तोड़ दी हैं।
कालीन कारोबारी चहुओर मुश्किलों से घिरे हैं। आयातकों के पास लॉकडाउन से पहले फंसा पैसा जल्द निकलने की उम्मीद तो उन्होंने लगाई नहीं थी मगर अब नए ऑर्डर भी न के बराबर आ रहे हैं। अमेरिका और यूरोप देसी कालीनों का सबसे बड़ा बाजार है और वहां महामारी के कारण छाई वीरानी ने सीधे भदोही को चोट पहुंचाई है। खरीदारों और कारोबारियों के बीच संपर्क नहीं हो रहा है और देश-विदेश में निर्यात मेले या बायर-सेलर मीट की भी कोई गुंजाइश नहीं है। हालांकि देसी कालीन निर्माता हताशा में वर्चुअल फेयर लगाने जा रहे हैं मगर उसका कितना फायदा होगा, किसी को नहीं पता।
कालीन निर्यात संवद्र्घन परिषद (सीईपीसी) के अध्यक्ष सिद्घनाथ सिंह ने बताया कि 1 जून के बाद से कालीन निर्माता काम करने की कोशिश कर रहे हैं मगर निर्यात ऑर्डर ही नहीं है तो क्या किया जाए। उन्होंने बताया कि भारत से सालाना 12,000 करोड़ रुपये के कालीन बाहर जाते हैं और उनमें से 50-60 फीसदी अमेरिका को ही निर्यात किए जाते हैं। अमेरिका में कोरोना का सबसे ज्यादा कहर है, जिससे वहां कालीन आयातक काम ही नहीं कर रहे। कुल निर्यात का 30-35 फीसदी यूरोप जाता है मगर वहां भी ऐसे ही हाल हैं। ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, जापान, सऊदी अरब और चीन को होने वाला निर्यात भी लगभग बंद हैं। निर्यातकों के मुताबिक कोरोना से पहले के ऑर्डर की कुछ खेप ही जून में भेजी गई हैं।
निर्यात नहीं है तो भदोही का भ_ा बैठने का खटका होना ही है क्योंकि देश के कालीन निर्यात में 30 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है और उत्तर प्रदेश में भी भदोही सबसे बड़ा ठिकाना है। यहां भदोही, वाराणसी और मिर्जापुर में करीब 1,200 इकाइयों में कालीन बनते हैं और 4,500 करोड़ रुपये के कालीन विदेश जाते हैं। भदोही के कालीन कारोबारियों की मानें तो प्रदेश के निर्यातकों के ही 500 करोड़ रुपये विदेश में फंसे हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि विदेश पहुंचा माल बिका ही नहीं है तो भुगतान कहां से हो। नया कारोबार हो नहीं रहा क्योंकि कालीन का सबसे ज्यादा ऑर्डर दिलाने वाला हैनोवर निर्यात मेला इस जनवरी में हुआ ही नहीं। रग स्टोर के मालिक और सीईपीसी के निदेशक उमेश कुमार गुप्ता ने बताया कि इस साल अभी तक महज 10 फीसदी कारोबार हुआ है और वह भी ऑनलाइन।
समस्या यह भी है कि कालीन उत्पादन का बमुश्किल 1 फीसदी ही देश में खपता है। पिछले साल मुंबई में कालीन मेला लगाकर यह आंकड़ा बढ़ाने की कोशिश हुई थी। इस साल भी सीईपीसी हैदराबाद, बेंगलूरु, मुंबई और चंडीगढ़ में मेले लगाने वाला था मगर अब पूरी योजना पर पानी फिर गया। सीईपीसी के सिंह ने बताया कि विदेशी ग्राहकों के लिए अब वर्चुअल मेला लगाया जाना है, जिससे कुछ ऑर्डर मिलने की उम्मीद है।
मुश्किल हालात देखकर लोग कालीन का धंधा तो नहीं छोड़ रहे मगर हाथ के बजाय मशीन से कालीन बुनने लगे हैं। लेकिन यहां भी चीन, तुर्की और बेल्जियम से आने वाले सस्ते कालीन उन्हें टक्कर दे रहे हैं। कारोबारी कहते हैं कि छोटे कालीन कारोबारियों को बचाना है तो आयात पर रोक लगानी होगी।
हालांकि कामगारों की दिक्कत नहीं है। भदोही, गोपीगंज और मिर्जापुर में बड़ी तादाद में कुशल कामगार हैं। मगर धंधा ही नहीं है। कई पुराने ऑर्डर रद्द होने की खबर भी लगातार मिल रही हैं तो लॉकडाउन से पहले तैयार माल बेचना ही मुश्किल है, नया माल किसके लिए बनवाया जाए।