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हरित अर्थव्यवस्था योजना से कोयला 2 दशक के लिए सुरक्षित

Last Updated- December 11, 2022 | 11:47 PM IST

भारत ने 2070 तक ‘नेट जीरो’ उत्सर्जन की घोषणा करके दुनिया को चकित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को ग्लासगो में आयोजित सीओपी26 में अपने राष्ट्रीय बयान में घोषणा की कि भारत ने 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। हालांकि यह लक्ष्य 49 साल दूर है, लेकिन इससे भारत की अर्थव्यवस्था की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को लेकर पीढ़ीगत बदलाव आएगा।
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों से कार्बनडाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में कार्बन की मात्रा का मापन किया जाता है। अर्थव्यवस्था बढऩे के साथ इनमें कमी आने की मांग की जा रही है। सीएसई के आकलन के मुताबिक भारत ने 2005 से 2016 के बीच 25 प्रतिशत उत्सर्जन घटाने का लक्ष्य हासिल किया है और इस राह पर चलते हुए 2030 तक 40 प्रतिशत से ज्यादा लक्ष्य हासिल हो जाएगा। लेकिन इसका मतलब यह है कि भारत को उत्सर्जन कम करने के लिए परिवहन क्षेत्र से लेकर ऊर्जा केंद्रित औद्योगिक क्षेत्रों, खासकर सीमेंट, लोहा, स्टील और गैर धातु खनिज व रसायन क्षेत्र में उत्सर्जन कम करना होगा। इसके लिए भारत को यातायात व्यवस्था में बदलाव करने की जरूरत होगी, जिससे लोग अपने वाहनों के बजाय सार्वजनिक परिवहन से यात्रा करें और अपने आवास की थर्मल इफिशिएंसी में सुधार करें।
वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने कहा कि यह लक्ष्य कोयले पर दबाव बढ़ाने के बयाज कोयले में निवेशकों को निश्चिंतता प्रदान करता है। सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और निजी कैप्टिव व वाणज्यिक कोयला खदानों को इससे निश्चिंतता मिलेगी।
एक अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘सीआईएल का एक अरब टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य इस दशक में पूरा हो जाएगा। अगले 20-30 साल तक के लिए भारत के कोयले का भविष्य सुरक्षित है। अब आवंटित खदानों को कारोबार की रणनीति साफ होगी कि कितने समय तक उनकी अवधि है।’  
उन्होंने कहा कि पिछले 5 साल में आवंटित कैप्टिव खदानों और निजी कंपनियों को हाल में आवंटित वाणिज्यिक खदानों को मजबूत करने का लक्ष्य है।
अधिकारी ने कहा, ‘इन खदानों की अवधि (30 साल) 2070 से बहुत पहले पूरी हो जाएगी। भारत इस दशक में सबसे ज्यादा कोयला उत्पादन करेगा और उसके बाद आरई जुडऩे के साथ इसमें धीरे धीरे कमी आ जाएगी।’
उन्होंने कहा कि बिजली क्षेत्र में ही इस समय कोयला आधारित क्षमता 200 गीगावॉट है और निकट अवधि की योजना के मुताबिक इसमें 25 गीगावॉट और जुड़ेगा। यह इस क्षेत्र की मांग पूरी करने के लिए पर्याप्त है। साथ ही पनबिजली सहित अक्षय ऊर्जा में भी तेजी आएगी।
उपरोक्त उल्लिखित अधिकारी ने कहा, ‘इस घोषणा से भारत में कोयले को प्रोत्साहन मिलेगा। अब 2070 की समयसीमा को लेकर कोई  अनिश्चितता नहीं है। नई कोयला खानों व ताप संयंत्रों की अर्थव्यवस्था और परिचालन की वैधता निश्चित होगी।’
बिजली मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि कोयला आधारित बिजली संयंत्र अपनी क्षमता का 60 प्रतिशत प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ) पर चल रहे हैं और इसे 85 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। बिजली उत्पादन में 25 प्रतिशत वृद्धि करने के लिए अतिरिक्त बिजली उत्पादन क्षमता जोडऩे की जरूरत नहीं होगी।
बिजली मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘इसके अलावा 25 गीगावॉट निर्माणाधीन है और इतनी ही गैस आधारित क्षमता का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। इस तरह प्रभावी रूप से अब नए ताप बिजली संयंत्रों की जरूरत नहीं है और मौजूदा क्षमता बढ़ाकर मांग पूरी की जा सकती है। साथ ही अक्षय ऊर्जा क्षेत्र से भी उत्पादन बढ़ेगा।’

First Published - November 2, 2021 | 11:15 PM IST

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