देश में कपास की खरीदारी करने वाली सरकारी एजेंसी भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) ने इस साल अभी तक रेकॉर्ड 40 लाख गांठ कपास की खरीदारी की है।
साल 2008-09 में सीसीआई द्वारा की गई खरीदारी पिछले साल से 4 गुनी अधिक है। सीसीआई की आक्रामक खरीदारी से निर्यातकों, ओटाई करने वालों और वस्त्र उद्योग के खिलाड़ियों की नींद पहले ही उड़ी हुई है।
कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इस साल 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई थी। बढ़ी हुई कीमतों पर सीसीआई द्वारा बढ़-चढ़ कर खरीदारी करने की वजह से कपास की कीमतें कम नहीं हुईं। उद्योग पहले से ही उच्च समर्थन मूल्य का पहले से ही विरोध कर रहा था।
सीसीआई की खरीदारी के कारण अब बाजार से कपास की खरीदारी करने की उनकी योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। किसान अपने कपास को बाजार में लाने से अभी कतरा रहे हैं।
उन्हें लगता है कि आने वाले समय में कीमतों में और वृध्दि होगी। इन बातों के चलते वस्त्र, ओटाई और अन्य संबध्द उद्योगों की चिंताएं बढ़ गई हैं।
24 दिसंबर तक देश भर के बाजारों में तकरीबन 1.18 करोड़ गांठ (1 गांठ=170 किलोग्राम) कपास की आवक हो चुकी है। सीसीआई के मुख्य प्रबंध निदेशक सुभाष ग्रोवर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अभी तक सीसीआई ने 40 लाख गांठ कपास की खरीदारी की है जो सरकारी एजेंसी द्वारा की गई ऐतिहासिक खरीद है। साल 2004-05 में सीसीआई ने कपास के 25 लाख गांठ की खरीदारी की थी।’
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से कपास की खरीदारी के लिए सीसीआई ने लगभग 5,700 करोड रुपये से 6,000 करोड़ रुपये तक का खर्च किया है। कपड़ा मंत्री शंकरसिंह वाघेला ने सीसीआई द्वारा कपास की खरीदारी के लिए अतिरिक्त 5675 करोड रुपये की मांग की है।
इसके अलावा कपड़ा मंत्री ने अगले वित्त वर्ष में कपास की खरीदारी के लिए 1,500 करोड रुपये की मांग की है। ग्रावर ने कहा, ‘फंड के लिए सीसीआई के साथ कोई समस्या नहीं है। जरूरत पड़ने पर सरकार पर्याप्त फंड उपलब्ध कराने के लिए तैयार है।’सीसीआई की खरीदारी के तेवर से कपास, धागे, वस्त्र आदि के निर्यात प्रभावित हो सकते हैं।
सेंट्रल गुजरात कॉटन डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष किशोर शाह ने कहा, ‘अगर सीसीआई ने बड़े पैमाने पर खरीदारी नहीं की होती तो कपास की कीमतें गिर कर 20,000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर पर आ गई होती। हालांकि, 21,800 से 22,000 रुपये प्रति कैंडी की घरेलू कीमत अंतरराष्ट्रीय कीमतों से छह से सात प्रतिशत अधिक हैं। कीमतों के कारण हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्ध्दी नहीं हैं।’
कपास निर्यातकों की दशा इस वास्तविकता से समझी जा सकती है कि अभी तक केवल 6.25 लाख गांठों के लिए ही करार हो पाया है। इसमें से 4.57 लाख गांठ भंजे जा चुके हैं।
अग्रणी कपास कारोबारी फर्म अरुण दलाल ऐंड कंपनी के मालिक अरुण दलाल ने कहा, ‘पिछले साल की समान अवधि में 30 लाख गांठ कपास का निर्यात किया गया था। साल 2008-09 में कपास का कुल निर्यात लगभग 35 लाख गांठ होने की उम्मीद है जबकि साल 2007 में 85 लाख गांठों का निर्यात किया गया था।
इस साल चीन भी कपास की खरीदारी में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। भारत से इस साल चीन ने कपास की मामूली खरीदारी की है।’
आर्वी डेनिम्स ऐंड एक्सपोर्ट्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक आशीष शाह ने कहा, ‘कपास की कीमतों में बढ़ोतरी से कपड़ा कंपनियों की लागत बढ़ गई है। कपास की कीमतें 18,000 रुपये प्रति कैंडी के दायरे में होनी चाहिए।
वर्तमान में, कपास की खरीदारी के लिए कपड़ा कंपनियों को 12 रुपये प्रति किलोग्राम का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ रहा है। अधिकांश कपड़ा कंपनियों ने उत्पादन में 25 फीसदी की कटौती की है और वे कपास का भंडार भी नहीं कर रहे हैं।’
ऑल गुजरात कॉटन गिन्नर्स एसोसिएशन के अघ्यक्ष दिलीप पटेल ने कहा कि कपास की कीमतों में मजबूती का सबसे अधिक प्रभाव ओटाई उद्योग पर पड़ा है। देश के 4,000 ओटाई मिलों का लगभग 40 प्रतिशत अभी बंद है क्योंकि ओटाई करने वाले इतनी अधिक कीमतों पर कपास की खरीदारी नहीं कर सकते।