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महंगाई से चीनी मिलों के रखरखाव खर्च में 60 फीसदी का उछाल

Last Updated- December 07, 2022 | 9:45 AM IST

चीनी उत्पादन का रेकॉर्ड बनाने और कीमतों के काफी कम रहने के बाद चीनी मिलों के सामने अब एक नई चुनौती है।


ऑफ सीजन के दौरान चीनी मिलों के रखरखाव और मरम्मत पर होने वाले खर्च में कई गुना की वृद्धि होने से चीनी मिलों की परेशानियां काफी बढ़ गयी हैं। मिलों के रखरखाव और मरम्मत में सबसे ज्यादा राशि स्टील और सीमेंट पर खर्च होती है, पर बीते कुछ महीनों में महंगाई का सबसे ज्यादा असर इन्हीं चीजों पर हुआ है।

परिणाम यह हुआ कि इस मद में खर्च होने वाली राशि में 40 से 60 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो गयी है। उत्तर प्रदेश चीनी मिल एसोसियशन के अध्यक्ष और बिरला ग्रुप ऑफ शुगर कंपनीज के सलाहकार सी. बी. पटौदिया के अनुसार, मिलों की मरम्मत और रखरखाव में इस्तेमाल में होने वाली ज्यादातर चीजें लोहे या इस्पात की बनी होती हैं। चूंकि लोहे और इस्पात की कीमतें बीते कुछ दिनों में काफी तेज बढ़ोतरी हुई है, लिहाजा इन चीजों पर खर्च होने वाली राशि में भी खासी वृद्धि हुई है।

बिजनौर के एक मिल का उदाहरण देते हुए पटौदिया ने कहा कि प्रतिदिन 10 हजार टन गन्ने की पेराई करने वाली इस मिल की मरम्मत पर पिछले सीजन में 5 करोड़ रुपये का खर्च आया था। इस सीजन में इस मिल के रखरखाव पर 8 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है यानी महज साल भर में ही मिलों की मरम्मत खर्च में 60 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है। पटौदिया ने कहा कि इस मद में खर्च होने वाली राशि के बढ़ने का साफ मतलब है कि चीनी के उत्पादन खर्च में बढ़ोतरी होगी।

पटौदिया के मुताबिक, उनके मिल के रखरखाव पर जब 5 करोड़ की राशि खर्च होती थी तब एक क्विंटल पर 35 रुपये का खर्च आता था। लेकिन, जब यह राशि बढ़कर 8 करोड़ तक पहुंचने की बात की जा रही है तब प्रति क्विंटल यह रखरखाव खर्च 57 रुपये हो जाएगा। जाहिर है कि अगले सीजन में चीनी की कीमत में थोड़ा ही सही पर इस वजह से जरूर वृद्धि होगी। अप्रैल 2007 से फ्लैट स्टील प्रॉडक्ट की कीमतों में 17 से 24 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है, जबकि छड़ जैसे उत्पाद की कीमतें इस दौरान 50 से 60 फीसदी तक चढ़ चुकी हैं।

बकौल पटौदिया बिरला समूह ने पिछले साल अपनी 7 चीनी मिलों के रखरखाव और मरम्मत में 25 करोड़ रुपये की राशि खर्च की थी पर इस साल यह खर्च बढ़कर 38 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि चीनी मिलें हर साल अक्टूबर से अप्रैल के बीच चला करती है। साल के ये 6 से 7 महीने पेराई के दिन होते हैं। ऑफ सीजन में मिलें बंद ही रहा करती हैं। पेराई जब अंतिम चरण में होती है तभी से मिलों द्वारा मरम्मत का काम शुरू कर दिया जाता है ताकि अगले सीजन में पेराई ठीक से हो।

सिंभावली शुगर्स के निदेशक (वित्त) संजय तापड़िया ने बताया कि 5 हजार टन रोज गन्ने की पेराई करने वाली किसी चीन मिल के ऑफ सीजन मेंटेनेंस पर पिछले साल लगभग 3 करोड़ रुपये का खर्च आता था। अनुमान है कि इस साल महंगाई के चलते यह खर्च 41 फीसदी बढ़कर 4.25 करोड़ रुपये हो जाएगा। उन्होंने कहा कि वायरिंग, स्टील प्लेटों, वॉयलर टयूबों आदि का खर्च महज साल भर में 25 फीसदी तक बढ़ गया है। सामान्यत: हरेक साल यह बढ़ोतरी केवल 8 से 10 फीसदी की होती थी। पिछले साले सिंभावली शुगर्स ने अपनी 3 चीनी मिलों के रखरखाव पर 9 करोड़ रुपये खर्च किया था जो बढ़कर 12 करोड़ रुपये होने की उम्मीद है।

First Published - July 8, 2008 | 3:27 AM IST

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