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सरकारी घुट्टी से हालत होगी पतली

Last Updated- December 10, 2022 | 5:56 PM IST

करों में राहत की घुट्टी और छठे वेतन आयोग की पट्टी के चलते राज्यों की माली हालत और ज्यादा बदतर होने वाली है।
इन वजहों से अगले वित्त वर्ष (2009-10) में राज्यों का बजट घाटा, इनके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पांच फीसदी से भी ज्यादा बढ़ सकता है।
यह, राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजटीय प्रबंधन (एफआबीएम) के इस बारे में लगाए गए अनुमान से भी 40 फीसदी ज्यादा हो सकता है।
मंगलवार को केंद्र सरकार ने करों में राहत करके एक और प्रोत्साहन पैकेज तो दे दिया है लेकिन, इसकी कीमत अगले वित्त वर्ष में चुकानी पड़ सकती है जब केंद्र और राज्यों का संयुक्त बजटीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 11 फीसदी के बराबर हो जाएगा।
अगर इस तरह का अनुमान सही साबित होता है तो इसका मतलब होगा कि अगले वित्त वर्ष में बजट घाटा 5,75,000 करोड़ रुपये के आंकड़े को लांघ जाएगा और रिजर्व बैंक को केंद्र और राज्यों की वित्तीय जरूरतों के लिए हर महीने 45,000 करोड़ रुपये की प्रतिभूतियां जारी करनी होंगी।
एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरूआ का कहना है, ‘अगर छठे वेतन आयोग को भी हटा दें तो भी मुझे राज्यों के बजट घाटे में एक फीसदी के बढ़ोतरी होने का अनुमान है।’ वह कहते हैं कि इस माहौल में रिजर्ब बैंक को ब्याज दरें बढ़ानी चाहिए।
क्या असर होगा वेतन आयोग का
तकरीबन एक दशक पहले जब पांचवां वेतन आयोग लागू किया गया था, तब भी राज्यों के खजाने पर भारी बोझ पड़ा था। इसके चलते उनके बजट घाटे में , उनकी जीडीपी का 0.4 से लेकर 0.6 फीसदी तक का इजाफा हुआ था।
सलाहकार संस्था और रेटिंग एजेंसी क्रिसिल लिमिटेड के प्रमुख अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी का कहना है पांचवां वेतन आयोग तब लागू किया गया था जब अर्थव्यवस्था एक उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रही थी और उसके चलते राज्यों पर काफी आर्थिक बोझ पड़ा था और अब छठे वेतन आयोग से उन पर और ज्यादा बोझ पड़ेगा।
मौजूदा दौर में भी अर्थव्यवस्था रिवर्स गियर में आ गई है। पिछले तीन साल तक लगभग 9 फीसदी की दर से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था की विकास दर चालू वित्त वर्ष में 7.1 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि अगले वित्त वर्ष में इसके और घटकर 6 फीसदी तक पहुंचने का अंदेशा है।
अर्थव्यवस्था की रफ्तार में सुस्ती का मतलब होगा कि विनिर्माण और सेवा क्षेत्र का दायरा भी सिकुड़ेगा, जिससे केंद्र और राज्यों  के कर संग्रह में कमी आएगी। केंद्र को मिलने वाले कर और डयूटी में से 30.5 फीसदी राज्यों के हिस्से में जाता है और अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले वित्त वर्ष के दौरान इस मद में केंद्र से राज्यों को मिलने वाली राशि में भी 11,000 करोड़ रुपये की कमी आने आ सकती है।
अपने खुद के करों के जरिये होने वाली राज्यों की कमाई भी घट सकती है। स्टैंडर्ड एंड पुअर के मुख्य अर्थशास्त्री सुबीर गोकर्ण कहते हैं, ‘इसकी वजह से उपभोग खर्च में बढ़ावा होगा।’
जब दवा ही देने लगे मर्ज
छठे वेतन आयोग से पड़ेगा अतिरिक्त बोझ, करों में कटौती से होगी कर संग्रह में कमी
अगले वित्त वर्ष में केंद्र और राज्य का बजट घाटा हो सकता है जीडीपी का 11 फीसदी तक
रिवर्ज बैंक को जारी करनी पड़ सकती हैं हर महीने 45 हजार करोड़ रुपये की सरकारी प्रतिभूतियां
विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के कमजोर रहने से होगी कम कर उगाही

First Published - February 26, 2009 | 11:21 AM IST

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