भारतीय रेलवे ने 21,737 करोड़ रुपये की मोटी-ताजी लागत वाली अपनी तीन परियोजनाओं को खुद ही अंजाम देने का फैसला किया है।
दरअसल, इन परियोजनाओं के लिए पहले विदेशी कंपनियों के साथ सौदा किया जाना था, लेकिन आर्थिक मंदी की वजह से उन्होंने अब इनसे हाथ खींच लिये हैं।
पखवाड़े भर पहले ही सरकार ने बिहार की दो परियोजनाओं के लिए पांच कंपनियों की आखिरी सूची तैयार की थी। रेल मंत्रालय ने इन परियोजनाओं के लिए कंपनियों के साथ मिलकर संयुक्त उद्यम कंपनियों को बनाने की योजना बनाई थी, जिसमें मंत्रालय की 26 फीसदी हिस्सेदारी होती।
गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने सोमवार को मंत्रिमंडल की बैठक के बाद पत्रकारों को बताया कि, ‘हमें ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं मिली। शायद मंदी की वजह से ही कंपनियों का उत्साह का इतना ठंडा था।’ अब विदेशी साझेदारों के पीछे हटने की वजह से रेलवे को पूरी रकम खुद ही इस परियोजना में लगानी होगी। साथ ही, उसे इसके लिए कर्ज का इंतजाम भी खुद ही करना पड़ेगा।
चिदंबरम ने बताया कि इन परियोजनाओं में उत्तर प्रदेश के रायबरेली में 1685 करोड़ रुपये की लागत से बनाई जा रही रेल कोच फैक्टरी, 18 हजार करोड़ रुपये की लागत से बिहार के मधेपुरा में बनाई जा रही इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव फैक्टरी और बिहार के ही मरहुअरा में बनाई जा रही डीजल लोकोमोटिव फैक्टरी शामिल है।
गौरतलब है कि रायबरेली संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की सीट है, जबकि मरहुअरा रेलमंत्री लालू प्रसाद के निर्वाचन क्षेत्र छपरा का हिस्सा है। सरकार की तरफ से पांच फरवरी को जारी किए गए बयान में बताया गया है कि एल्सटॉम, बॉम्बाडियर और सिमेन्स को इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव फैक्टरी के लिए बोली लगाने के लिए चुना गया था, जबकि डीजल लोकोमोटिव फैक्टरी के लिए बोली लगाने के लिए जीई और ईएमडी को चुना गया था।
चिदंबरम ने बताया कि, ‘भारतीय रेलवे 12 हजार हॉर्सपॉवर के 50 इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव का आयात करेगी, जबकि बाकी का उत्पादन देश में ही किया जाएगा। इसी तरह सरकार 600 करोड़ रुपये की लागत से 4500-6000 हॉर्सपॉवर के 50 डीजल ईंजनों का आयात करेगी। आयात के सौदों के तहत तकनीक का भी हस्तांतरण शामिल है।’
रेल मंत्रालय की योजनाओं के मुताबिक इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव फैक्टरी हर साल 800 इलेक्ट्रिक इंजनों का उत्पादन करेगी। दूसरी तरफ, डीजल फैक्टरी से हर साल 1,000 इंजनों का उत्पादन होगा।