केंद्र सरकार की बिजली उत्पादक कंपनियों को बिजली अपीली पंचाट (एपीटीईएल) के एक अहम फैसले से बड़ी राहत मिली है।
पंचाट के फैसले के मुताबिक अगर कोई राज्य इन कंपनियों द्वारा मुहैया कराई जा रही बिजली का भुगतान नहीं करता तब ये कंपनियों उस राज्य को दी जाने वाली बिजली में निश्चित कटौती कर सकती हैं।
इस मामले में सरकारी बिजली कंपनी एनटीपीसी ने पंचाट में एक मामला दायर किया था, जिसमें पंचाट ने यह फैसला लिया। इस मामले में संबंधित राज्य अगर बिजली भुगतान के लिए लैटर ऑफ क्रेडिट (एलसी) को दुरुस्त नहीं रख पाता, उसको दी जाने वाली बिजली में ये कंपनियां कमी कर सकती हैं।
देश के कुल बिजली उत्पादन में एनटीपीसी, एनएचपीसी, परमाणु बिजली निगम और नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन जैसी केंद्र सरकारी की कंपनियां मिलकर एक तिहाई का उत्पादन करती हैं।
पिछले हफ्ते आए इस फैसले में एपीटीईएल ने केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) के उस फैसले को उलट दिया जिसमें नॉर्दर्न रीजनल डिस्पैच सेंटर (एनआरएलडीसी) ने एनटीपीसी को जम्मू कश्मीर को बिजली मुहैया कराने का निर्देश दिया था।
जबकि इस मामले में जम्मू कश्मीर मिलने वाली बिजली के लिए भुगतान नहीं कर पाया था। इस फैसले के बाद एनटीपीसी उन सूबों को बिजली की आपूर्ति में कटौती कर सकता है, जिनका रिकॉर्ड भुगतान के मामले में अच्छा नहीं है।
इस बारे में केपीएमजी एडवाइजरी सर्विसेज के कार्यकारी निदेशक अरविंद महाजन कहते हैं, ‘यह फैसला एनटीपीसी के लिहाज से बेहद फायदेमंद है। अगर भविष्य में कोई राज्य बिजली भुगतान में गड़बड़ी करता है तो कंपनी उसके खिलाफ कदम उठा सकती है। यह राज्यों के लिए भी एक चेतावनी की तरह काम करेगा। वैसे यह निजी कंपनियों पर लागू नहीं होता लेकिन उनको इतना तो लगेगा ही कि बिजली क्षेत्र में नियामक मुस्तैदी से काम कर रहा है।’
एनटीपीसी ने सीईआरसी के फैसले के खिलाफ ही पंचाट में गुहार लगाई थी। इससे पहले कंपनी ने जम्मू कश्मीर में बिजली आपूर्ति को लेकर सीईआरसी से मामला तय करने को कहा था। 2001 में बिजली के मौजूदा बकाया के निपटान के लिए एक विशेषज्ञ समूह गठित किया गया था, जिसमें त्रिस्तरीय समझौते पर सहमति बन पाई थी। इसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को पक्ष बनाया गया।
इस समझौते के तहत राज्य के औसत मासिक बिजली बिल के 105 फीसदी के बराबर लैटर ऑफ क्रेडिट को तय किया गया। इसको पूरा न करने की स्थिति में कंपनी राज्य को दी जाने वाली कुल बिजली में से ढाई फीसदी की आपूर्ति तीन महीनों तक रोक सकती है।
दूसरी ओर एनआरएलडीईसी ने इस मामले में अपने अलग तर्क पेश किए। उसके मुताबिक दो स्थितियों में ही राज्य को दी जाने वाली बिजली में कटौती की जा सकती है। पहला तो यह कि बिजली मंत्रालय उस राज्य को आवंटित बिजली में कटौती करे या फिर आयोग के नियमों के तहत बिजली उत्पादन करने वाली कंपनी इसके लिए गुजारिश करे।
सरकारी बिजली कंपनियों को मिल गई राहत
भुगतान न करने पर काट सकती हैं राज्यों की बिजली
बिजली उत्पादन में एक तिहाई हिस्सा सरकारी कंपनियों का
बिजली अपीली पंचाट ने दिया अहम फैसला
