केंद्र सरकार आगामी बजट में नए बड़े डेवलपमेंट फाइनैंशियल इंस्टीट्यूशन (डीएफआई) के ढांचे और अंतिम मॉडल को पेश कर सक ती है, जो 1 फरवरी को पेश होने वाला है। इसके अलावा सरकार आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए बुनियादी ढांचा क्षेत्र के वित्तपोषण आसान करने हेतु कुछ और कदम उठाए जा सकते हैं।
सूत्रों के मुताबिक इस ढांचे का अंतिम मसौदा, जो तैयार किया जा रहा है, में शेयरधारिता और अहम क्षेत्रों के लिए वित्तीय ढांचे के साथ नई इकाई के कुछ खास अधिकार होंगे।
एक सरकारी सूत्र ने कहा, ‘नई इकाई अलग होगी और बुनियादी ढांचा के वित्तपोषण को लेकर मौजूदा संस्थाओं की तुलना में जोखिम लेने की क्षमता ज्यादा होगी। इस बात पर जोर होगा कि ज्यादा क्षेत्र आधारित और दीर्घावधि वित्तपोषण के लिए लचीले नियम हों।’
उन्होंने कहा कि अंतिम ढांचे में सरकार की शेयरधारिता या इसे कानून के माध्यम से बनाया जाएगा, इसके बारे में विस्तृत ब्योरा होगा। उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांचा के नेतृत्व में वृद्धि को गति देने की मौजूदा जरूरत को देखते हुए भारत में कम से कम एक या दो सरकार समर्थित डीएफआई होना चाहिए।
उम्मीद की जा रही है कि प्रस्तावित डीएफआई में सरकार का आंशिक मालिकाना होगा। सरकार भी नए डीएफआई में एक छोटे गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनी को समाहित करना चाहती है। इस चर्चा से जुड़े एक और व्यक्ति ने कहा कि यह भी माना जा रहा है कि नई इकाई बड़ी ग्रामीण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का अनिवार्य रूप से वित्तपोषण करेगी।
इस समय इंडियन रेलवे फाइनैंस कॉर्पोरेशन, नैशनल बैंक फार एग्रीकल्चर ऐंड रूरल डेवलपमेंट और स्माल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक आफ इंडिया जैसी कुछ वित्तीय संस्थाएं हैं, जो बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का वित्तपोषण करती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये व्यावहारिक समाधान नहीं दे सकतीं, खासकर कर्जदाताओं के संपत्ति देनदारी अंतर के कारण ऐसा संभव नहीं है। डेलॉयट इंडिया में इन्फ्रास्ट्रक्चर और सार्वजनिक क्षेत्र में पार्टनर अरिंदम गुहा ने कहा, ‘डीएफआई दो मोर्चों पर मदद कर सकती हैं। पहला फंड की लागत कम होगी। दूसरा, उन्हें दीर्घावधि देनदारी द्वारा समर्थन होगा। इसे सरकार का समर्थन होगा, ऐसे में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के शुरुआती स्तर पर पूंजी मिल सकेगी और बाद के स्तर की मंजूरी का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। मुख्य रूप से परियोजना के शुरुआती स्तर पर समस्या आती है। यही वजह है कि डीएफआई की भूमिका अहम है।’
उद्योग जगत के लोगों का मानना है कि नया डीएफआई मॉडल शुरुआत में जोखिम पूंजी होगी, उसके बाद उसका इस्तेमाल विश्व बैंक जैसी विकास एजेंसियों से अतिरिक्त संसाधन आकर्षित करने में किया जा सकेगा। वहीं दूसरी तरफ पेंश और सॉवरिन वेल्थ फंड भी इसमें अंशदान करेंगे, जिससे डीएफआई को अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार में संभावनाएं तलाशने में मदद मिलेगी।