Budget 2025: भारत में गिग वर्कर्स की संख्या लगातार बढ़ रही है। नीति आयोग की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2029-30 के अंत तक भारत में गिग वर्कर्स की संख्या बढ़कर 2.35 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है, जो साल 2020-21 में 77 लाख के आस पास थी। लेकिन गिग वर्कर्स की बढ़ती संख्या के बीच उनकी सोशल सिक्योरिटी बेनिफिट्स पर बात नहीं हो रही है।
बता दें कि गिग वर्कर्स उन लोगों को कहा जाता है जो अस्थायी या फ्रीलांस काम करते हैं। इन लोगों को ऑन-डिमांड जरूरत के हिसाब से काम मिलता है। पिछले एक दशक में ये वर्कर्स भारत की श्रमिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं। ये वर्कर्स मुख्य रूप से मौजूदा श्रम कानूनों के तहत दी जाने वाली सोशल सिक्योरिटी बेनिफिट्स से बाहर हैं, क्योंकि ये ‘एम्पायर-एम्पलाई’’ संबंध की पारंपरिक परिभाषा में फिट नहीं होते।
हालांकि, नए सोशल सिक्योरिटी कोड 2020 में गिग वर्कर्स और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को परिभाषित किया गया था और उन्हें जीवन और विकलांगता बीमा, दुर्घटना बीमा, स्वास्थ्य और मातृत्व लाभ और वृद्धावस्था सुरक्षा जैसी अलग-अलग सुविधाओं के बारे में बात की गई थी। लेकिन यह लागू नहीं हो पाया है जिसकी वजह से लाखों गिग वर्कर्स को अभी भी कोई सुरक्षा नहीं मिल रही है।
लेबर लॉयर बी सी प्रभाकर का कहना है कि चूंकि नए श्रम कोड अभी तक लागू नहीं हुए हैं, इसलिए यह जरूरी है कि सरकार इस बढ़ते हुए कार्यबल के हित के लिए आगामी बजट में कुछ नया लाए।
प्रभाकर कहते हैं, “उम्मीद की जा रही है कि आगामी बजट में सरकार एक ऐसी योजना ला सकती है, जिसे बजट का सपोर्ट हो। यह अन्य योजनाओं की तरह होगा जो सरकार ने अलग-अलग श्रेणियों के श्रमिकों के कल्याण के लिए पहले शुरू की हैं, जैसे पीएम स्वनिधि योजना सड़क विक्रेताओं के लिए, पीएम किसान योजना कृषि श्रमिकों के लिए आदि।”
पिछले महीने श्रम सचिव सुमिता दवरा ने गिग वर्कर्स और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए सोशल सिक्योरिटी से जुड़ी योजनाओं पर विचार-विमर्श करने के लिए एक मीटिंग की थी। इस बैठक में श्रम मंत्रालय के अधिकारी, प्लेटफॉर्म एग्रीगेटर जैसे जोमैटो और स्विगी, अलग-अलग मजदूर संघ, नीति आयोग, ILO (इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन) और NCAER (नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च) के प्रतिनिधि और अधिकारी शामिल हुए थे। इस बैठक में गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिए फंडिंग की जरूरत, निगरानी और मूल्यांकन और शिकायत निवारण आदि जैसे विषयों पर चर्चा की गई।
इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (IFAT) के राष्ट्रीय महासचिव शेख सलाउद्दीन, जिन्होंने पिछले साल श्रम मंत्रालय से अपनी बात रखी थी, ने कहा कि एग्रीगेटर कंपनियों ने गिग वर्कर्स और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के मेहनत पर अरबों डॉलर का व्यापार खड़ा किया है। फिर भी, ये वर्कर्स शोषण, कम वेतन और असुरक्षित कार्य परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “आगामी बजट गिग वर्कर्स के लिए एक नया नियम लाने का सही मौका है। सरकार को सभी एग्रीगेटर कंपनियों द्वारा डेटा डिस्क्लोजर अनिवार्य करना चाहिए, खासकर उन मुद्दों पर जैसे काम करने के औसत घंटे, कर्मचारियों द्वारा पूरे किए गए किलोमीटर, पूरी की गई डिलीवरी की संख्या, प्रत्येक कर्मचारी की वार्षिक आय, कार्यस्थल पर दुर्घटनाएं, मौतों और उन्हें दी की गई मुआवजे के रिकॉर्ड। यह नियम बनाने में पारदर्शिता लाने में मदद करेगा।”
जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को अपनी आठवीं लगातार केंद्रीय बजट पेश करने वाली हैं, तो उनपर इस बढ़ती हुई कार्यबल को राहत देने का जिम्मेदारी है।