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Tesla, Vinfast की भारतीय बाजार में एंट्री के बड़े संकेत! केयरएज का अनुमान- FY28 तक 7% पार कर जाएगा EV कारों का मार्केट शेयर

केयरएज एडवाइजरी की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 20 28 तक इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री 7% बाजार हिस्सेदारी को पार कर जाएगी।

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आशुतोष ओझा   
Last Updated- July 16, 2025 | 2:17 PM IST

इले​क्ट्रिक व्हीकल्स बनाने वाली दुनिया की दिग्गज कंपनियों टेस्ला (Tesla), विनफास्ट (Vinfast) की भारत में एंट्री इस बात का संकेत दे रहे हैं कि आने वाले सालों में घरेलू EV मार्केट में ‘जंग’ तेज होने वाली है। खासकर प्रीमियम SUV EV सेगमेंट में प्रतिस्पर्धा और तगड़ी होगी। टेस्ला ने जहां 60 लाख रुपये की शुरुआत की कीमत में Model Y के साथ दस्तक दी है। वहीं, ग्लोबल EV दिग्गज विनफास्ट ने अपने VF6 और VF7 मॉडल की प्री-बुकिंग शुरू कर दी है। भारत में तेजी से बदलते ईवी इकोसिस्टम, इंफ्रा और कस्टमर्स के रूझान को देखते हुए आने वाले दिनों में EVs सेल्स में तगड़ा इजाफा देखने को मिल सकता है। इस बीच, केयरएज एडवाइजरी की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 28 तक यह 7% को पार कर जाएगी। हालांकि, इसके लिए जरूरी है कि रेयर अर्थ मिनरल्स एलीमेंट्स (REE) की सप्लाई में किसी तरह की रुकावट न आए।

भारतीय बाजार में विदेशी कंपनियों की दस्तक के अलावा टाटा मोटर्स, महिंद्रा जैसी घरेलू ऑटोमोबाइल्स कंपनियां भी EVs की रेस में तेजी से भाग रही हैं। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार बाजार है। सरकार 2027 से सख्त एमिशन नॉर्म्स शुरू करने और 2030 तक कुल कार बिक्री में 30 फीसदी सेल्स EVs से आने की योजना पर काम कर रही है।

EVs इकोसिस्टम पर फोकस

केयरएज की रिपोर्ट कहती है कि भारत के इलेक्ट्रिक कार इकोसिस्टम ने पिछले तीन वर्षों में जोरदार तेजी देखी है। EVs की सेल्स वित्त वर्ष 2021 में 5,000 यूनिट से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 1.07 लाख यूनिट से ज्यादा हो गई है, जो लगभग 21 गुना ग्रोथ है। जबकि इलेक्ट्रिक फोर-व्हीलर्स अभी भी कुल ईवी बिक्री का एक छोटा सा हिस्सा हैं। इस सेगमेंट में टू-व्हीलर्स और थ्री-व्हीलर्स का दबदबा है। यह सेगमेंट सरकारी पॉलिसी और प्राइवेट सेक्टर के कमिटमेंट के चलते हाई ग्रोथ की ओर बढ़ रहा है।

भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2030 तक 30% सेल्स EVs से हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इसे हासिल करने के लिए सरकार ने कई तरह के नी​तिगत फैसले ले रही है। इनमें एडवांस रसायन विज्ञान सेल (ACC) बैटरी के लिए FAME III, उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना और महत्वपूर्ण बैटरी खनिजों – जिनमें कोबाल्ट, लीथियम-आयन कचरा और ग्रेफाइट शामिल हैं, पर बेसिक कस्टम ड्यूटी जैसे इनी​शिएटिव शामिल हैं। ईवी के लिए सरकार की ये पहले उत्पादन लागत कम करने और घरेलू सप्लाई चेन को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।

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EVs के लिए एक बेहतर हालात: एक्सपर्ट

केयरएज एडवाइजरी एंड रिसर्च की सीनियर डायरेक्टर और हेड तन्वी शाह का कहना है कि भारत में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री वित्त वर्ष 2028 तक 7 फीसदी को पार करने की संभावना है। हालांकि, इसके लिए रेयर अर्थ मिनरल्स की समय पर सप्लाई जरूरी है। उनका कहना है, ऑटो कंपनियों की ओर से नए मॉडल लॉन्च की एक मजबूत पाइपलाइन, ईवी चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार और PLI योजना के जरिए बैटरी लोकलाइजेशन भारतीय बाजार में ईवी के लिए एक बेहतर हालात बना रहे हैं।

उनका कहना है, वित्त वर्ष 2026 के हालिया बजट में ईवी बैटरी निर्माण में इस्तेमाल होने वाले 16 प्रमुख मिनरल्स पर जीरो बेसिक कस्टम ड्यूटी लगाया गया, जिससे आयात पर निर्भरता कम हुई और उत्पादन लागत कम हुई। केयरएज का अनुमान है कि इंटीग्रेटेड बैटरी मैन्यूफैक्चरिंग में मौजूदा निवेश के चलते वित्त वर्ष 27 तक भारत की लीथियम-आयन सेल आयात निर्भरता लगभग 20% तक गिर सकती है। वित्त वर्ष 2022 में यह करीब 100% थी।

EVs: किस तरह बदल रहा इकोसिस्टम

केयरएज की रिपोर्ट बताती है कि चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर में जबरदस्त ग्रोथ देखी गई, जोकि एक सबसे बड़ा चैलेंज था। बीते तीन वर्षों में, भारत में सरकारी ईवी चार्जिंग स्टेशनों (EVPCS) की संख्या करीब 5 गुना बढ़कर CY22 में 5,151 से बढ़कर शुरुआती वित्त वर्ष 25 तक 26,000 से ज्यादा हो गई है। इस तरह 72% से ज्यादा का दमदार CAGR रहा। सरकार के एक समन्वित प्रयास, सक्रिय राज्य-स्तरीय ईवी नीतियों और निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी का इसमें बड़ा रोल है।

बता दें, FAME III योजना में चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार के लिए डेडिकेटेड एक्सपेंस शामिल हैं। वहीं, महाराष्ट्र, दिल्ली, तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों ने लैंड सब्सिडी से लेकर कैपेक्स सपोर्ट तक टारगेटेड ईवी इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोत्साहन शुरू किए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) अपनाने को रफ्तार देने के लिए ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स (OEM) अब निजी चार्जिंग नेटवर्क स्थापित कर सार्वजनिक चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की दिशा में सक्रिय पहल कर रहे हैं। प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनियां न केवल मेट्रो शहरों और राष्ट्रीय राजमार्गों पर फास्ट-चार्जिंग कॉरिडोर तैयार कर रही हैं, बल्कि ईवी खरीदने वालों को स्मार्ट होम चार्जर इंस्टॉलेशन की सुविधा भी प्रदान कर रही हैं। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि शहरी इलाकों में हर 5 से 10 किलोमीटर के भीतर एक भरोसेमंद चार्जिंग स्टेशन उपलब्ध हो, जिससे ‘रेंज चिंता’ जैसी सबसे बड़ी बाधा को कम किया जा सके।

हालांकि, इन पहलों के बावजूद भारत का चार्जिंग नेटवर्क अब भी ग्लोबल मानकों से पीछे है। वित्त वर्ष 2025 की शुरुआत तक, भारत में हर 235 ईवी पर औसतन एक सार्वजनिक चार्जर उपलब्ध था। इसकी तुलना में चीन, यूरोपीय संघ और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में हर 7 से 15 ईवी पर एक चार्जर है। यह अंतर दर्शाता है कि विशेषकर टियर-2 और टियर-3 शहरों में चार्जिंग सुविधाओं के विस्तार की रफ्तार और तेज करने की जरूरत है।

इस कमी को दूर करने के लिए कुछ नए और इनोवेटिव सॉल्यूशंस सामने आ रहे हैं। जैसे- फ्लीट वाहनों के लिए बैटरी स्वैपिंग स्टेशन, मोबाइल चार्जिंग वैन, सामुदायिक आधार पर साझा चार्जिंग पॉइंट और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सोलर-आधारित चार्जिंग कियोस्क। इसके अलावा, निजी चार्ज पॉइंट ऑपरेटर (CPO) भी तेजी से अपने नेटवर्क का विस्तार कर रहे हैं, जिसमें कई परियोजनाएं नगर निगमों और डिस्कॉम के साथ पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के तहत चल रही हैं।

वहीं, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) और नीति आयोग, चार्जिंग स्टेशनों के लिए एक समान तकनीकी प्रोटोकॉल लागू करने पर जोर दे रहे हैं, ताकि कंज्यूमर्स को सभी नेटवर्क पर आसानी से सर्विस मिल सके। मोबाइल ऐप्स के जरिए रियल-टाइम चार्जर की उपलब्धता दिखाना और प्रेडिक्टिव मेंटेनेंस सेवाएं देना भी ईवी चार्जिंग अनुभव को बेहतर और स्मार्ट बनाने की दिशा में अहम प्रयास हैं।

EVs: बैटरी पैक की लागत बड़ा ट्रिगर

EVs की कुल लागत में बैटरी पैक की कॉस्ट करीब 35-45% तक होती है। फिलहाल भारत लीथियम-आयन सेल के लिए लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है, खासकर चीन, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों से इसका आयात होता है। आयात निर्भरता के चलते न केवल लागत पर दबाव बनता है, बल्कि ग्लोबल सप्लाई चेन में दिक्कतों का असर घरेलू ईवी इंडस्ट्री पर होता है।

केयरएज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर बैटरी का लोकलाइजेशन, कस्टम ड्यूटी में छूट और बड़े पैमाने पर उत्पादन (इकॉनॉमी ऑफ स्केल) को बढ़ावा दिया जाए, तो आने वाले 3 से 5 वर्षों में बैटरी की लागत में 20-25% तक की कमी संभव है। इससे इलेक्ट्रिक वाहनों की कुल कीमत में अच्छी-खासी गिरावट आ सकती है और ईवी को आम कंज्यूमर्स के लिए और ज्यादा किफायती बनाया जा सकता है।

रिपोर्ट बताती है कि नीतिगत प्रोत्साहनों के साथ-साथ सरकार और इंडस्ट्री मिलकर घरेलू बैटरी उत्पादन को मजबूती देने पर काम कर रहे हैं। इसके लिए अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश, ग्लोबल टेक्नोलॉजी पार्टनर ​शिप और लोकल स्तर पर रॉ मैटीरियल्स की सोर्सिंग जैसी पहल की जा रही हैं। हालांकि, इसमें एक नई चुनौती चीन की ओर से सात प्रमुख रेयर अर्थ एलीमेंट्स (REE) के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के रूप में सामने आई है। ये एलीमेंट्स इलेक्ट्रिक मोटर्स और अन्य ईवी कम्पोनेंट्स के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं।

भारत अपने 90% से ज्यादा REE चीन से आयात करता है, जिससे यह सेक्टर प्राइस और सप्लाई दोनों तरह की अस्थिरता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो गया है। इसका प्रभाव वित्त वर्ष 2025-26 में इलेक्ट्रिक, हाइब्रिड और आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाले वाहनों के उत्पादन पर भी पड़ सकता है। हालांकि, केयरएज एडवाइजरी का मानना है कि इस संकट को टालने के लिए भारत पहले से ही कई कदम उठा रहा है। इसमें आयात के लिए नए सोर्स तलाशना, स्ट्रैटजिक स्टोरेज विकसित करना और घरेलू स्तर पर REE के प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को खड़ा करना शामिल है। ।

ईवी की लागत शुरुआत में भले ही ज्यादा हो, लेकिन लो ऑपरेटिंग खर्च एंड मेन्टेनेंस और टैक्स व रजिस्ट्रेशन शुल्क में छूट जैसे सरकारी प्रोत्साहनों के चलते पांच साल में ईवी पारंपरिक पेट्रोल-डीजल वाहनों के मुकाबले कहीं ज्यादा किफायती साबित हो सकते हैं।

भारत में कितना बड़ा EVs मार्केट

फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (FADA) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की पैठ वित्त वर्ष 2024-25 (FY25) में सिर्फ 7.8 फीसदी रही, जो FY24 में 7.1 फीसदी थी। यह मामूली बढ़ोतरी मुख्य रूप से तीन पहिया वाहनों में ईवी की अधिक हिस्सेदारी के कारण हुई, जहां FY25 में ईवी की पैठ 57.3 फीसदी रही, जो FY24 में 54.2 फीसदी थी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की ग्लोबल ईवी आउटलुक 2025 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 2023 और 2024 में इलेक्ट्रिक तीन पहिया वाहनों का दुनिया का सबसे बड़ा बाजार रहा। हालांकि, फोर व्हीलर्स पैसेंजर और कम​र्शियल व्हीकल्स में ईवी पेनिट्रेशन अभी भी सीमित है।

IEBF की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, साल 2023 में ग्लोबल इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) बाजार की वैल्यू 255.54 अरब डॉलर थी। 2033 तक करीब 2,108.80 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। जोकि 2024 से 2033 के दौरान 23.42% की CAGR से बढ़ेगा।

2025 में भारतीय ऑटो मैन्यूफैक्चरर करीब एक दर्जन नए इलेक्ट्रिक वाहन लॉन्च करेंगे, जिनमें प्रीमियम मॉडल्स पर फोकस होगा। यह ऐसे समय में हो रहा है जब ग्लोबल डिमांड में सुस्ती के बावजूद भारत में ईवी बिक्री में 20% की ग्रोथ हुई है। वहीं, दुनिया भर में इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर हो रहे रुख से ऑटोमोटिव सप्लायर्स के लिए नए अवसर पैदा होंगे। भारतीय ईवी बैटरी बाजार के 2023 में 16.77 अरब डॉलर से बढ़कर 2028 तक 27.70 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।

First Published : July 16, 2025 | 2:17 PM IST