बिहार में चुनावी सरगर्मियां तेज होने के साथ पट्टेदार और बटाईदार किसानों के मुद्दे एवं उनके कानूनी अधिकार राजनीतिक बहस के केंद्र में आ गए हैं। विपक्ष राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने बटाईदार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का दायरा बढ़ाने, किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से सस्ते ऋण उपलब्ध कराने और अन्य सरकारी योजनाओं के लाभ देने की बात कही है। इसके लिए, उन्होंने ऐसे किसानों को विशेष पहचान पत्र जारी करने का भी प्रस्ताव रखा है।
महागठबंधन की मजबूत सहयोगी माकपा ने भी अपने घोषणापत्र में बटाईदारों के लिए पहचान पत्र पेश करने, उनके अधिकारों की गारंटी देने और बेदखली पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया है।
कुछ साल पहले जारी राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि बटाईदारी या पट्टेदारी बिहार के कृषि परिदृश्य की विशेषता बनती जा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में बटाईदारी की सीमा 2012-13 और 2018-19 के बीच 22.67 प्रतिशत से बढ़कर 25.1 प्रतिशत हो गई है। राष्ट्रीय स्तर पर इसी अवधि के दौरान यह आंकड़ा कुल परिचालन भूमि जोत के 10.88 प्रतिशत से बढ़कर 13 प्रतिशत हो गया है। लेकिन, विशेषज्ञ लंबे समय से यह तर्क देते रहे हैं कि डेटा पट्टेदारी के आधिकारिक आंकड़ों और वास्तविकता में बड़ा अंतर है। कुछ कहते हैं कि राज्य की 37 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि पट्टेदारी या बटाईदारी के तहत जोती जाती है।
रिपोर्टों से ऐसा संकेत मिल रहा है कि महागठबंधन बटाईदारों पर डी बंद्योपाध्याय आयोग की सिफारिशों को लागू करने के प्रति भी गंभीर है। वर्षों पहले स्थापित इस आयोग ने किरायेदार किसानों की सुरक्षा के लिए एक छत्र कानून और भूमि जोत पर एक सीमा का प्रस्ताव दिया था। हालांकि, महागठबंधन के घोषणापत्र में इन सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करने की बात नहीं कही गई है।
इस बीच, सत्तारूढ़ राजग ने ‘कर्पूरी ठाकुर किसान सम्मान निधि’ नामक एक नई योजना के तहत मौजूदा पीएम-किसान भुगतान राशि के साथ राज्य की ओर से अतिरिक्त 3,000 रुपये देने की बात कही है।
पीएम-किसान योजना के तहत किसानों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये मिलते हैं, लेकिन बटाईदार या पट्टेदार किसानों को इस योजना का लाभ नहीं मिलता है। आंकड़ों के मुताबिक बीते 7 अगस्त तक राज्य में पीएम-किसान योजना के लाभार्थियों की संख्या लगभग 75 लाख थी। इनमें अधिकांश भूस्वामी ही थे। वास्तविक किरायेदार किसानों की पहचान करना बड़ी चुनौती बनी हुई है। इस कारण उन्हें सरकारी की ऐसी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता।
हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संसद को बताया कि केंद्र ने किरायेदार या पट्टेदार किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ देने का फैसला किया है। बशर्ते भूस्वामी इस बारे में लिखित सहमति दे। उन्होंने कहा कि यही नियम एमएसपी खरीद के लिए भी लागू होगा, जिस पर राज्य सरकार को ही फैसला लेना है। चौहान ने कहा कि हाल के महीनों में फसल बीमा योजना से 6,50,000 पट्टेदार किसानों को लाभ हुआ है, जबकि लगभग 42 लाख बटाईदारों से एमएसपी पर फसल खरीदी गई है। पहले ऐसे किसानों को प्रमुख योजनाओं का लाभ नहीं मिलता था।
बिहार में खेती की स्थिति
राज्य स्तरीय बैंकर समिति की रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि 2015-16 में छोटे और सीमांत किसानों का बिहार के कुल परिचालन जोतों का लगभग 97 प्रतिशत हिस्सा था, जबकि राष्ट्रीय औसत 86.1 प्रतिशत था। बिहार में जोतों का औसत आकार 0.39 हेक्टेयर था जबकि राष्ट्रीय औसत 1.08 हेक्टेयर का एक तिहाई से थोड़ा अधिक था। सीमांत किसानों में औसत जोत 0.25 हेक्टेयर थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 0.38 हेक्टेयर थी।