facebookmetapixel
पूरब का वस्त्र और पर्यटन केंद्र बनेगा बिहार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पटना में किया रोडशोब्रुकफील्ड की परियोजना को आरईसी से ₹7,500 करोड़ की वित्तीय सहायतादुबई की बू बू लैंड कर रही भारत आने की तैयारी, पहली लक्जरी बच्चों की मनोरंजन यूनिट जियो वर्ल्ड प्लाजा में!रवि कुमार के नेतृत्व में कॉग्निजेंट को मिली ताकत, इन्फोसिस पर बढ़त फिर से मजबूत करने की तैयारीलंबे मॉनसून ने पेय बाजार की रफ्तार रोकी, कोका-कोला और पेप्सिको की बिक्री पर पड़ा असरकैफे पर एकमत नहीं कार मैन्युफैक्चरर, EV बनाने वाली कंपनियों ने प्रस्तावित मानदंड पर जताई आपत्तिलक्जरी रियल एस्टेट को रफ्तार देगा लैम्बोर्गिनी परिवार, मुंबई और चेन्नई में परियोजनाओं की संभावनाएंविदेशी फर्मों की दुर्लभ खनिज ऑक्साइड आपूर्ति में रुचि, PLI योजना से मैग्नेट उत्पादन को मिलेगी रफ्तारGems and Jewellery Exports: रत्न-आभूषण निर्यात को ट्रंप टैरिफ से चपत, एक्सपोर्ट 76.7% घटाIPO की तैयारी कर रहा इक्विरस ग्रुप, भारतीय बाजारों का लॉन्गटर्म आउटलुक मजबूत : अजय गर्ग

संपादकीय: मुद्दाविहीन लोकसभा चुनाव

भारतीय मतदाताओं को मोटे तौर पर व्यक्तिगत हमले सुनने को मिल रहे हैं और ऐसे मुद्दों पर बात हो रही है जो देश को आगे ले जाने वाले नहीं हैं।

Last Updated- May 07, 2024 | 8:54 PM IST
मतदान के पहले दो घंटों में औसतन 10.81 प्रतिशत हुई वोटिंग, Lok Sabha Election 2024, Phase 3: Average voting took place at 10.81 percent in the first two hours of voting

निर्वाचन आयोग द्वारा लोक सभा चुनाव (Lok Sabha Elections) की घोषणा किए तथा आदर्श आचार संहिता लागू हुए 50 दिन से अधिक हो चुके हैं। तीन चरणों का मतदान हो चुका है तथा आधे से अधिक लोक सभा क्षेत्रों में मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर लिया है।

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन तथा कांग्रेसनीत विपक्षी गठबंधन दोनों जीत के लिए लगातार प्रचार अभियान में लगे हुए हैं। इन सब बातों के बीच मतदाता अगर किसी चीज की कमी महसूस कर रहे हैं तो वह है अहम मुद्दों पर ठोस बहस।

दोनों दलों ने अपने-अपने घोषणापत्र जारी किए हैं लेकिन जरूरी नहीं कि उनमें चर्चा के अहम बिंदु शामिल हों। चाहे जो भी हो, भारत में चुनाव प्रचार वैसे भी काफी हद तक घोषणापत्र से परे होता है।

देश में अधिकांश बहस अप्रासंगिक और अवांछित विषयों पर केंद्रित रही है। जल्दी ही दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे देश में इससे बेहतर की उम्मीद थी। चूंकि जरूरी मुद्द नहीं उठ रहे हैं इसलिए भाषा भी प्रभावित हुई है।

यह 10 वर्ष पहले हुए लोक सभा चुनावों से एकदम विपरीत है। उस समय भाजपा ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की कमजोरी का लाभ लेने के लिए ‘अच्छे दिन’ का वादा किया था। वह बदलाव के लिए हुआ सकारात्मक चुनाव प्रचार था और दशकों बाद एक दल को बहुमत मिला था। 2019 के आम चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा अहम था क्योंकि पुलवामा और बालाकोट के मामले जनता की स्मृति में एकदम ताजे थे। आज वैसा कुछ भी देखने को नहीं मिल रहा है।

प्रचार अभियान इतिहास के इर्दगिर्द घूम रहा है। कई बार तो मध्यकालीन इतिहास की बातें होने लगती हैं कि किसने कब क्या खाया, आरक्षण को बरकरार रखने या बढ़ाने की बातें हो रही हैं जो अक्सर आबादी के एक हिस्से को दूसरे के खिलाफ करती हैं।

अन्य बातों के अलावा संपत्ति और संसाधनों के पुनर्वितरण की बातें हो रही हैं। इनसे आर्थिक वृद्धि की गति बढ़ाने में कोई मदद नहीं मिलेगी। न ही स्कूली शिक्षा के नतीजों में कोई सुधार होने वाला है।

उदाहरण के लिए विरासत कर का मुद्दा कुछ दिनों तक बिना वजह चर्चा में रहा और फिर नदारद हो गया। यह बात हम सभी जानते हैं कि भारत जैसे देश में ऐसे कर लगाना बहुत मुश्किल है।

राजनीतिक दलों द्वारा अप्रासंगिक मुद्दों पर बात करने की एक वजह चुनावों की प्रक्रिया का लंबा होना भी हो सकता है। अगर दो या तीन चरणों में चुनाव प्रक्रिया पूरी की जाती तो शायद वे अहम मुद्दों पर केंद्रित रहते। राजनीतिक बहस में सुधार की प्राथमिक जिम्मेदारी भाजपा और कांग्रेस दोनों की है।

भाजपा देश को विकसित बनाना चाहती है तो उसके लिए यह अवसर था कि वह अपनी उपलब्धियां गिनाए और भविष्य के खाके पर बात करे। कांग्रेस तथा विपक्षी दलों के लिए यह मौका था कि वे उन क्षेत्रों को रेखांकित करें जिनमें सरकार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी। वे मतदाताओं के समक्ष बेहतर विकल्प भी प्रस्तुत कर सकती थी।

यह दुर्भाग्य की बात है कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। भारतीय मतदाताओं को मोटे तौर पर व्यक्तिगत हमले सुनने को मिल रहे हैं और ऐसे मुद्दों पर बात हो रही है जो देश को आगे ले जाने वाले नहीं हैं।

भारत को तेज आर्थिक विकास की आवश्यकता है। इसके लिए राजनीतिक पूंजी और ऊर्जा को टिकाऊ वृद्धि सुनिश्चित करने पर केंद्रित रहना चाहिए। इससे जुड़ा एक मसला रोजगार तैयार करने का है।

देश की बढ़ती श्रम शक्ति के लिए तथा कृषि में लगी देश की आधी आबादी को उससे बाहर निकालने के लिए उत्पादक रोजगार की आवश्यकता है। तभी उत्पादकता और वृद्धि हासिल किए जा सकेंगे। भारत ये लक्ष्य कैसे हासिल करेगा, यह बात किसी भी राजनीतिक बहस के केंद्र में होनी चाहिए।

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज ने चुनाव के पहले एक सर्वेक्षण कराया था जिसमें पाया गया था कि मुद्रास्फीति और रोजगार अधिकांश भारतीयों के लिए प्रमुख मुद्दा हैं। अब वक्त आ गया है कि राजनीतिक बहस उन मुद्दों पर हो जो जनता के जीवन को सीधे प्रभावित करते हैं।

First Published - May 7, 2024 | 8:54 PM IST

संबंधित पोस्ट