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Editorial: अमेरिकी टैरिफ नीति की उलझनों के बीच CPTPP में शामिल होने पर हो विचार

भारत समेत अन्य देशों के साथ उसकी बातचीत सही ढंग से चलने के कोई संकेत नहीं हैं। चाहे जो भी हो ट्रंप द्वारा लागू किया गया 10 फीसदी का बुनियादी शुल्क बरकरार रहेगा।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- June 25, 2025 | 10:27 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दुनिया के बाकी देशों के विरुद्ध छेड़ी गई कारोबारी जंग में 90 दिन का जो ‘स्थगन’ लागू किया था, उसकी अवधि आगामी 8 जुलाई को समाप्त हो जाएगी। माना जा रहा है कि उन्होंने जो जवाबी शुल्क लागू किए थे वे उस दिन दोबारा प्रभावी हो जाएंगे। अमेरिकी प्रशासन ने वादा किया था कि उसके पहले कुछ व्यापार समझौते पूरे कर लिए जाएंगे और कई अवसरों पर कहा गया कि 90 अलग-अलग वार्ताएं चल भी रही हैं। परंतु अब तक केवल यूनाइटेड किंगडम के साथ ही समझौता हो सका है।

भारत समेत अन्य देशों के साथ उसकी बातचीत सही ढंग से चलने के कोई संकेत नहीं हैं। चाहे जो भी हो ट्रंप द्वारा लागू किया गया 10 फीसदी का बुनियादी शुल्क बरकरार रहेगा। यह शुल्क यूनाइटेड किंगडम के साथ हुए समझौते का भी हिस्सा है। इस शुल्क ने अमेरिकी प्रशासन को मजबूती प्रदान की है क्योंकि इसकी बदौलत अरबों डॉलर का राजस्व आया है जो कर कटौती योजनाओं की भरपाई में मदद कर रहा है। मुद्रास्फीति पर भी इसका बहुत अधिक असर नहीं हुआ है। ट्रंप ने वैश्विक व्यापार को जो नुकसान पहुंचाया फिलहाल पश्चिम एशिया में व्याप्त अव्यवस्था के चलते वह चिंता का मुख्य विषय नहीं है लेकिन हमेशा ऐसा नहीं रहेगा। बहुत जल्द भारत और शेष विश्व को अधिक विभाजित व्यापार व्यवस्था का सामना करना पड़ेगा।

इन हालात में भारत के लिए आगे की राह एकदम स्पष्ट है: उसे अमेरिका के साथ ऐसे समझौते का प्रयास जारी रखना होगा जो उसकी प्रतिस्पर्धी बढ़त में इजाफा करे। इसके साथ ही उसे व्यापार के अनुकूल दूसरे देशों के साथ ही अन्य व्यापार समझौतों पर भी हस्ताक्षर करना होगा। सरकार पहले ऐसे समझौतों को लेकर शंकालु नजर आती थी लेकिन हाल के दिनों में उसने विभिन्न समझौतों को लेकर सकारात्मक इच्छा जताई है। बीते वर्षों में ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात तथा यूनाइटेड किंगडम आदि देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों तथा व्यापक आर्थिक साझेदारियों पर हस्ताक्षर किए गए।

परंतु साफ कहा जाए तो ये समझौते इतने बड़े नहीं हैं कि अमेरिका द्वारा फैलाई जा रही अव्यवस्था की भरपाई कर सकें। ऐसे में सबसे पहले यह जरूरी है कि यूरोपीय संघ के साथ चल रही मौजूदा वार्ता को प्रधानमंत्री द्वारा तय समयसीमा में यानी वर्ष के अंत तक पूरा कर लिया जाए। किसी भी अन्य समझौते से अधिक इस समझौते में साझा समृद्धि की गुंजाइश है।

परंतु मूल्य श्रृंखलाओं में शामिल होने के लिए भारत को अपने पूर्व के विनिर्माण केंद्रों पर भी विचार करना होगा। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री ने हाल ही में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों यानी आसियान देशों को चीन की ‘बी टीम’ कहा है। ऐसे बयान प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। तथ्य यह है कि आसियान देशों तथा चीन को छोड़कर अन्य एशियाई देशों के साथ एकीकरण जरूरी है तभी भारत अपने विनिर्माण में सुधार कर पाएगा और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन पाएगा। आर्थिक नजरिये से इसका मतलब यह हुआ कि हमें क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी यानी आरसेप जैसे बड़े समझौतों में शामिल होना चाहिए। परंतु चूंकि चीन आरसेप का हिस्सा है, इसलिए शायद इसे राजनीतिक दृष्टि से तब तक व्यवहार्य न माना जाए जब तक कि उसके साथ रिश्ते सुधर नहीं जाते।

हालांकि प्रशांत पार साझेदारी के लिए व्यापक एवं प्रगतिशील समझौते यानी सीपीटीपीपी को लेकर तो यह आपत्ति भी नहीं बनती। भारत को इसमें शामिल होने का आवेदन करना चाहिए। इसमें शामिल होने से जापान और कोरिया जैसे बड़े निवेशकों को भारतीय बाजार के साथ जोड़ने में मदद मिलेगी। इससे घरेलू नियामकीय सुधारों के लिए भी स्पष्ट खाका तैयार करने में मदद मिलेगी ताकि भारतीय नियमन को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाया जा सके और निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके। इस प्रक्रिया में समय लग सकता है लेकिन वैश्विक व्यापार ढांचे में व्याप्त अनिश्चितता और अव्यवस्था को देखते हुए यह महत्त्वपूर्ण है। ऐसा करके ही भारत एक खास दिशा को लेकर अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर सकता है।

First Published : June 25, 2025 | 10:25 PM IST