केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने हाल ही में ‘कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति प्रारूप’ का मसौदा जारी किया और उस पर सार्वजनिक टिप्पणियां और सुझाव आमंत्रित किए। कृषि उत्पादन और उत्पादकता में बीते वर्षों में काफी सुधार हुआ है लेकिन कृषि विपणन समय के साथ बेहतर नहीं हो सका है। ऐसे में कृषि सुधारों को केवल कारक बाजार सुधार तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि इसमें विपणन संबंधी दिक्कतें दूर करने की कोशिशों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इससे सभी हितधारकों को लाभ होगा। इनमें किसान और उपभोक्ता भी शामिल हैं। इस संदर्भ में मसौदा नीति को समूचे भारत में एकरूप व्यवस्था के अंतर्गत कृषि उपज के गतिरोध मुक्त व्यापार की जरूरत पर ध्यान देना चाहिए।
कृषि उपज विपणन समिति यानी एपीएमसी के अधीन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 7,057 विनियमित थोक बाजार स्थापित किए गए। बहरहाल, इन बाजारों का औसत घनत्व देखें तो 407 किलोमीटर क्षेत्र में एक बाजार है। यह 80 वर्ग किलोमीटर में एक बाजार के मानक से काफी कम है। इतना ही नहीं, 23 राज्यों और चार केंद्रशासित प्रदेशों के 1,410 बाजार इलेक्ट्रॉनिक-नैशनल एग्रीकल्चर मार्केट यानी ई-नाम नेटवर्क से जुड़े हैं। जबकि 1,100 से अधिक बाजार सक्रिय नहीं हैं। करीब 450 बाजारों में बहुत कम या न के बराबर अधोसंरचना है और वे प्रतिकूल परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। इस संबंध में मसौदा नीति ने कृषि-उपभोक्ता बाजारों की पहुंच बढ़ाने जैसे उपायों का प्रस्ताव रखकर सही किया है ताकि किसान अपने उत्पादों को सीधे खुदरा ढंग से ग्राहकों को बेच सकें। खासतौर पर पहाड़ी और पूर्वोत्तर के इलाकों में ग्रामीण हाटों को ग्रामीण कृषि बाजारों में बदलकर तथा जिला और राज्य स्तर पर कृषि प्रसंस्करण और निर्यातोन्मुखी सुविधाएं मजबूत करके ऐसा किया जा सकता है।
सूचना की विषमता को कम करने और पारदर्शिता लाने के लिए विपणन प्रक्रिया को डिजिटल बनाने की कोशिश में इस नीति में ई-नाम को एपीएमसी बाजारों से आगे सार्वजनिक और निजी खरीद केंद्रों तथा ग्रामीण हाटों तक समेकित और विस्तारित करने की भी सिफारिश की गई है। इससे भी अहम, नीति में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की बात कही गई है। खासतौर पर निजी-सार्वजनिक भागीदारी के क्षेत्र में ऐसा करके एपीएमसी बाजारों में अधोसंरचना की कमी को दूर किया जा सकता है और साथ ही राज्यों के कृषि विपणन मंत्रियों की एक अधिकारप्राप्त कृषि विपणन सुधार समिति बनाने की भी आवश्यकता है। ताकि राज्यों को एपीएमसी अधिनियम के सुधार वाले प्रावधानों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सके।
कुछ किसान संगठनों ने यह चिंता जताई है कि निजी क्षेत्र की भागीदारी में इजाफा ऐसे एकाधिकार को जन्म देगा जो किसानों को नुकसान पहुंचाएगा और उनकी मोल भाव की क्षमता को छीन लेगा। बहरहाल, थोक खरीदारों द्वारा किसानों से कृषि उपज की सीधी खरीद यानी बिना सरकार द्वारा अधिसूचित मंडियों के या विभिन्न शुल्क चुकाए बिना सीधी खरीद दीर्घावधि में कारोबारी शर्तों को किसानों के पक्ष में ही करेगी। तिमाही कृषि-कारोबार सुगमता सूचकांक की स्थापना की भी अनुशंसा मसौदा नीति में की गई है। इससे भी राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा विकसित होगी।
मसौदा नीति में इस बात को स्वीकार किया गया है कि कृषि विपणन राज्य सूची का विषय है और संविधान की सातवीं अनुसूची में होने के कारण केंद्र और राज्य सरकारों को इस विषय में मिलकर काम करना होगा। अतीत में कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद सरकार ने कृषि सुधारों के लिए मशविरे वाली राह अपनाकर अच्छा किया है। चाहे जो भी हो, जरूरत इस बात की है कि बेहतर भंडारण और बाजार ढांचे में निवेश किया जाए। इसके साथ भंडारण को विकेंद्रीकृत करने तथा गोदामों की बेहतर सुविधा तैयार करने तथा देश में कृषि जिंसों में डेरिवेटिव कारोबार दोबारा शुरू करने की जरूरत है।