लगातार कुछ दिनों की मूसलाधार बारिश और इसके बाद यमुना नदी में उफान से देश की राजधानी दिल्ली लगभग जलमग्न हो गई। जलवायु पर प्रकाशित कई खबरों एवं शोध पत्रों में कहा गया है कि वैश्विक तापमान बढ़ने से हरेक साल कोई न कोई शहर बाढ़-बारिश या अन्य प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार कभी एक दशक में यदा-कदा घटने वाली ऐसी घटनाएं अब कभी भी कहीं भी दिख कहर बरपा जाती हैं। पिछले साल बेंगलूरु शहर भी दिल्ली की तरह ही डूब गया था। आईपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार बाढ़ और अतिवृष्टि जैसे घटनाओं की आवृत्ति कम होने के बजाय हरेक साल बढ़ती ही जाएगी।
दिल्ली हाल के वर्षों में इतनी वीभत्स बाढ़ की चपेट में नहीं आई थी। मगर अब दिल्ली की बाढ़ के साथ-साथ व्यवस्थित शहरी नियोजन, कुप्रंबधित साफ-सफाई एवं जल निकासी प्रणाली सहित जलवायु के बदलते मिजाज के अनुरूप आधारभूत ढांचों का विकास नहीं होने पर भी सबकी निगाहें जम गई हैं।
पानी पानी हुई दिल्ली
पिछले दो दशकों के दौरान दिल्ली एवं इसके आस-पास आधारभूत संरचनाओं के विकास में तो प्रगति हुई है, मगर इस दौरान उपयुक्त एवं आवश्यक जल निकासी व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया गया। इसके अलावा दिल्ली के आस-पास के निचले इलाकों में संरचनाओं का विकास भी वर्तमान हालात के लिए जिम्मेदार है।
पहले इन निचले इलाकों में वर्षा का जल जमा होता रहता था मगर और धीरे-धीरे भूमिगत जल में तब्दील हो जाता था।दिल्ली में लगभग 66 प्रतिशत विकास कार्य उन क्षेत्रों में हो रहे हैं जहां पहले अधिक मात्रा में वर्षा आदि का पानी जमा होता था।
कई रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में ज्यादातर विकास नगर निगम क्षेत्र से बाहर हो रहे हैं जिससे पानी निकासी की समस्या और गंभीर हो गई है।
विश्व संसाधन संस्थान (डब्ल्यूआरआई) की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है,‘पिछले एक दशक के दौरान दिल्ली में जल संचित होने और जल अवशोषित होने की जगहों में कमी आई है। ‘अर्बन ब्लू-ग्रीन कननड्रम शीर्षक’ नाम से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि 2000-2015 के बीच दिल्ली में जल संचित होने की जगहों में 36 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है और भूमिगत जल के रूप में वर्षा जल के अवशोषित होने में अध्ययन में शामिल 10 शहरों में दिल्ली में सर्वाधिक कमी आई है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राकृतिक अधोसंरचना का क्षरण होने से पूरे शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की क्षमता चरमरा जाती है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘पिछड़े एवं सुविधाओं से वंचित लोग अक्सर अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों (जैसे बाढ़ की आशंका वाले इलाकों) या फिर उन जगहों में रहते हैं जहां कोई प्राकृतिक ढांचा (जैसे हरित क्षेत्र) नहीं होते हैं।
‘डब्ल्यूआरआई में कार्यक्रम निदेशक, एकीकृत विकास, नियोजन एवं क्षमता, जया ढिंढव का कहना है कि पिछले दो दशकों के दौरान देश के बड़े शहरों में विकास एवं निर्माण कार्य नगर निगम क्षेत्र से बाहर हुए हैं और प्राकृतिक संरचनाएं जैसे वन आदि शहरों से लगे क्षेत्रों में होते हैं।
ढिंढव कहती हैं, ‘इन्हीं जगहों पर बाढ़ आदि का पानी जमा होता था। मगर इन क्षेत्रों में अब निर्माण कार्य होने से मुश्किलें बढ़ने लगी हैं।‘ उन्होंने कहा कि एक समस्या यह भी है कि इन क्षेत्रों में वर्षा से जमा जल की निकासी या निकासी तंत्र मौजूद नहीं है। अगर निकासी सुविधा नहीं है तो सारा जल एक जगह जमा हो जाता है क्योंकि बिना निकासी सुविधा के पानी दूसरी जगह नहीं जा सकता।
ढिंढव कहती हैं, ‘यही कारण है कि आप कुछ जगहों पर अधिक असर देख रहे हैं। पूरा शहर पानी में नहीं डूबा है मगर कुछ खास क्षेत्र जलमग्न हो गए हैं।‘बेहतर योजनाएं, अधिक रकम जरूरीवैश्विक तापमान में बढ़ोतरी से प्राकृतिक आपदाएं अधिक आ रही हैं।
इन्हें ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली जैसे बड़े शहरों में भविष्य को नजर में रखते हुए शहरी प्रबंधन योजना तैयार की जानी चाहिए और इसे दीर्घ अवधि तक टिकाऊ बनाए रखने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन का भी इंतजाम होना चाहिए। ये सभी प्रयास नगर निगम के स्तर पर किए जाएंगे मगर उनके पास दीर्घ अवधि की योजनाओं के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं होते हैं।
नगर निगम अल्प अवधि के तौर-तरीकों पर निर्भर होते हैं इसलिए आपदा आने पर स्थिति और विकराल हो जाती है।बिज़नेस स्टैंडर्ड ने जब दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के बजट एवं व्यय का विश्लेषण किया तो पाया कि जलापूर्ति, बाढ़ नियंत्रण एवं शहरी विकास के लिए व्यय बजट में आवंटित रकम की तुलना में कम रहा है।
वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान एमसीडी का राजस्व 8,900 करोड़ रुपये था मगर यह वित्त वर्ष 2023 के योजनागत व्यय 10,000 करोड़ रुपये से कम ही रहा। चालू वित्त वर्ष में यह आंकड़ा 16,024 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है।वित्तीय संसाधनों की कमी के अलावा जानकारियों के लिहाज से भी नगर निगम पूरी तरह तैयार नहीं है।
ढिंढव का कहना है कि कई इकाइयों के पास वर्षा जल की निकासी से जुड़े निकासी तंत्र (भूमिगत एवं भूमि पर दोनों से संबंधित) को लेकर जानकारियां उपलब्ध नहीं हैं। ढिंढव कहती हैं, दिल्ली की तरह मुंबई और कोलकता जैसे शहरों में भूमिगत पाइप बिछी हुई हैं मगर वे सौ साल से भी अधिक पुरानी हैं। ये कहां हैं, इनकी क्षमता कितनी है और ये किस स्थिति में हैं इसे लेकर भी जानकारी उपलब्ध नहीं है। विनिर्माताओं को पता ही नहीं होता कि उन्हें कहां संरचना खड़ी करनी चाहिए और जल निकासी प्रणाली कैसी होनी चाहिए।