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साप्ताहिक मंथन: विपक्ष की परीक्षा

अगर विपक्ष राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों को लेकर अलग रुख पेश करना चाहता है तो उसे बताना होगा कि वह ऐसा कैसे करेगा और क्या करेगा?

Last Updated- August 11, 2023 | 9:55 PM IST
No Confidence Motion Debate: Rahul Gandhi Speech

विपक्ष की परीक्षा के लिए एक प्रश्न: नए विपक्षी गठबंधन में शामिल विभिन्न दलों के विरोध के बावजूद संसद में कितने विधेयक पारित हुए, अगर 2024 के आम चुनाव के बाद ये दल सत्ता में आते हैं तो क्या ये इन कानूनों को वापस लेंगे?

उदाहरण के लिए क्या वे निर्वाचन आयुक्तों का चयन करने वाले पैनल में देश के मुख्य न्यायाधीश को वापस लेंगे? या फिर क्या वे उन चार श्रम संहिताओं को संशोधित करेंगे जिनके चलते बड़े नियोक्ताओं द्वारा अनुबंधित श्रमिकों को काम पर रखने के मामले तेजी से बढ़े हैं? और क्या वे नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को वापस लेंगे अथवा उसे संशोधित करेंगे?

अगर विपक्ष राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों को लेकर अलग रुख पेश करना चाहता है तो उसे बताना होगा कि वह ऐसा कैसे करेगा और क्या करेगा? उदाहरण के लिए विपक्षी दल सरकारी जांच एजेंसियों के उपयोग या दुरुपयोग की आलोचना करते हैं जिनमें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय शामिल हैं।

परंतु जब सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोता’ कहा गया था तब कांग्रेस सत्ता में थी। तो क्या पार्टी यह कहने लायक है? ज्यादा व्यापक तौर पर बात करें तो संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता बरकरार रखने या धन विधेयक के प्रावधानों का दुरुपयोग रोकने के लिए विपक्ष का एजेंडा क्या होगा?

या फिर अगर राष्ट्रीय सुरक्षा के कानूनों की बात करें तो आंतरिक सुरक्षा रखरखाव कानून को जनता सरकार ने समाप्त कर दिया था क्योंकि कांग्रेस ने सन 1970 के दशक के मध्य में आपातकाल के दौरान इसका काफी दुरुपयोग किया था। इस कानून के बाद बनने वाले आतंकवाद एवं विध्वंसक गतिविधि अधिनियम (टाडा) और आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) को भी समाप्त कर दिया गया।

इस बार यह काम कांग्रेसनीत गठबंधन सरकारों ने किया। कारण पहले की तरह ही दुरुपयोग था। इस इतिहास और अनुभव को देखते हुए क्या विपक्ष गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के साथ ऐसा कुछ करेगा ताकि राजनीतिक आलोचकों आदि के खिलाफ उनका दुरुपयोग रोका जा सके, वह भी बिना राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता किए?

संवैधानिक मामलों में विपक्ष की परीक्षा का मामला है जम्मू कश्मीर को लेकर उसका विरोध। तथ्य तो यह है कि संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को खत्म किए जाने के मामले में जम्मू कश्मीर के बाहर काफी स्वीकार्यता है और यह भी कह सकते हैं कि उस केंद्रशासित प्रदेश में भी उसे एक निर्विवाद तथ्य के रूप में स्वीकार कर लिया गया हो। क्या विपक्ष जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस दिलाने के अलावा अन्य परिस्थितियों को भी बदलना चाहता है?

क्या विपक्ष गो संरक्षण कानूनों को बदलेगा?

खासतौर पर सामाजिक मुद्दों पर हालात को आसानी से पलट कर पुरानी स्थिति में नहीं लाया जा सकता है। क्या विपक्ष गो संरक्षण कानूनों को बदलेगा? क्या वे वास्तव में सही तरीके से बनाई जाने वाली समान नागरिक संहिता के खिलाफ हैं? या फिर विपक्ष की आवाज केवल रिकॉर्ड के लिए है क्योंकि मुस्लिमों को भय है कि ऐसा कानून उनको निशाना बना सकता है।

ध्यान दीजिए कि विपक्ष पहले ही इन मसलों को लेकर पूरी प्रतिबद्धता जताने से बच रहा है। यह याद करना उचित होगा कि रूढि़वादी तत्त्व जो सन 1950 के दशक में नेहरू द्वारा हिंदू पर्सनल लॉ का यह कहते हुए विरोध कर रहे थे कि सरकार को वैदिक समय से चले आ रहे कानूनों और आचरण को नहीं छूना चाहिए, वे आज उन्हें पलटने की सोच भी नहीं सकते क्योंकि ऐसा करना प्रतिगामी कदम होगा।

वैदिक समय की जगह शरीयत कर दीजिए और आपको रूढि़वादियों के वही स्वर सुनाई देंगे। केंद्र और राज्यों में सरकार द्वारा सत्ता के दुरुपयोग की बात करें तो अक्सर विभिन्न दलों के बीच बहुत अंतर नहीं होता है, हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने आलोचक स्वरों को खामोश करने की एक खास किस्म की विशिष्टता दिखाई है।

यह विडंबना ही है कि 1970 के दशक में जनता पार्टी (भाजपा के पुराने संस्करण जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ था) ने एक प्रसार भारती की नींव रखी थी जिसे सरकार की स्वायत्त संस्था होना था। आज विपक्षी दलों को खुलकर यह बताने की आवश्यकता है कि वे नागरिकों को सरकार की अतियों से कैसे बचाएंगे?

उदाहरण के लिए क्या वे दो हालिया कानूनों की समीक्षा करेंगे जिनमें से एक प्रेस तथा मीडिया से और दूसरा डेटा संरक्षण और निजता से संबंधित है? ये दोनों सरकार को आसानी से दुरुपयोग का अधिकार देते हैं और अनुभव बताता है कि अगर ऐसे अधिकार दिए जाते हैं तो उनका दुरुपयोग होता है।

अब जबकि राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि का दोषी भी ठहराया जा चुका है तो इस बात पर यकीन हो सकता है कि विपक्षी दल शायद मानहानि को आपराधिक कानूनों की श्रेणी से हटाने के अधिक इच्छुक होंगे। कई लोकतांत्रिक देश ऐसा कर चुके हैं। सवाल यह है कि क्या विपक्ष विश्वसनीय ढंग से उन मुद्दों पर भी ऐसे कदम उठाने का वादा कर सकता है जहां ऐसा कोई व्यक्तिगत इतिहास नहीं है।

First Published - August 11, 2023 | 9:55 PM IST

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