पिछले दिनों एक वैश्विक संस्था ने भारत के राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) को मान्यता देकर देश के डॉक्टरों के लिए विदेश में प्रैक्टिस के दरवाजे खोल दिए हैं। वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेडिकल एजुकेशन (WFME) ने एनएमसी को 10 साल के लिए यह मान्यता दी है।
अब देश के मेडिकल कॉलेजों के स्नातकों को एजुकेशनल कमिशन फॉर फॉरेन मेडिकल ग्रैजुएट्स (ईसीएफएमजी) के पास आवेदन करने का मौका मिल जाएगा। यह एक रेसिडेंसी प्रोग्राम या अमेरिका में प्रवेश का माध्यम है। यह उस देश में मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए विदेशी छात्रों का आकलन करता है। मेडिकल लाइसेंस के लिए, छात्रों को यूनाइटेड स्टेट्स मेडिकल लाइसेंसिंग एक्जामिनेशन (यूएसएमएलई) में बैठना पड़ता है।
अगर एनएमसी को यह नई मान्यता नहीं मिलती तो भारतीय छात्रों को यूएसएमएलई की परीक्षा में परेशानी आ सकती थी, खासतौर पर तब जब उनके कॉलेज को डब्ल्यूएफएमई की मान्यता नहीं मिली हो। हालांकि मुंबई के सायन अस्पताल की मेडिकल छात्रा जैनब शाकिर ने कहा कि नए बदलाव से कुछ नहीं बदलेगा।
उन्होंने कहा, ‘भारत के मेडिकल छात्र पहले की तरह पीएलएबी (ब्रिटेन में प्रोफेशनल ऐंड लिंग्विस्टिक असेसमेंट बोर्ड) और यूएसएमएलई जैसी पंजीकरण वाली परीक्षाएं दे सकते हैं। पहले इस बात का डर था कि छात्र यूएसएमएलई के लिए आवेदन नहीं कर पाएंगे। लेकिन अब हम ऐसा कर सकते हैं।’
पुणे के केईएम अस्पताल में एमबीबीएस, फॉरेंसिक मेडिसिन में एमडी और अकादमिक डीन, हरीश पाठक ने इस बात पर जोर दिया कि ताजा अधिसूचना की जांच करके गलत धारणाएं दूर की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि मेडिकल छात्र विदेश जाकर सीधे प्रैक्टिस कर सकते हैं। इससे पहले, हमारी समझ यह थी कि भारत के छात्र ईसीएफएमजी के लिए बैठ सकते हैं और अगर वे पास हो जाते हैं, तो वे प्रैक्टिस कर सकते हैं। यह व्यवस्था सीमित संख्या वाले मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेजों के लिए थी।’
डब्ल्यूएफएमई की मान्यता हरेक मेडिकल कॉलेज को 49,85,142 रुपये (लगभग 60,000 डॉलर) के शुल्क के साथ मिलती है। इस शुल्क में टीम के मौके पर जाने का खर्च भी शामिल है जिसमें उनकी यात्रा और रहने का खर्च भी शामिल है। यह मान्यता एनएमसी के तहत आने वाले सभी मेडिकल कॉलेजों को मिलेगी। पाठक ने स्पष्ट किया कि एनएमसी द्वारा मान्यता प्राप्त कॉलेजों को डब्ल्यूएफएमई मान्यता प्रक्रिया के लिए शुल्क का भुगतान नहीं करना पड़ता है।
एनएमसी ने जिस नए नियमन पर हस्ताक्षर किए हैं उसके तहत भारत के सभी मेडिकल कॉलेजों के छात्रों को उन परीक्षाओं में बैठने और क्वॉलिफाई करने का मौका मिलेगा। डब्ल्यूएफएमई मान्यता वाले देशों में स्नातकोत्तर प्रशिक्षण और प्रैक्टिस की मूल प्रक्रिया में काफी हद तक कोई बदलाव नहीं आता है। छात्रों को अब भी ईसीएफएमजी और यूएसएमएलई जैसे प्रमाणित संस्थाओं द्वारा तय कठोर मानदंडों को पूरा करने की आवश्यकता होगी क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल करियर के लिए मूल आवश्यकताएं पिछले नियमों के अनुरूप ही हैं।
एनएमसी की मान्यता से यह सुनिश्चित होता है कि भारत में सभी मौजूदा 706 मेडिकल कॉलेजों को अब डब्ल्यूएफएमई मान्यता मिलेगी। अगले दशक में स्थापित होने वाले किसी भी मेडिकल कॉलेज को इस तरह स्वतः मान्यता मिल जाएगी।
यह अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में स्नातकोत्तर प्रशिक्षण और प्रैक्टिस के इच्छुक मेडिकल स्नातक छात्रों के लिए अहम होगा जहां डब्ल्यूएफएमई मान्यता की जरूरत होती है।