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श्रीलंका और बांग्लादेश का रुख क्षेत्रीय व्यापार समझौते के जरिये पूर्व की ओर

श्रीलंका ने इस 15 सदस्यीय व्यापक क्षेत्रीय व्यापार समझौते का हिस्सा बनने के लिए 2023 में आवेदन किया था। उसने इस वर्ष थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार समझौता भी किया था।

Last Updated- April 30, 2024 | 11:10 PM IST

दक्षिण एशिया के छोटे देश द्विपक्षीय एवं बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौते के जरिये पूर्व की ओर रुख कर रहे हैं जिसका परिणाम होगा कि इन देशों के व्यापार पर चीन का दबदबा बढ़ता जाएगा। बता रही हैं अमिता बत्रा

पिछले महीने के शुरू में श्रीलंका में एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा था कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) की सदस्यता के लिए वह अपने आवेदन को मंजूरी मिलने का इंतजार कर रहा है। अधिकारी ने यह भी कहा कि आरसेप के वर्तमान सदस्यों ने किसी नए सदस्य को अपने समूह में शामिल करने के लिए नया ढांचा तैयार किया है।

अधिकारी के अनुसार आरसेप के सदस्यों के साथ उसकी बातचीत चल रही है। श्रीलंका ने इस 15 सदस्यीय व्यापक क्षेत्रीय व्यापार समझौते का हिस्सा बनने के लिए 2023 में आवेदन किया था। उसने इस वर्ष थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार समझौता भी किया था।

यह स्पष्ट है कि हिंद महासागर का यह छोटा देश संकट से उबर रही अपनी अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने की पहल कर रहा है और पूर्वी एशियाई क्षेत्रीय/वैश्विक मूल्य तंत्र (आरवीसी/जीवीसी) केंद्र के साथ जुड़ने में पूरी शक्ति झोंक रहा है।

श्रीलंका द्वारा नीतिगत स्तर पर उठाया गया यह कदम सराहनीय है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि वह गर्त में जाने के बाद आर्थिक सुधार की प्रक्रिया से गुजर रहा है। श्रीलंका ने आर्थिक मझधार से निकलने के लिए जो कदम उठाए हैं वे निर्यात में विविधता लाने पर केंद्रित हैं।

इसका कारण यह है कि श्रीलंका में हाल में पैदा हुए बाह्य ऋण संकट के लिए आंशिक रूप से सीमित वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात था जिसके कारण उसके पास जमा विदेशी मुद्रा भंडार घटता चला गया। श्रीलंका से होने वाले निर्यात में परिधान, चाय एवं रबर जैसी प्राथमिक जिंस और सेवाओं में मुख्य रूप से पर्यटन शामिल हैं।

इसके अलावा श्रीलंका श्रम उत्पादकता में गिरावट, श्रम बल में युवाओं की कमी और युवा एवं काम करने वाली आबादी के पलायन से जूझता रहा है। क्षेत्रीय मूल्य व्यवस्था के साथ बैकवर्ड इंटीग्रेशन श्रम बल और देश में औद्योगिक उत्पादन दोनों के लिए सकारात्मक बदलाव लेकर आएगा। बैकवर्ड इंटीग्रेशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें कोई कंपनी/देश आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति करने वाली दूसरी कंपनी या अधिक उत्पादन के लिए आवश्यक उत्पाद खरीदता/खरीदती है।

आरवीसी एक समान रूप से श्रमोन्मुखी होता है और विनिर्माण विशेषज्ञता एवं प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देती है। श्रीलंका ने तुलनात्मक रूप से अधिक लाभकारी मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) में भी रुचि दिखाई है जो अपने आप में बड़ी बात है। आरसेप में कई क्षेत्रों में विश्व व्यापार संगठन (WTO) प्लस नियामकीय प्रावधान भी शामिल हैं मगर थाईलैंड के साथ द्विपक्षीय एफटीए में दोनों देशों के बीच 15 वर्षों की अवधि के दौरान बड़े स्तर पर शुल्क उदारीकरण के अलावा सीमा शुल्क प्रावधान, निवेश एवं बौद्धिक संपदा अधिकार भी समाहित किए गए हैं।

‘लॉक-इन’ (प्रावधानों से जुड़ी अनिवार्य शर्त ) प्रभाव के माध्यम से ये प्रावधान श्रीलंका में संरचनात्मक एवं नियामकीय नीति सुधारों को बढ़ावा देंगे जिससे यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए अधिक आकर्षक बन जाएगा। आरसेप साझा एवं उद्गम के संचयी नियमों की पेशकश करता है, जो जीवीसी एकीकरण को बढ़ावा देते हैं। ये श्रीलंका को निर्यातोन्मुखी विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद करेंगे। इसके अलावा थाईलैंड की मदद से श्रीलंका को पूर्वी आर्थिक गलियारे (ईईसी) के साथ जुड़ने में भी मदद मिल जाएगी। ईईसी एक विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) है जिसका उद्देश्य उच्च तकनीकी क्षेत्र में थाईलैंड की विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देना है।

इसके अलावा यह क्षेत्रीय मूल्य व्यवस्था (आरवीसी) और संपर्क परियोजनाओं के जरिये व्यापार एवं निवेश के अवसरों को पड़ोसी आसियान और एशियाई अर्थव्यवस्था तक ले जाता है। व्यापार एवं माल परिवहन (लॉजिस्टिक) मार्गों की स्थापना के लिए बंदरगाह शहर कोलंबो (जो स्वयं एक एसईजेड) और ईईसी के बीच संपर्क की संभावनाओं पर भी विचार हो रहा है। इस संदर्भ में यह ध्यान देने योग्य है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान थाईलैंड आसियान में चीन और जापान से निवेश झटकने के मामले में सबसे आगे रहा है।

मलेशिया जैसे दूसरे आसियान देशों ने भी श्रीलंका में अपनी बड़ी कंपनियों से निवेश बढ़ाने में रुचि दिखाई है। उन्होंने आरसेप में शामिल होने के लिए श्रीलंका के आवेदन को भी अपना पूरा समर्थन देने का मन बना लिया है। लिहाजा, मुक्त व्यापार समझौता (FTA) नीति श्रीलंका को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में में मदद कर सकती है।

संभावित लाभों के अलावा आरसेप में श्रीलंका की भागीदारी दक्षिण एशिया में व्यापारिक माहौल में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का संकेत दे रही है। बांग्लादेश ने भी इस बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौते का हिस्सा बनने में दिलचस्पी दिखाई है। तुलनात्मक रूप से छोटी क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाएं दक्षिण एशिया से बाहर एक वैकल्पिक व्यापार समझौते एवं व्यवस्थाओं पर सक्रियता से विचार कर रही हैं।

हम यह जानते हैं कि निरंतर एवं संभावित टकराव ने दक्षिण एशियाई तरजीही व्यापार व्यवस्था (साप्टा) और दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) को इस क्षेत्र में आंतरिक क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने से रोक दिया है। मगर भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार संधियों और समझौतों ने छोटी अर्थव्यवस्थाओं की निर्यात रणनीति को सकारात्मक विकल्प दिए हैं। इनमें भारत-श्रीलंका एफटीए, भूटान और नेपाल के साथ ऐतिहासिक व्यापार संधि भी एफटीए की तरह ही काम करते रहे हैं।

इसके अलावा 2008 में भारत ने अपनी तरफ से दक्षिण एशिया सहित सबसे कम विकसित देशों (एलडीसी) को एकतरफा शुल्क मुक्त एवं शुल्क तरजीह योजना की पेशकश उनके 90 प्रतिशत से अधिक निर्यात पर की। इन व्यवस्थाओं ने पाकिस्तान छोड़कर सभी दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए भारतीय बाजारों के द्वार खोल दिए हैं। हालांकि, कोविड महामारी और यूक्रेन संकट के बाद छोटी अर्थव्यवस्थाएं महसूस कर रही हैं कि विनिर्माण में विविधता लाने के लिए केवल बाजार तक पहुंच ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उन्हें दीर्घ अवधि का विकल्प चाहिए।

इस अवधि के दौरान बांग्लादेश को भी बाह्य अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ा है। यह 2026 तक एलडीसी श्रेणी से बाहर आने वाला है। दक्षिण एशिया के देश केवल एक क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय विविधता सुनिश्चित कर आगे बढ़ना चाहते हैं। अब तक केवल एक ही क्षेत्र उनके निर्यात एवं आर्थिक वृद्धि का स्रोत रहा है।

उनका पारंपरिक निर्यात बाजारों, जो मुख्य रूप से यूरोपीय संघ और अमेरिका में हैं, में हाल में सुस्ती आई है और अब इनमें धीमी से मध्यम गति से सुधार होने की उम्मीद है। इसके उलट पूर्वी एशिया ने अपनी आर्थिक गतिशीलता बरकरार रखी है और इसके तत्काल और निकट भविष्य में वैश्विक व्यापार वृद्धि में मजबूती के साथ योगदान देने की संभावना है।

दक्षिण एशियाई देशों के द्विपक्षीय एवं बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के जरिये पूर्वी एशिया की तरफ झुकाव का एक परिणाम यह हो सकता है कि वैश्विक व्यापार में चीन की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी नहीं थमेगी। दक्षिण एशियाई देशों के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी लगभग एक चौथाई तक पहुंच गई है।

भारत की तुलना में बांग्लादेश और श्रीलंका के आयात में चीन की हिस्सेदारी पहले ही बहुत अधिक हो गई है। श्रीलंका के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी पिछले एक दशक के दौरान लगभग चार गुना बढ़ चुकी है जबकि भारत की हिस्सेदारी लगभग स्थिर रही है।

बांग्लादेश के मामले में इसके द्वारा किए जाने वाले आयात में भारत की हिस्सेदारी पिछले दशक में बढ़ी जरूर है मगर यह चीन की तुलना में यह काफी कम है। जहां तक कुल निर्यात की बात है तो भारत की हिस्सेदारी बांग्लादेश और श्रीलंका दोनों मामलों में तुलनात्मक रूप से अधिक है। मगर इन देशों के पूर्वी एशियाई आरवीसी के साथ जुड़ाव से यह रुझान चीन के पक्ष में पलट सकता है। लिहाजा, दक्षिण एशिया में व्यापारिक व्यवस्था में बदलाव भारत की क्षेत्रीय व्यापार रणनीति के बारे में काफी कुछ बयां करते हैं।

(लेखिका सीएसईपी में सीनियर फेलो एवं जेएनयू में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र में प्राध्यापक (अवकाश पर) हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

First Published - April 30, 2024 | 10:28 PM IST

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