क्या ऑनलाइन माध्यम से समाचार पढ़े जाने में आई कमी आने वाले किसी बदलाव का संकेत दे रही है? टाइम्स नेटवर्क, जागरण सहित ऑनलाइन समाचार पढ़ने का विकल्प देने वाले 20 शीर्ष संस्थानों के ऑनलाइन पाठकों की पहुंच और उनके ऑनलाइन रहने के समय दोनों में 2022 में कमी दर्ज हुई है। कुल मिलाकर ऑनलाइन समाचार पढ़ने वाले भारतीयों की संख्या पिछले वर्ष मई के 45.7 करोड़ से मामूली कम होकर सितंबर तक 45.1 करोड़ रह गई। कॉमस्कोर डेटा के अनुसार इसी अवधि के दौरान ऑनलाइन समाचार पढ़ने पर बिताया गया समय भी 9 प्रतिशत कम हो गया।
इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में ठहराव इसकी एक प्रमुख वजह हो सकती है। सबसे पहले इस समाचार पत्र ने इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में ठहराव से संबंधित खबर प्रकाशित की थी। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई ) के अनुसार इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में बढ़ोतरी 2016 से 2020 तक दो अंकों में रही थी, जो 2021 में कम होकर करीब 4 प्रतिशत (एक अंक में) रह गई। जून 2022 में समाप्त हुई तिमाही में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में बढ़ोतरी की दर पिछले साल की समान तिमाही की तुलना में 1 प्रतिशत से भी कम रही।
आखिर इसकी क्या वजह हो सकती है? स्मार्टफोन की बढ़ी कीमतें इसका एक मुख्य कारण है। भारत में मध्य एवं निम्न आय वर्ग के लोगों को साधारण फोन से स्मार्टफोन खरीदने में औसतन 8,000 रुपये खर्च करने पड़ते थे। मगर कोविड महामारी और आपूर्ति व्यवस्था में बाधा आने से चिप की कमी हो गई जिससे स्मार्टफोन महंगे हो गए हैं। इस मूल्य दायरे में अब स्मार्टफोन उपलब्ध नहीं हैं। विश्लेषकों के अनुसार इन दिनों स्मार्टफोन औसतन 16,000-20,000 रूपये में मिल रहे हैं।
स्मार्टफोन महंगा होना भारत में इंटरनेट की पहुंच के लिए एक बड़ी बाधा साबित हो सकती है। लाखों भारतीय लोगों के लिए स्मार्टफोन इंटरनेट तक पहुंच और इसका इस्तेमाल करने का पहला जरिया है। देश में 80 करोड़ लोग ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल करते हैं और इनमें मात्र 60-63 करोड़ लोग या 80 प्रतिशत से भी कम लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर लोग फिल्म देखने के साथ संगीत सुन सकते हैं और ऑनलाइन बैठकों में भाग ले सकते हैं। स्मार्टफोन के दाम कम होने के साथ ही भारत में इंटरनेट की पहुंच बढ़ती गई जिससे मीडिया के लिहाज से यह (भारत) सबसे अधिक आकर्षक बाजार बन गया। इन स्मार्टफोन की वजह से ही गूगल, मेटा (फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम), नेटफ्लिक्स और एमएक्स प्लेयर की लोकप्रियता बढ़ी।
अब आईडीसी आंकड़ों के अनुसार भारतीय स्मार्टफोन बाजार 2022 की तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में सालाना आधार पर 10 प्रतिशत तक कम हो गया है। 2019 के बाद किसी भी तीसरी तिमाही का यह सबसे खराब आंकड़ा है। इसका अभिप्राय है कि जो लोग साधारण फोन का इस्तेमाल करते रहे हैं मगर अब इंटरनेट का इस्तेमाल करना चाहते हैं और इसके माध्यम से विशेष सामग्री देखना चाहते हैं वे स्मार्टफोन नहीं ले पाए हैं। इस वजह से इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में बहुत कम इजाफा हुआ है।
दूरसंचार विश्लेषकों का कहना है कि चिप की उपलब्धता 2023 की दूसरी छमाही से बढ़ जाएगी। इससे चिप की मांग एवं आपूर्ति का संतुलन सुधर जाएगा और शुरुआती स्तर के स्मार्टफोन के लिए चिप उपलब्ध हो जाएंगे। इस बीच, उस मीडिया बाजार का क्या होगा जहां अगले चरण में इंटरनेट की पहुंच देश के शीर्ष 100 शहरों के बजाय दूसरे शहर या क्षेत्र निर्धारित करेंगे? इंटरनेट की पहुंच में देरी का असर दूर तलक जाएगा और बैंकिंग एवं शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में इसे महसूस किया जाएगा। इस आलेख में 1.6 लाख करोड़ रुपये के मीडिया एवं मनोरंजन कारोबार पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
सबसे पहला एवं तत्काल असर यह देखा जा रहा है कि पिछले दो वर्षों से ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या नहीं बढ़ी है। कॉमस्कोर के अनुसार सोशल मीडिया, वीडियो और मनोरंजन 48.5 करोड़ लोगों तक ठहर गया है। समाचार संभवतः पहला ऐसा खंड है जो लोग ऑनलाइन पढ़ते हैं। इस खंड में गिरावट दर्ज की गई है।
यहां तर्क दिया जा सकता है कि केवल इंटरनेट की पहुंच ही नहीं बल्कि सामग्री की गुणवत्ता या समय जैसे दूसरे कारक ऑनलाइन समाचार के उपभोग को प्रभावित करते होंगे। कॉमस्कोर के आंकड़ों के अनुसार इंटरनेट की पहुंच जरूर थम गई है मगर मनोरंजन की सामग्री देखने पर व्यतीत समय 2 प्रतिशत बढ़ गया है, जबकि सोशल मीडिया पर ऑनलाइन रहने का समय मई 2022 की तुलना में सितंबर 2022 में 7 प्रतिशत बढ़ गया। प्रत्येक मीडिया के विस्तार की एक स्वाभाविक सीमा होती है।
टेलीविजन 21 करोड़ घरों या 89.2 करोड़ लोगों तक पहुंचता है। मगर पिछले दो वर्षों से यह तादाद जस की तस है। समाचारपत्र 42.1 करोड़ लोगों तक पहुंचता है और पिछले पांच वर्षों से यह आंकड़ा नहीं बढ़ा है। परंपरागत रूप में बिजली और साक्षरता स्वाभाविक रूप से इस बात का निर्धारण करते थे कि भारत में किस मीडिया की कितनी पहुंच हो सकती है। स्मार्टफोन आने के बाद यह स्थिति बदल गई। वित्तीय जानकारी से लेकर खाना बनाने के वीडियो की उपलब्धता, फिल्म एवं समाचार देखने-सुनने की सुविधा, सस्ते स्मार्टफोन और इन्हें कहीं से भी चार्ज करने की आजादी ने इंटरनेट की सुविधा देने वाले फोन को साक्षरता और बिजली जैसी बाधाओं से मुक्त कर दिया। ऑनलाइन सामग्री देखना- सुनना केवल इस बात इस बात के इर्द-गिर्द घूमने लगा कि लोग कितना समय इनके लिए निकाल सकते हैं। कोविड महामारी के बाद यह बाधा भी नहीं रही।
महामारी के दौरान ऐसा महसूस हुआ कि लोग घंटों ऑनलाइन समय बिता सकते हैं। आखिर हम ऑनलाइन माध्यम का इस्तेमाल कर सोच सकते हैं, कुछ पूछ सकते हैं, काम कर सकते हैं, अध्ययन कर सकते हैं, आराम कर सकते है या फिर परिवार से बात कर सकते हैं। कुल मिलाकर ऑनलाइन खर्च होने वाला समय फिलहाल बढ़ता रहेगा। हालांकि ऐसा 60-63 करोड़ मौजूदा स्मार्टफोन उपभोक्ताओं के जरिये ही होगा और समाचारपत्र और टेलीविजन की तरह ही यह भी कभी न कभी चरम पर पहुंच जाएगा।
ऑनलाइन माध्यम को सर्वाधिक राजस्व विज्ञापन से मिलता है। विज्ञापन के जरिये राजस्व के लिए केवल यह महत्त्वपूर्ण नहीं है कि उपभोक्ता कितनी देर तक ऑनलाइन रहते हैं बल्कि यह बात भी मायने रखती है कि देश के विभिन्न भागों से विभिन्न भाषाओं में कितने लोग सामग्री देखते या पढ़ते हैं। जब तक ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं की तादाद और ऑनलाइन वीडियो या संगीत सुनने वालों की संख्या नहीं बढ़ेगी तब तक विज्ञापनदाताओं और डिजिटल कारोबारों के लिए समय अनिश्चित रहेगा।