facebookmetapixel
IndiGo करेगी ₹7,270 करोड़ का निवेश, अपनी सब्सिडियरी कंपनी से करेगी विमानों का अधिग्रहणसावधान! साइबर ठग लोगों को RBI का अधिकारी बनकर भेज रहे हैं वॉइसमेल, सरकार ने किया सचेतREITs को मार्केट इंडेक्स में शामिल करने की तैयारी, निवेश को मिलेगी नई उड़ान; सेबी लाएगी आसान नियमविदेश में पढ़ाई करना चाहते हैं? जानें इसके लिए कैसे मिलता है लोन और क्या-क्या है जरूरीक्या सोना अब और टूटेगा? जानिए क्यों घट रही हैं कीमतें47% चढ़ सकता है सर्विस सेक्टर कंपनी का शेयर, ब्रोकरेज ने BUY रेटिंग के साथ शुरू की कवरेजGroww Q2 Results: दमदार तिमाही से शेयर 7% उछला, मुनाफा 25% बढ़ा; मार्केट कैप ₹1 लाख करोड़ के पारNifty-500 में रिकॉर्ड मुनाफा, लेकिन निफ्टी-100 क्यों पीछे?Sudeep Pharma IPO: ग्रे मार्केट में धमाल मचा रहा फार्मा कंपनी का आईपीओ, क्या निवेश करना सही रहेगा?Smart Beta Funds: क्या स्मार्ट-बीटा में पैसा लगाना अभी सही है? एक्सपर्ट्स ने दिया सीधा जवाब

सियासी हलचल: मेवात हिंसा के बाद खट्टर के लिए चुनौती और अवसर

अगर मनोहर खट्टर हरियाणा में तीसरी बार भाजपा की सरकार बनवाने में सफल रहते हैं तो तो उन्हें पार्टी के इतिहास में एक खास स्थान मिलेगा-मेवात के घटनाक्रम के बाद भी।

Last Updated- August 04, 2023 | 10:11 PM IST
CM Manohar Lal PC

मुख्यमंत्रियों के लिए यह एक ऐसा दु:स्वप्न होता है जिसके बारे में वे उम्मीद करते हैं कि वह कभी सच न हो। विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल ने 31 जुलाई को मुस्लिम मेवों की बहुलता वाले नूंह (हरियाणा के मेवात जिले का मुख्यालय) से एक शोभायात्रा निकालने का निर्णय लिया।

इस घटना के बाद राज्य के गुरुग्राम और पलवल जैसे विकसित तथा मेवात जैसे पिछड़े इलाके जबरदस्त हिंसा और अराजकता के शिकार हो गए। सरकार के ही कई लोगों का आरोप है कि यह हिंसा पूर्वनियोजित थी।

हालात राज्य पुलिस के नियंत्रण के बाहर थे

एक मस्जिद का इमाम, विहिप का एक स्वयंसेवक और होमगार्ड के दो जवानों समेत छह लोग मारे गए। करीब 200 लोग घायल भी हुए। जब हिंसा के आसपास के इलाकों मसलन राजस्थान और दिल्ली में भी फैलने की आशंका हुई तो राज्य प्रशासन ने अतिरिक्त अर्द्धसैनिक बलों की गुहार लगाई। इस प्रकार उसने लगभग यह स्वीकार कर लिया कि हालात राज्य पुलिस के नियंत्रण के बाहर थे। यदाकदा आगजनी की घटनाएं जारी हैं।

यह पहला मौका नहीं है जब राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को ऐसी भारी हिंसा से निपटना पड़ रहा है। खट्टर सरकार की प्रशासनिक नाकामी के कारण वहां जातीय दंगे हो चुके हैं। 2016 में राज्य के एक प्रमुख जातीय समूह जाट को लेकर भड़की हिंसा भी प्रशासन के नियंत्रण के बाहर हो चुकी थी। जब पुलिस ने स्वयंभू बाबा रामपाल को 43 बार अदालत में पेश होने में विफल रहने पर गिरफ्तार करना चाहा तो उसे सशस्त्र प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, डेरा सच्चा सौदा के मामले में भी यही हुआ था।

पूरा मेवात अत्यंत पिछड़ा

परंतु इस बार मामला सांप्रदायिक है और इसका संबंध मेवात की सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल से हो सकता है। मेवात की 80 फीसदी आबादी मुस्लिम है और इनमें भी सबसे ज्यादा तादाद एक खास जातीय समूह यानी मेव-मुस्लिमों की है। नूंह, गुरुग्राम से केवल 60 किलोमीटर दूर है। परंतु पूरा मेवात अत्यंत पिछड़ा हुआ है।

2015 में नीति आयोग की फंडिंग से मेवात को लेकर एक अध्ययन किया गया था जो बताता है कि जिले का 90 फीसदी इलाका ग्रामीण है। सबसे मुख्य समस्या पानी की है। यहां का पानी इतना खारा है कि इसका इस्तेमाल ही नहीं किया जा सकता है। यहां के 25 फीसदी परिवारों के घर में जल स्रोत है। पीने लायक पानी की कमी के चलते, पशुपालन यहां का प्रमुख पेशा है। यहां बकरी और गाय दोनों पाली जाती हैं और ऐसे में मुस्लिम बहुत मेवात गोरक्षकों के हमले की दृष्टि से भी संवेदनशील है।

अध्ययन इस बात के प्रमाण मुहैया कराता है कि आखिर क्यों मेवात को लगता है कि सरकार ने उसकी अनदेखी की। वहां के करीब 50 फीसदी परिवार अभी भी खाना पकाने के लिए जलाऊ लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं। खुले में शौच आम है और स्वीकार्य भी है। इसके बावजूद मेवात में हर परिवार में मोबाइल फोन का औसत बाकी राज्य की तरह ही है। यानी वहां अफवाहें और षडयंत्र तेजी से फैलते हैं।

मेवात के विकास के लिए खूब पैसा खर्च, पर कोई परिणाम

मुख्यमंत्री के रूप में 10 वर्ष का समय बिता लेने के बाद मनोहर लाल खट्टर मेवात की हकीकतों से अनभिज्ञ नहीं हो सकते। परंतु पहले की सरकारों की तरह ही उनके कार्यकाल में भी क्षेत्र के विकास के लिए खूब पैसा खर्च किया गया लेकिन कोई परिणाम नजर नहीं आया।

अतीत में कहा गया कि ऐसा अनुभव की कमी के कारण हुआ लेकिन अब ऐसा नहीं कहा जा सकता है। नेतृत्व के मोर्चे पर खट्टर को दो लाभ प्राप्त हैं: व्यक्तिगत ईमानदारी को लेकर उनकी ख्याति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनका रिश्ता।

खट्टर और मोदी एक दूसरे को उस समय से जानते हैं जब मोदी हरियाणा के प्रभारी थे। खट्टर का परिवार मूल रूप से पश्चिमी पाकिस्तान से है। उनका परिवार बेहद गरीब था और उसके हरियाणा में बसने के बाद उनका जन्म हुआ। वह सन 1975 के आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए और सन 1977 में इसमें शामिल हो गए।

आपातकाल में संघ की विचारधारा और स्वयंसेवकों के आचरण से प्रभावित होकर सन 1980 में वह पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। वह हरियाणा की राजनीति में शामिल हो गए और उनका संपर्क मोदी से हुआ जो उस समय भाजपा में काम करने आए थे। जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने और भुज और कच्छ में भूकंप आया तब खट्टर को पुनर्निर्माण और पुनर्वास समिति का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया गया। सन 2002 में वह जम्मू कश्मीर के चुनाव प्रभारी बने। वर्ष 2014 में उन्हें हरियाणा में चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया। उस साल हरियाणा के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा और वह पहले करनाल से विधायक और फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

उसके बाद 2019 में विधानसभा चुनाव हुए। भाजपा जहां हरियाणा में लोकसभा की सभी सीटों के चुनाव जीतने में कामयाब रही थी वहीं विधानसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन कमजोर रहा। मत हिस्सेदारी में इजाफे के बावजूद पार्टी 90 में 40 से अधिक विधानसभा सीटें नहीं जीत सकी। उसे दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जनता जननायक पार्टी का समर्थन हासिल करना पड़ा। खट्टर को चौटाला को अपना उपमुख्यमंत्री बनाना पड़ा।

अब तक चौटाला का आचरण सही रहा है लेकिन विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं। अगर भाजपा की सीटों में और गिरावट आती हैं तो वे अपनी शर्तें मनवाने का प्रयास कर सकते हैं। कांग्रेस अभी भी बंटी हुई है और आम आदमी पार्टी अब तक राज्य में जड़ें मजबूत करने का प्रयास कर रही है।

राज्य भाजपा विधायकों को नहीं करता पसंद 

हरियाणा को खट्टर सरकार से कोई दिक्कत नहीं है। पिछले विधानसभा चुनावों में पार्टी का बढ़ा हुआ मत प्रतिशत तो यही बताता है। परंतु राज्य भाजपा विधायकों को पसंद नहीं करता और 2019 में इसीलिए पार्टी के कम विधायक जीते थे। यह खट्टर के लिए दिक्कत की बात हो सकती है। अगर उन्हें विधायक चुनने का खुला अवसर नहीं मिला तो अन्य पार्टियां दखल बढ़ा सकती हैं।

दूसरी ओर, अगर वह भाजपा के भीतर सत्ता समीकरण को छेड़ते हैं तो पार्टी में विरोध हो सकता है। परंतु एक बात स्पष्ट है: अगर वह तीसरी बार भाजपा की सरकार बनवाने में सफल रहते हैं तो तो उन्हें पार्टी के इतिहास में एक खास स्थान मिलेगा-मेवात के घटनाक्रम के बाद भी।

First Published - August 4, 2023 | 10:11 PM IST

संबंधित पोस्ट