प्रौद्योगिकी की दुनिया, खासकर स्टोरेज में संजय मेहरोत्रा एक जाना-माना नाम हैं। वह 1988 में एक फ्लैश मेमरी स्टोरेज कंपनी, सैनडिस्क के सह संस्थापक रहे जिसका अधिग्रहण 2016 में वेस्टर्न डिजिटल ने 19 अरब डॉलर में किया था।
कानपुर के एक लड़के के लिए यह सफर निश्चित रूप से काफी सुखद रहा, जिसने अमेरिका में उच्च शिक्षा हासिल की और फिर माइक्रोन टेक्नोलॉजी इंक के मुख्य कार्यपालक अधिकारी बने जो अमेरिका की सबसे बड़ी मेमरी चिप निर्माता कंपनियों में से एक है और अब कंपनी भारत में अपना पहला संयंत्र स्थापित कर रही है।
दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनी माइक्रोन जल्द ही देश में अपनी पहली असेंबली, परीक्षण, मार्किंग और पैकेजिंग संयंत्र स्थापित कर सकती है, जिसमें लगभग 1 अरब डॉलर का निवेश होना है।
मेहरोत्रा ने 18 साल की उम्र तक बिट्स पिलानी में पढ़ाई की और फिर कैलिफॉर्निया विश्वविद्यालय, बर्कली से पढ़ाई पूरी करते हुए इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस में अपनी स्नातक और मास्टर की डिग्री पूरी की। उन्होंने स्टैनफर्ड ग्रैजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस एग्जिक्यूटिव प्रोग्राम भी पूरा किया है। वह अमेरिका के तकनीकी उद्योग में अपनी पहचान बनाने वाले सबसे पहले शुरुआती दौर के भारतीयों में से एक हैं। उनके पास 70 से अधिक पेटेंट है और उन्होंने नॉन-वोलेटाइल मेमरी डिजाइन और फ्लैश मेमरी सिस्टम के क्षेत्र में कई शोध पत्र प्रकाशित किए हैं।
सैनडिस्क के सह-संस्थापक बनने से पहले, मेहरोत्रा ने डिजाइन इंजीनियर के रूप में इंटीग्रेटेड डिवाइस टेक्नोलॉजी, एसईईक्यू टेक्नोलॉजी और इंटेल के साथ काम किया। 2019 में कंप्यूटर हिस्ट्री म्यूजियम को दिए गए एक साक्षात्कार में, मेहरोत्रा ने साझा किया कि यह उनके पिता का सपना था कि उन्हें स्नातक की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजा जाए। उन्होंने बताया कि आईआईटी खड़गपुर में नामांकन के बावजूद, उनके पिता ने उन्हें बिट्स पिलानी भेजने का फैसला किया क्योंकि संस्थान का मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और फोर्ड फाउंडेशन के साथ गठबंधन था।
उस साक्षात्कार में, मेहरोत्रा ने यह भी बताया कि कैसे वह ग्रीक-अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक जॉर्ज पेरलेगॉस और चिप डिजाइन करने की उनकी अवधारणाओं से प्रभावित थे, जिनसे उनकी इंटेल में मुलाकात हुई थी।
उन्होंने कहा, ‘आप सिर्फ चिप ही डिजाइन नहीं करते हैं बल्कि आप उत्पाद और उत्पाद इंजीनियरिंग परीक्षणों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। डिजाइन, उत्पाद, टेस्ट इंजीनियरिंग, ये ऐसी चीजें हैं जिन पर मैंने पहले दिन से ध्यान दिया है। समय के साथ मुझे उपकरणों के डिजाइन के साथ-साथ प्रोसेस टेक और सभी सिस्टम इंजीनियरिंग के मामले में जिम्मेदारी मिली।’उन्होंने यह भी साझा किया कि सैनडिस्क को सफलतापूर्वक छोड़ने के बाद उनका माइक्रोन से जुड़ना दरअसल चुनौती को बड़े स्तर पर ले जाने से जुड़ा था।
उन्होंने कहा, ‘मैंने सोचा कि एक कंपनी को नए सिरे से शुरू करना और उसे छह अरब डॉलर की कंपनी बनाने के बाद फिर 19 अरब डॉलर में बिक्री सौदे की घोषणा के समय कंपनी से बाहर निकलना बेहद सम्मानजनक सफर है। ऐसी सफल यात्रा के बाद कितने लोगों ने ऐसा किया है, जैसे कि सैनडिस्क की यात्रा के बाद किसी अन्य बड़ी कंपनी में जाएं और उस कंपनी को सैनडिस्क से तीन गुना बड़े स्तर पर ले जाने की चुनौती लें और न केवल फ्लैश बल्कि शानदार डायनैमिक रैंडम एक्सेस मेमोरी तकनीक हो और उस कंपनी को अगले स्तर पर ले जाने के लिए एक शक्ति केंद्र बन जाएं।’
माइक्रोन के अमेरिका, जापान, मलेशिया, सिंगापुर, ताइवान और चीन में 11 विनिर्माण स्थल हैं और वे सेमीकंडक्टर पैकेजिंग संयंत्र स्थापित करने के लिए एक साल से अधिक समय से दुनिया भर में खोज कर रहे हैं।
कुछ महीने पहले मेहरोत्रा ने अपने लिंक्डइन पोस्ट में कहा था कि उनकी कंपनी अमेरिका के इतिहास में सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन संयंत्र बनाने के लिए अगले 20 वर्षों में 100 अरब डॉलर का निवेश करेगी। भारत में परिचालन शुरू करने के लिए एक वैश्विक स्तर की कंपनी के होने से वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर में देश की हैसियत बढ़ेगी।