प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) नहीं बल्कि विदेश मंत्री एस जयशंकर मालदीव में नव निर्वाचित राष्ट्रपति एवं भारत के खिलाफ तल्ख तेवर रखने वाले मोहम्मद मुइज के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा ले सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हो सकते हैं। सूत्रों के अनुसार 17 नवंबर को आयोजित इस सम्मेलन में विदेश मंत्री एस जयशंकर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।
सूत्रों का कहना है कि मोदी कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों और पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों की वजह से मुइज के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। मगर यह बात उतनी सीधी भी नहीं है जितनी लगती है। वर्ष 2019 में विधानसभा चुनावों के बीच मोदी उस समय इब्राहिम सोलिह के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में शरीक हुए थे। वह तब एकमात्र राष्ट्राध्यक्ष थे जो उस समारोह में शामिल हुए थे।
आखिर, इस बार ऐसा क्या बदल गया है? भारत को खास अहमियत देने वाले मालदीव में नए राष्ट्रपति मुइज के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री मोदी क्यों नहीं जा रहे हैं? क्या भू-राजनीति और मालदीव की सियासत ने वहां भारत को एक बड़ा मुद्दा बना दिया है?
मालदीव में भारत को पड़ोसी देशों में सर्वोच्च प्राथमिकता देने की नीति की शुरुआत सोलिह ने की थी। सोलिह से पहले राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन भारत के प्रतिद्वंद्वी चीन के करीबी माने जाते थे। मगर यामीन के बाद जब सोलिह सत्ता में आए तो भारत इससे बेहद खुश हुआ। मगर इसके बाद वहां भारत को लेकर विरोधी स्वर भी पनपने लगे।
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान में एसोसिएट फेलो एवं भू-राजनीति और मालदीव की राजनीति को सूक्ष्मता से समझने वाली गुलबीन सुल्ताना कहती हैं, ‘किसी भी अन्य छोटे देश की तरह मालदीव भी अपनी संप्रभुता एवं सामरिक स्वायत्तता को लेकर संवेदनशील है।
वहां विपक्षी दल लगातार यह आरोप लगाते रहे थे कि राष्ट्रपति सोलिह ने मालदीव की संप्रभुता के साथ खिलवाड़ किया है। विपक्षी दलों का पहला आरोप यह था कि सोलिह ने भारत के साथ सामरिक एवं सुरक्षा संबंधों को मजबूत किया और भारतीय सेना के जवानों को मालदीव में रहने की इजाजत दी।
दूसरा आरोप यह था कि सोलिह ने चागोस द्वीप पर मॉरीशस के संप्रभु अधिकार और मालदीव और मॉरीशस की समुद्री सीमा पर इंटरनैशनल ट्रिब्यूनल फॉर लॉ ऑफ द सी का निर्णय स्वीकार कर मालदीव को संप्रभुता को नुकसान पहुंचाया है।’
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के परिप्रेक्ष्य में सोलिह पर लगे आरोप का कारण मालदीव में लगभग 76 जवानों एवं अर्द्ध सुरक्षा कर्मियों की उपस्थिति है। ये लोग वहां भारतीय परिसंपत्तियों के रखरखाव का काम देखते हैं।
पश्चिमी नौसेना कमान के पूर्व कमांडर-इन-चीफ वाइस एडमिरल शेखर सिन्हा कहते हैं, ‘मालदीव में भारतीय नौसेना का ध्रुव हेलीकॉप्टर है और तटरक्षक बल का भी एक डोर्नियर वहां तैनात है। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने यह विमान तैयार किया है इसलिए कंपनी ने इसके रखरखाव के लिए अपने कर्मी मालदीव में रखे हैं। यह अनुबंध आधारित समझौता है। ये सभी रखरखाव कर्मी हैं और इनमें किसी के पास भी हथियार या सैन्य सामग्री नहीं हैं।‘ सिन्हा मालदीव के साथ संवाद करने वाली टीम का हिस्सा रहे चुके हैं।
सिन्हा का मानना है कि मालदीव में भारत के साथ संबंधों को अहमियत नहीं देने वाली सरकार के कमान संभालने से दोनों ही देशों को नुकसान हो सकता है जिसका फायदा अन्य देश उठा सकते हैं।
भारत की एक कंपनी मालदीव में कंटेनर बंदरगाह बनाने का ठेका हासिल करने में सफल रही है। यह मालदीव सरकार का एकमात्र कंटेनर बंदरगाह होगा।
सिन्हा का कहना है कि कुछ मुश्किलों के बाद उथुरु द्वीप पर परियोजना के लिए जगह निर्धारित की गई है। अभी निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है। अगर भारत को जाने के लिए कहा जाता है तो पाकिस्तान को इसका सीधा फायदा मिलेगा और वह बंदरगाह निर्माण पूरा करने का प्रस्ताव दे सकता है।
हाल में ही विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजी) की मालदीव और पाकिस्तान द्वारा संयुक्त निगरानी का प्रस्ताव भी दिया गया है। माले में भारत के उच्चायुक्त मुन्नु महावर ने मुइज से मुलाकात की है और कहा है कि दोनों पक्ष सभी विषयों पर बातचीत करेंगे।
अमेरिका का मानना है कि सैनिकों की वापसी भारत और मालदीव का आपसी मामला है। अमेरिका, भारत और चीन कुछ उन देशों में है जिनके माले में दूतावास हैं।
दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में आया नया मोड़ पूर्व में हुई घटनाओं को देखते हुए चिंता का कारण है। एक दशक पहले भारत की एक निर्माण कंपनी पर आरोप लगे थे कि उसने मालदीव का मुख्य हवाईअड्डे का परिचालन अधिकार का ठेका हासिल करने के लिए वहां के एक पूर्व राष्ट्रपति को रिश्वत दी थी। 51.1 करोड़ डॉलर का यह अनुबंध रद्द कर दिया गया।
हालांकि, बाद में कंपनी के पक्ष में मध्यस्थता न्यायालय का निर्णय आया मगर इस घटना ने दूसरी भारतीय कंपनियों एवं भारत सरकार दोनों के सकते में डाल दिया और मालदीव के साथ कारोबारी सौदा करने को लेकर उन्हें असहज बना दिया।
नव निर्वाचित राष्ट्रपति मुइज उन बातों को लेकर सहज नहीं दिख रहे हैं। अल-जज़ीरा टेलीविजन चैनल को दिए साक्षात्कार में यह बात साफ हो गई। हालांकि, जब मुइज से पूछा गया कि मालदीव में कितने भारतीय सैनिक मौजूद हैं तो वह सही संख्या नहीं बता पाए।
सिन्हा और सुल्ताना दोनों इस बात से सहमत है कि मालदीव की राजनीति में दूसरे कई संवेदनशील मुद्दे भी हैं। वहां के मतदाता रोजगार की स्थिति, सामाजिक सुरक्षा और आधारभूत ढांचे के विकास पर चिंतित हैं। सिन्हा का कहना है कि मालदीव की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि उसे खाद्य पदार्थ एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए भारत, खासकर केरल पर निर्भर रहना पड़ता है।
सुल्ताना कहती हैं कि मुइज ने एक महत्त्वाकांक्षी आर्थिक योजना पेश की है। मालदीव की मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए नई सरकार के लिए केवल एक या दो देशों पर निर्भर रह कर इन आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करना मुश्किल लग रहा है। इसमें शक नहीं कि चीन और सऊदी अरब काफी रकम लगा सकते हैं मगर अकेले वे भी मालदीव की आर्थिक चुनौतियों को दूर नहीं कर सकते हैं।
मालदीव के लिए ऋण भुगतान का भी भारी भरकम बोझ हैं। विश्व बैंक के अनुसार मालदीव पर बाहरी ऋण 2026 तक बढ़कर 1 अरब डॉलर पहुंच जाएगा। मुइज ने भारत से ऋण के पुनर्गठन करने के लिए आग्रह भी किया है।
मालदीव में संघीय (राष्ट्रपति) शासन प्रणाली है। राष्ट्रपति का प्रत्यक्ष होता है मगर संसद के चुनाव भी अलग से होते हैं। संसद का चुनाव 2024 की पहली तिमाही में होना है। अगर विपक्षी दल संसदीय चुनाव में जीत दर्ज करते हैं तो मुइज पर दबाव बढ़ जाएगा।
सिन्हा कहते हैं कि राजनीतिक अनिश्चितता बढ़ने से मुइज की स्थिति कमजोर हो सकती है और उस स्थिति में नए राजनीतिक समीकरण तैयार होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। जो भी हो, मगर भारत को अपने हितों के लिए मालदीव पर नजरें टिकाए रखनी होंगी।