आज का अखबार

Editorial: उभरते बाजारों का मजबूत प्रदर्शन

वैश्विक निवेशकों के बीच कम जोखिम लेने की क्षमता, बिगड़ते भूराजनीतिक हालात और निरंतर बढ़ा हुआ राजकोषीय घाटा चुनौतियां बढ़ा सकता है।

Published by
बीएस संपादकीय   
Last Updated- November 09, 2023 | 9:29 PM IST

महामारी के दौरान किए गए नीतिगत समायोजन को समाप्त करने और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा मार्च 2022 के बाद नीतिगत दरों में तेज इजाफा किए जाने के बाद तमाम उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं में टैपर टैंट्रम 2.0 (केंद्रीय बैंक द्वारा परिसंपत्ति खरीद कार्यक्रम को कम करना) का डर गहरा हो गया था।

बहरहाल चिंताओं के बावजूद भारत समेत उभरते बाजारों ने उल्लेखनीय मजबूती दिखाई है। इससे पता चलता है कि जहां अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों में नीतिगत सख्ती वित्तीय बाजारों में उथलपुथल पैदा कर सकती है और उभरते बाजारों की वित्तीय स्थिति तंग बना सकती है, वहीं मजबूत घरेलू बुनियाद अर्थव्यवस्था को विपरीत आर्थिक झटकों से बचा सकती है। सैन फ्रांसिस्को के फेडरल रिजर्व बैंक के अर्थशास्त्रियों के एक विश्लेषणात्मक आलेख ने भी इस दलील को मजबूती प्रदान की।

आलेख में 16 उभरते बाजारों के 10 वर्ष के सरकारी बॉन्ड के प्रतिफल में बदलाव को ध्यान में रखकर यह आकलन किया गया कि वैश्विक बाजार ने फेडरल रिजर्व की नीतिगत सख्ती को लेकर क्या प्रतिक्रिया दी?

परिणाम दिखाते हैं कि उभरते बाजारों में चालू खाते के घाटे में मानक विचलन बढ़ने के कारण नीति सख्त होने की शुरुआत के पश्चात पहली छमाही में 10 साल के सरकारी बॉन्ड के प्रतिफल में केवल 40 आधार अंक का इजाफा हुआ। सांख्यिकीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण यह संबंध दिखाता है कि चालू खाता अधिशेष वाले देशों में कम बदलाव नजर आया और वे नीतिगत सख्ती को झेलने के मामले में चालू खाता घाटे वाले देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में थे।

इसके अलावा स्वास्थ्य और समाज कल्याण पर महामारी से संबंधित राजकोषीय व्यय ने भी 10 वर्ष के बॉन्ड प्रतिफल विस्तार को बहुत अधिक प्रभावित नहीं किया। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि मौजूदा राजकोषीय बाधाओं के कारण विभिन्न देशों ने कम खर्च किया।

ऐसे में उभरते बाजारों का चालू खाते का बढ़ा हुआ घाटा उस स्थिति में एक बड़ी वृहद आर्थिक कमी हो सकता है जब वैश्विक वित्तीय हालात अचानक सख्त हों।

टैपर टैंट्रम 2013 में हुआ था जब 2008 के वित्तीय संकट के बाद प्रतिभूतियों की खरीद करने वाले अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने क्वांटिटेटिव ईजिंग के इस कार्यक्रम को सीमित करने की घोषणा की थी।

इस घोषणा के बाद भारत जैसे उभरते बाजारों में पूंजी की आवक अचानक कम हो गई। इससे पूंजी बाहर गई। उस समय भारत का चालू खाता घाटा बढ़ा हुआ था और उसे इसकी भरपाई करने की जरूरत थी। इस घटनाक्रम के बाद रुपये के बाहरी मूल्य में तेजी से कमी आई। उल्लेखनीय है कि भारत इस संकट का सामना करने वाला अकेला देश नहीं था। कई उभरते बाजार इसी तरह के हालात से जूझ रहे थे।

बहरहाल, इस बार हालात एकदम अलग हैं। भारत ने हालात का बेहतर प्रबंधन किया है जिसकी वजह से मुद्रा बाजार में स्थिरता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार तैयार करने के हर अवसर का लाभ उठाया। 2020 में फेड सहित बड़े केंद्रीय बैंकों द्वारा नकदी उपलब्ध कराए जाने के बाद आई पूंजी ने भी इसमें मदद की।

2022 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 640 अरब डॉलर हो गया था। वैश्विक ब्याज दरों में अचानक इजाफा तथा यूक्रेन युद्ध के कारण जिंस कीमतों में तेज बदलाव के कारण पूंजी बाहर गई परंतु रिजर्व बैंक ने हालात का अच्छी तरह प्रबंधन किया।

भारत तथा अन्य उभरते देशों द्वारा मुद्रास्फीति को निशाना बनाने से भी मदद मिली। भारत तथा अन्य उभरते देश मौद्रिक नीति संबंधी कदमों को लेकर और स्वतंत्र ढंग से कदम उठा सके जिससे वित्तीय बाजारों का भरोसा बहाल करने में मदद मिली।

रिजर्व बैंक ने अब तक अच्छा प्रदर्शन किया है और चालू खाते के घाटे में कमी ने भी मदद की है लेकिन वृहद आर्थिक स्थिरता के लिए जोखिम बरकरार है। वैश्विक निवेशकों के बीच कम जोखिम लेने की क्षमता, बिगड़ते भूराजनीतिक हालात और निरंतर बढ़ा हुआ राजकोषीय घाटा चुनौतियां बढ़ा सकता है।

First Published : November 9, 2023 | 9:29 PM IST